Turn the Page, Turn the Life | A Writer’s Battle for Survival | Help Her Win
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पुनीत श्रीवास्तव

Others

4.0  

पुनीत श्रीवास्तव

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टीचर्स कॉलोनी !

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जीवन का एक बड़ा हिस्सा टीचर,कॉलेज और यूनिवर्सिटी से जुड़ा है ,पढ़ाई लिखाई के लिए नही बल्कि पापा के बुध्द स्नातकोत्तर महाविद्यालय कुशीनगर में प्रवक्ता होने के कारण । सिर्फ इसी वजह से जहां जहां भी पढ़ाई हुई लगता था स्टाफ टाइप पास मिला है जैसे रेलवे के लोग ट्रेनों में इस्तेमाल करते हैं न ठीक वैसे ,कभी भी किसी प्रोफेसर डॉक्टर साहब से किसी तरह का भय नही हुआ। बनारस हिंदू विश्वविद्यालय हो या रूहेलखंड विश्वविद्यालय ये वाली फीलिंग उन सभी को होती होगी जिनके पिता या माँ इस पेशे में हैं या रहे हैं ।

हमारे कॉलेज (कुशीनगर)से जुड़ी यादों में टीचर्स कालोनी भी है जहाँ रहने को तो आठ परिवार ही रहता रहा पर समय के साथ साथ नए पुराने आते जाते भी रहे। सुभाष राव चाचा जी ,उदयभान चाचा जी ,गणेश शुक्ला चाचा जी ,अखिलेश सिंह चाचा जी ,जे पी उपाध्याय चाचा जी ,आर एन झा चाचा जी ,बी बी सिंह चाचा जी ,रामप्रीत तिवारी चाचा जी ,डी एन त्रिपाठी चाचा जी ,आर एस सिंह चाचा जी।

नाम के आगे श्री नही लगाए क्योंकि हमलोग ऐसे ही बुलाते थे आदर भाव में कोई कमी कोई नहीं मानता क्योंकि सारे लोगों के बच्चे एक दूसरे को ही ऐसे ही जानते थे।पर इन सब चाचा जी लोगो को हम लोग इनके बच्चों के वजह से जानते थे। 

धर्मेंद्र राव के पापा ,उमा दीदी नवीन भईया के पापा,सिद्धार्थ के पापा ,जयेश भईया रुचि शुचि के पापा ,राहुल के पापा ,जयशंकर के पापा,नवीन के पापा ,माधवी दीदी (जिनसे फेसबुक पर जानपहचान हुई)के पापा,और भी बहुत से लोग जिनके नाम नही याद या जो सीनियर रहे पर जानते जरूर थे फलाने डिपार्टमेंट वाले फलाने चाचा जी के लड़के हैं ।

एक परिवार की तरह था अब भी है जिनसे अभी भी सम्पर्क बना हुआ है ,बहुत से लोग अपने अपने रिटायरमेंट के बाद हटते चले गए धीरे धीरे सब निकल गए अपनी अपनी जड़ों को वापस अपनी सहूलियत के हिसाब से अपने नए पुराने घरों की ओर ।

गणेश शुक्ला ,रामप्रीत तिवारी ,आर डी पाल ,जे पी उपाध्याय चाचा जी अब हमारे बीच नही रहे ,

एक समय था जब रौनक थी उस कॉलोनी में घर के आगे बजाज की स्कूटर खड़ी रहती थी उन आठ घरों में लोग रहते थे जिन्हें हम जानते थे जिनके बच्चे हमारे साथ पढ़ते थे बड़े भाई और बड़ी दीदी लोग थीं एक पूरा परिवार की तरह था।

एक और ख़ास बात कॉलेज की जातिगत गुटबाज़ी प्रधानाचार्य की लड़ाई और डिपार्टमेंटल पॉलिटिक्स के बीच भी इसका प्रभाव किसी के परिवार का किसी के परिवार पर कभी नही पड़ा ,

एक दूसरे के बच्चों को कभी इसकी कडुआहट कभी महसूस नही होने दिए लोग ये अच्छी बात रही।

अब का क्या हिसाब है मालूम नहीं ।हर दौर की कहानी होती है आज की भी चल रही होगी 

पर जो ज़िंदगी वहां की जी चुके हैं लोग या जिन्होंने महसूस किया है वो ही जानते हैं इस कॉलेज की नींव को जिसने अपने पसीने से सींचा है वो वहां रहा करते थे !

टीचर्स कॉलोनी हमारे कॉलेज की ।



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