विष कन्या
विष कन्या
नाज़रिन ए मोहतरम अज़ीज़ ए ख्वातीन ओ हज़रात कदीम दौर ए वक्त की बात है सर जमीन ए हिंदुस्तान का एक बादशाह शिकार खेलने के इरादे से जानिब ए कोह ए जंगल
ओ वीराना गया रास्ते में उसका गुज़र ओ बशर एक छोटे से गांव से हुआ और उसी गांव की एक खूबसूरत लड़की पर उसका दिल आ गया।
उसकी रियासत के आस पास के तमाम गांव उसकी ही मिल्कियत में आते थे चुनानचे उसने मनसूबा तय किया की वो उस कमसिन हसीना से शादी करे और उसे अपने साथ अपने कूचा ओ बाज़ार दरबार ओ महल ले जाए।
उसने अपने हुक्मरानों को हुक्म दिया और उस कमसिन हसीना को उसकी मर्ज़ी के खिलाफ उठा कर अपने कूचा ओ बाजार ले चले।
महाराजा जो की उस कमसिन हसीना के हुस्न में खो चुका था तो उसी रात उसने उस कमसिन हसीना से गैर ताल्लुक जिस्मी ताल्लुकात बनाने का फैसला किया।
जब शब से सुबह हो चुकी थी और महाराजा अपने आतक से बाहर न आ पाया। तो पहरेदारों ने अंदर झांकने की कोशिश की और देखा अंदर का नजारा बेतहाशा हैरतअंगेज था महाराजा का जिस्म बिस्तर से नीचे सुर्ख और नीले रंग में अकड़ा हुआ जमीन पर पड़ा था और वो हसीन दिलरुबा वहाँ मौजूद नहीं थी।
हकीमों की आमद पर अंदेशा लगा की वो कमसिन हसीना एक दुख्तर समी ( विषकन्या , जहरीली लड़की )थी।
अब सवाल यह पैदा होता है की दुख्तर समी ( विषकन्या ) किसे कहते है।
तो कदीम हिंदुस्तान में यह किस के हुक्म पर काम करती थी और उस लड़की ने किस तरह अपने जहर से महाराजा को हलाक किया।
तो आइए यह जाने के लिए तारीख ए किताब के वर्को को पलटते हुए यह जानने की कोशिश करते है।
अज़ीज़ ए ख्वातीन ओ हज़रात हिंदी जुबां में विष की एक शक्ल बिष होती है जिसके माने जहर होता है हिंदी जुबां में व ओर ब आपस में बदल भी जाते है और शिन और सीन भी बदल जाते है इसीलिए बिष और विष दोनों एक ही मायने के मतहाबिल है।
विष से मिलता जुलता फारसी का एक हर्फ वश है जिसके मायने मानिंद के होते है।
जैसे की माह वश चांद के मानिंद और परी वश यानी की परी के मानिंद और हुस्न ए हूर वश यानी की हूर के हुस्न के मानिंद
विष कन्या हिंदुस्तान भर में कातिलों की एक खुफिया तनजीम थी।
यह तंजीम ऐसी खूबसूरत हसीनाओं पर की जाती जिन्हें देखने वाला उन्हे तकता ही रह जाता ओर इन हसीनाओं का पसीना खून थूक तक ज़हर आलूद ओ सराबुर हुआ करता था
यह अपने शिकार को सिर्फ एक मुहब्बत भरे बोशे से ही हलाक कर दिया करती थी
विषकन्या तैयार करने से पहले कदीम हिंदुस्तान में यह रिवाज़ था की गांव की गरीब मिश्किन खूबसूरत लड़कियों को खरीद ओ फरोख़ कर के लाया जाता ओर उन्हें उनके बचपन से ही खाने और पानी में एक मिकदार में ज़हर दिया जाता ता हम जेसे जेसे उनका जिस्म ज़हर को अपने आप में संभालता वैसे वैसे ज़हर की मिकदार बढ़ाई जाती कितनी लड़कियां तो इस दौरान ही फौत हो जाती मर जाती।
इन लड़कियों को बेहतरीन खुराक ओ तालीम ए तरबियत से सजाया जाता ओर 16 से 18 की उम्र तक पहुंचते पहुंचते यह लड़कियां पूरी तरह से विषकन्या बन जाती है
और कमसिन जिस्म की मालिक और एक होशरूबा ( होश उड़ा देने वाला हुस्न ) हुस्न के नमूनों में तबदील हो जाती
मुनासिब खुराक और महंगे लिबास ओ दीगर चीजों से यह हसीनाएँ इतनी हसीन दिखती के इन्हें देखने वाला बस देखता ही रह जाता
ऊपर से अदब ओ आदा
बिला की खुश लीबाशी और
शामशीर जनि से लेकर तीरंदाज़ी
ओर रक्स ( नाचना ) में भी महारत रखती
यह हसीन और नोखेज़ बालाएँ ऐसी होती थी के किसी भी साधु जोगी फकीर भी इन्हें देख कर अपने होश ओ हवास खो बैठते
तब इन हसीनाओं को इनके खरीदार के मुत्तालिक उन्हें बेच दिया जाता और कत्ल -ऐ -आम किए जाते हैं ।
