पुनीत श्रीवास्तव

Others

3.5  

पुनीत श्रीवास्तव

Others

सरस्वती शिशु मंदिर

सरस्वती शिशु मंदिर

2 mins
3.0K


सरस्वती शिशु मंदिर मे पढ़ाई के दौरान आचार्य जी लोग घर घर जा के भी बच्चों की गतिविधियों को जानते थे, आजकल होता है कि नहीं मालूम नहीं,

हमारे मोहल्ले में शाम को कोई धोती कुर्ता पहने नज़र आ जाता तो हम अपने साइकिल के डग्गे, कांच की गोलियाँ, मछली पकड़ने की कटिया, लट्टू जो भी उस समय की घोर आपराधिक गतिविधि थी स्कूल के हिसाब से, फेंक फाक के मम्मी के पास भागते कहते, कोई काम है मम्मी ??

सवाल में मासूमियत अनिवार्य थी ओवरएक्टिंग से परहेज़ भी जरूरी था पर माँ तो माँ थी, झट से कहती आचार्य जी लोग आये हैं क्या ???

अगर वो धोती कुर्ते वाले लोग सिर्फ शक वाले आचार्य जी होते तब तो दरवाज़े कोई आवाज़ न आती पर अगर वही लोग होते तो कड़क आवाज़ आ ही जाती 

पुनीत जी !!!! फिर बैठक आमने सामने चाय पानी साथ ही साथ सवाल भी प्रातः काल चरणस्पर्श करते हैं ? पढ़ाई करते है ? आदि आदि, मम्मी अकेले होती तो हम तीनों भाई को सुप्रीमकोर्ट से राहत जैसी मिलती पर,पापा तो कोई कसर न छोड़ते ये मछली मारते हैं कटिया लगा के पोखरे पर गोली तो पचास होगी इनके पास पुआल के ढेर पर छत से कूद जाते है उस समय तो आचार्य जी भी हँसते पापा मम्मी के साथ थोड़ा हम सब भी, लेकिन शोले फिल्म मे गब्बर हँसने के बाद गोली चलाता था न वही हाल अगले दिन स्कूल में होता

सबके सामने कक्षा में ये हैं भैया पुनीत श्रीवास्तव ये गोली खेलते हैं मछली भी मारते हैं फिर कान गरम गरम सा लगता था मुक्के पीठ पर धम्म धम्म क्लास घूम जाती थी कसम से पापा बहुत याद आते थे, काश वो शिकायतें न ही करते बच्चे की जान बच जाती


Rate this content
Log in