"वो जानमाज़" माय लाइफ स्टोरी
"वो जानमाज़" माय लाइफ स्टोरी
आज मैं आपको ज़िन्दगी के उस ख़ुबसूरत सफ़र की बहुत ही अहम बातें बताना चाहती हूँ ....
हम करीब 10 साल पहले हज पर गए ,उस पाक जगह जाने की हर मुस्लिम की शिद्दत से ख्वाहिश रहती है, हम भी दिल्ली से चले ओमान में रुके फिर वहाँ से जद्दा से मक्का शरीफ पहुंचे ,काबा का दीदार कर के हम ज़ारो-क़तार रो रहे थे इतना ख़ुशनसीब महसूस कर रहे थे।
हमने अपने अराफात के " हज"के अरक़ान पूरे किए ,30 दिन हम "मक्का शरीफ में रहे उसके के बाद हमें मदीना शरीफ जाना था, हम रात भर बस का सफर करके मदीना शरीफ पहुंचे...।
हम करीब 4:30पर होटल में पहुंचे उस रात इतनी ठंड़ थी ,के बता नहीं सकती हम लोगों को इंडिया में बताया गया था अरब कंट्री में सर्दियो में वहाँ सर्दी नहीं होती ।हम लोग गर्म कपड़े नहीं ले गए ,बाद में हमने शाल ख़रीदे ।
हम मस्जिद नबी में नमाज़ अदा करने की ख्वाहिश में या जोश-जोश में फजिर की नमाज़ अदा करने पहुंच गए ,यहाँ.शुरू होती है...
वो जानमाज़ .....!
हम दोनों हस्बेंड, वाइफ को मस्जिद नबी में अलग-अलग जगह नमाज़ पढ़नी पढ़ी ,मेरे हस्बेंड का पूरा ध्यान मेरे तरफ था उन्हें फिक्र हो रही थी ,जहाँ जानमाज़ नहीं बिछी वहाँ नमाज़ की जगह मिली होगी तो ,साजिदा के पैर सून हो जाएंगे ।क्योंकि इतनी सर्दी 2-3 डिग्री थी 5:30 सुबह में जब हम नमाज़ के बाद मिले तो इनका प्यार देखते ही बना , शॉप से मेरे लिए जानमाज़ ख़रीद कर ले आए ,बेहद केयरिंग हैं , बस वो जानमाज़ मुझे बहुत अनमोल है, ऐसे पाक जगह पर बिछा कर मैनें नमाज़े अदा की हैं , उस जानमाज़ से मुझे इतनी उनसियत(लगाव) है ।
वो जानमाज़ आज भी मेरी ख़ुसूरत यादों में है जब भी नमाज़ अदा करती हूँ ,ऐसा महसूस होता जैसे मैं आज भी मस्जिद नबी में ही नमाज़ अदा कर रही हूँ......!