वैक्सीनेशन प्रेफरेंस …
वैक्सीनेशन प्रेफरेंस …
वैक्सीनेशन प्रेफरेंस … सोसाइटी के पार्क में, हम चार वरिष्ठ नागरिक की चर्चा के बीच, एक 27 वर्षीय लड़का साथ की बेंच पर आ बैठा था। हममें से एक बंधु वर ने उसे मॉस्क नहीं लगाया देखा तो सहज कहने से स्वयं को रोक नहीं सके थे।
उन्होंने कहा - बेटा मॉस्क लगा लिया करो, कोविड की दूसरी लहर ज्यादा खतरनाक है।
लड़का पता नहीं किस बात से चिढ़ा हुआ आया था। उसने अभद्रता से उत्तर दिया -
देखिए अपना ज्ञान अपने पास रखिए। आप जो चार दिख रहे हैं ना, अगर ना होते तो अब तक हमारा वैक्सीनेशन हो जाता। आप लोग गुड फॉर नथिंग हैं। मगर संसाधनों से हमें वंचित कर रहे हैं।
मेरे तीन साथी उसके उत्तर देने से चिढ़ गए। एक ने कहा - दिखते पढ़े लिखे हो मगर बात करने का शिष्टाचार नहीं आया है।
वह लड़का प्रत्युत्तर में व्यंग्यात्मक रूप से हँसा था। यह देख मेरे तीन साथी ने वहाँ से उठ, चले जाने का विकल्प लिया। मैं, मगर वहीं बैठे रहा था। मेरे इस देश ने मुझमें, ऐसे अपमान सहन कर सकने की मानसिकता पैदा कर दी थी।
लड़का, मुझे देख हँसते हुए बोला - अरे, आप ने बहिष्कार एवं बहिर्गमन नहीं किया, विपक्षी दलों जैसा?
मैंने भी हँसते हुए कहा - बेटे, मैं विपक्षी नहीं, आपके पक्ष का ही हूँ।
लड़के ने अब मुझे गौर से देखा - आप, अपने को युवा दिखाना चाह रहे हैं।
मैंने कहा - नहीं, मेरा मतलब है मैं, वैक्सीन नहीं लेना चाहता था। ताकि वह आप जैसे युवाओं को मिल सके।
लड़के ने पूछा - फिर भी, ले तो ली होगी ना, आपने?
मैंने सीधा उत्तर नहीं देकर उससे, उलटा प्रश्न किया - आपके पापा, मम्मी कहाँ हैं?
उसने कहा - गाँव में हैं।
मैंने पूछा - अभी उनको वैक्सीन लगी या नहीं।
लड़के ने कहा - नहीं, अभी 60 के नहीं हैं। अभी उनका नंबर नहीं आया है।
मैंने कहा - नंबर आएगा तो क्या तुम उन्हें नहीं लगवाएंगे?
लड़का समझ गया था कि मैं क्या कहना चाह रहा हूँ। इस बार उसने उत्तर विनम्रता से दिया - हाँ, अंकल लगवाने के लिए मैं ही, उन्हें अस्पताल ले जाऊँगा।
अब जो मैं कहना चाहता था वह कहने का अवसर मुझे मिल गया था। मैंने कहा - मैं, वैक्सीन नहीं लेना चाहता था। लेकिन मेरे बेटे-बहू ने जबरन मुझे लगवाई है। मैं तो यही चाहता था कि पहले उन्हें लगे। वह देश और समाज के लिए जो कर सकते हैं, मैं नहीं कर सकता हूँ, अब। उनका और आपका होना अधिक उपयोगी एवं अच्छा है, राष्ट्र विकास के लिए।
लड़का बोला - सॉरी, अंकल! मैं परिदृश्य को इस तरह नहीं देख सका था।
मैंने कहा - बेटे, सॉरी तो मुझे कहना चाहिए, हम जो आज वरिष्ठ हैं, उन्हें विरासत में देश की जनसंख्या 50 करोड़ मिली थी। हमने दूरदृष्टि नहीं रखी इससे यह आज 135 करोड़ है। अभिप्राय यह कि संसाधन कम एवं लोग ज्यादा होने के लिए जिम्मेदार हम वरिष्ठ नागरिक ही हैं।
लड़का समझ नहीं पाया था कि वह, मेरी बात को सहमत करे या असहमत।
मेरा अब मेडिसिन का समय हो रहा था। मैं उठ कर आने के लिए खड़ा हुआ था।
तब मुझे अचंभित करते हुए, लड़के ने मेरे चरण स्पर्श किए थे। कहा -
नहीं, अंकल यह जनसंख्या आप जैसे जिम्मेदार व्यक्ति ने नहीं बढ़ाई है ….
