Vijay Kumar Vishwakarma

Children Stories Inspirational

4  

Vijay Kumar Vishwakarma

Children Stories Inspirational

तूफान

तूफान

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"तूफान .... आया आया तूफान .... भागा भागा शैतान .... तूफान ......"


क्लास के कुछ बच्चे एक पुरानी फिल्म के गाने की लाईनें बेसुरे अंदाज में गुनगुना रहे थे । रोहन की आँखों में हमेशा की तरह आँसू आ गये । उसकी क्लास के कुछ बच्चे अक्सर तूफान तूफान कहकर रोहन को चिढ़ाया करते थे । कुछ दिनों से टीवी के समाचार चैनलों में तूफान आने की खबरें चल रही थीं । रोहन की क्लास के बच्चों को उसे चिढ़ाने का मौका मिल गया । तूफान शब्द सुनते ही रोहन के रोंगटे खड़े हो जाते और आँखें नम हो जातीं ।


स्कूल से घर लौटते हुए रास्ते में एक बगीचा था जहाँ बेर के कुछ पेड़ भी लगे थे । रोहन के सहपाठी मीठे मीठे बेर की लालच में दौड़ते हुए बगीचे की ओर भागते और रोहन अपने घर लौट आता । उस दिन अनमने रोहन को बगीचे की ओर खींचते हुए उसके सहपाठियों ने कहा कि मीठे बैर खाओगे तो क्लास की कड़वाहट भूल जाओगे ।


रोहन काफी दिनों बाद बगीचे के अंदर गया । उसके सहपाठी बेर तोड़ने और उन्हें बिनने में जुटे रहे जबकि रोहन बगीचे के अन्य पेड़ों को छूकर अपनापन महसूस कर रह था । उसे कुछ दूर पर एक पेड़ को घेरे कुछ लोग नजर आए । वे ऊपर की ओर पेड़ की शाखाओं को देखते हुए कुछ योजना बनाते दिख रहे थे । रोहन कौतूहलवश उनके पास पहुँचा । उस पेड़ की एक शाखा पर मधुमख्खियों को बड़ा सा छत्ता लगा था । वहाँ मौजूद लोग छत्ता निकालने की योजना बना रहे थे । रोहन उनकी बात सुनकर अचानक कांप उठा, उसकी आँखें छलक आईं ।


रोहन हाथ जोड़कर गिड़गिड़ाया - "अंकल .... आप लोग उनका घर मत तोड़ो .... उनका घर उजाड़ कर क्या मिलेगा आप सब को ?" "ढ़ेर सारा शहद ... और क्या....?" - हंसते हुए उनमें से एक शख्स बोला । रोहन को तुरंत कोई जवाब नही सूझा । वह कभी मधुमख्खी के छत्ते की ओर देखता तो कभी उन अजनबियों को जो उसे उपहास भरी नजरों से घूर रहे थे । तभी रोहन को कुछ ध्यान आया, बोला - "शहद तो बाजार में मिल जाता है न .... उसके लिए बेचारी मधुमख्खियों का घर क्यों तोड़ रहे हैं ?"


उनमें से एक आदमी रोहन को एक ओर ढ़केलते हुए बोला - "परे हट .... बाजार में क्या मुफत में मिलता है शहद ....?" रोहन हतप्रभ था, तभी एक दूसरे शख्स ने कहा - "बच्चे जाओ अपना काम करो .... हम ये छत्ता तोड़ कर इससे शहद निकालेंगे और बाजार में बेचेंगे तो रूपये मिलेंगे ... समझे ।" रोहन निराश होकर घुटनों के बल बैठ गया । सहसा उसे कुछ सूझा, बोला - "अगर मैं बदले में आपको रूपये दूँ तो ?" वहाँ पर मौजूद सभी लोग चौंक पड़े । उनमें से एक आदमी बोला - "कितना रूपया है तेरे पास ?" "ढ़ेर सारा - ।" रोहन उठते हुए बोला और घर की ओर भागते हुए चिल्लाया - "मैं अभी लेकर आता हूँ ।" वे लोग हैरानी से उसे देखते रह गये ।


कुछ देर बाद रोहन हांफते हुए वापस लौटा । उसके हाथ में एक गुल्लक था । रोहन गुल्लक उनकी ओर बढ़ाते हुए बोला - "ये लो ... मैं इसमें दो साल से पैसे इक्ठ्ठा कर रहा हूँ ... आप सब ले लो ... लेकिन उन मधुमख्खियों का घर न उजाड़ो ।" कहते कहते रोहन की आँखें भर आई । छत्ता तोड़ने की लगभग पूरी तैयारी कर चुके वे सभी लोग एक दूसरे का चेहरा देखने लगे । उनमें से एक आदमी आगे आया और रोहन का गुल्लक लेकर उसके वजन का अनुमान लगाते हुए गुल्लक हिलाकर देखा ।


उस आदमी ने अपने अन्य साथियों की ओर एक नजर डालकर रोहन के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा - "बच्चे एक मधुमख्खी के छत्ते के लिए तुम अपने दो साल की जमा पूंजी देने को तैयार हो .... आखिर इस छत्ते में ऐसी क्या बात है ?" रोहन अपनी हथेलियों के पिछले भाग से अपने गालों तक बह आये आँसुओं को पोंछते हुए बोला - "वो छत्ता कितनी सारी मधुमख्खियों का घर है .... उनका घर उजड़ गया तो वे कहाँ रहेंगी ... मर जायेंगी बेचारी .... जैसे मेरी माँ मर गई थी ..... उस तूफान में ।"


बेर खाने आये रोहन के सहपाठियों सहित वहाँ मौजूद प्रत्येक शख्स स्तब्ध रह गया । मधुमख्खियों के छत्ते की ओर देखते हुए उन लोगों की पलकें कुछ पल के लिए बंद हुईं मानों मधुमख्खियों को तसल्ली दे रही हों कि वे अब सुरक्षित हैं । उन लोगों ने रोहन का गुल्लक वापस कर दिया और एक ओर लौट गये । रोहन के सहपाठी मुठ्ठी में लिए बेर फेंक कर रोहन से आकर लिपट गये ।



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