सर्द पूस की वो हसींन रात
सर्द पूस की वो हसींन रात
"इंडियन सॉल्जर्स को मल्टी लेयर कपड़े मुहैया कराने के पीछे का उद्देश्य नहीं समझ आया मुझें। पता लगाना पड़ेगा जुम्मन मियां, वर्ना अपने लोग हमें रिफ्यूजी की गिनती से भी बाहर कर देंगें।"खुद से ही बड़बड़ाते हुए जुम्मन ने अपनी हेकड़ी टाइट कर ली थीं।
एक दो ठिकानों पर फोन जोड़ तोड़कर जुम्मन ने अपना जुगाड़ कर ही लिया। और तो और रातों रात मल्टी लेयर कपड़े के जोड़ें भी बनवा लियें।
"वाह जुम्मन वाह! बहोत ख़ूब। क्या मामला सेट किया है तुमनें। अब तो सरकार हमसे खुश होंनी ही होंनी है, समझो काम फत्तेह!!"
"अपनेआप से क्या बड़बड़ाते रहते हो जुम्मन मियां! कुछ हमें भी गौरतलब करते रहो।"सलीम शेख ने अपने होनेवाले कज़िन जीजा से जिज्ञासावश पूछ ही लिया।
"अरे होने वाले साले सा'ब! कुछ नहीं, बस यूँही इस वक्त की सर्दी के मौसम को देख सोच रहे थे कि, क्या हाल होता होगा अपने सिपाहियों का सरहद पर, हैं ना!!"
जुम्मन ने बात पलटते हुए LOC के इलाके को नज़रंदाज़ किया। और अपने कज़िन साले साहब की जानबूझकर चापलूसी भरी लीपापोती करने लगा। और बेमतलब की बातों में उलझाते हुए उन्हें अपने साथ हवेली के भीतर ले गया।
लद्दाख की सरहदों पर फ़ौजियों की ज़िंदगी बसर कर आये मेजर सलीम शेख को पहले से ही डाउट था अपने इस कज़िन जीजा पर। लेकिन पुख़्ता सबूत के बगैर कुछ भी बोलना यानि अपने ही हाथों अपनी कब्र खोदने बराबर था।
बहरहाल, सलीम ने चुप रहना ही मुनासिब समझा। और, जुम्मन जीजा के संग आँख और कान खुले रख उनकें साथ हो लिया।जुम्मन की सलीम को सिकरीगंज के टीले से बेवज़ह हवेली के भीतर जनानखाने में ले जाने की कोशिशों से मेजर सलीम का शक़ और भी पुख़्ता हो गया।
जुम्मन जीजा को भनक भी न पड़े उस लिहाज़ में सलीम ने अपने फ़ौजी साथियों को जुम्मन के बारे में जानकारी हाँसिल करने का काम सौंपा। और खुद भी गूगल सर्च करते हुए सीरियाई वर्किंग होस्टल्स और होटल्स की सारी की सारी इन्फॉर्मेशन इकठ्ठा करने में जुट गया।
"सल्लू बेटा, क्या दिनभर इस डिब्बे में घुसे रहते हो। ज़रा हमसे भी गुफ्तगू कर लिया करो। फिर तो तुम भी इन सर्दियों का मज़ा लूटने से रहें। क्यों, ठीक कहा ना मैंने!"
हेना आप्पा से कौन बहस करता! - ये सोचकर सलीम ने अपने लैपटॉप में सर्च इंजन को लॉक कर दिया। और बंद करके अपनी अलमारी के आखरी दराज़ में सेफली रख दिया। और उड़ते हुए आप्पा के पास पहुँच गया। ताकि, उनके साथ पूस की सर्दी का मज़ा लूट सकें।
सलीम शेख को उसकी आप्पा यानि कि खुद की साली साहिबा के साथ मशरूफ़ देख जुम्मन मियां भी छिपते छिपाते अपने सबसे छोटे साले सलीम के कमरे में जाकर लैपटॉप को खँगालने लगें। खूब ज़हेमत उठाने पर भी कुछ हत्थे न चढ़ा उनकें।
उसी तिलमिलाहट में जुम्मन के हाथों से लैपटॉप गिरते गिरते बचा। कोशिशों के बावजूद शीशे का ताजमहल लुढ़कते हुए पायदान पर जा गिरा। वो तो ग़नीमत थी कि, ताजमहल चकनाचूर न हुआ। वर्ना, आज तो सबके सामने जुम्मन मियां की असलियत उन्हें सलाखों के पीछे का रुख़ दिखा देती।
आहट सुनकर सलीम अपने कमरें की ओर लपका। कॉरिडोर में रोशनी की कमी के चलते उसे अंधेरे में सिर्फ़ किसीकी परछाई देखी। पर वह समझ न पाया कि किसीको उसके कमरे में इतनी दिलचस्पी क्यों कर हो सकती है भला!!
ढलती सांझ को रात में तब्दील कर रही थी। तब कमरे में कौन होगा, इसी उधेड़बुन में सलीम को चैन न आया। और करवटें बदल बदलकर ही रात का इंतज़ार कर रहा था कि, उसके कान बजने लगे।
"सल्लू मियां, भई कहाँ हो? ईद का चाँद हो गए हो, हें। कल से आये हो और अपने जिगरी दोस्त से भी पर्दा किये कमरे में ही छिपकर बैठें हो!"इमरान अमीन की गला फाड़ आवाज़ें सुन सलीम कल रात वाली बात को भुलाकर अपने जिगरी दोस्त को मिलने के लिए बेताब हो उठ खड़ा हुआ।
काले वाले हेंड बैग में अपना लैपटॉप रखते हुए सलीम ने कुछ और कपड़े भी उस पर रख दिए। और सीढ़ियों से स्लाइड करते हुए उसनें दोनों मंज़िलों को पलक झपकते ही पार कर ली।
"इम्मू बेटा, कितने बड़े हो गए हो। माशाल्लाह, अब तो मूँछे भी फूट आयीं है देखों।सलीम के जाते ही तुम् भी तो ईद का चाँद बन जाते हों।कभीकभार इधर का रुख़ भी तो बदल दिया करो।तुम्हें ही देख कर हम सलीम की गैरमौजूदगी की ख़लिश को भुलाने में रहेंगें।"
आप्पा ने इमरान को उसके बचपन के नाम से पुकारते हुए अपनापन ज़ाहिर कर दिया।इमरान भी भावविभोर हो उठा। आगे कुछ कहता उससे पहले ही सलीम की ओर उसकीं नज़र ठहर सी गई।और, सलीम से इशारा पाते ही अपनेआप को सँभालते हुए इमरान बाहर की ओर चलता बना।
"सल्लू और इम्मू, तुम दोनों कहाँ चल दिये इतनी जल्दी। शाम ढल चूकी है बेटा, और तुम तो यहाँ की पूस की बर्फीली सर्दी से ज़रा भी बेख़बर नहीं हो। फिर क्यों और कहाँ जाने की सोच रहे हो?"अम्मी ने एक ही साँस में सारी की सारी फ़िक्र बयाँ कर दी।
सलीम को अपनी अम्मी को जुम्मन मियां का सच कहकर परेशानियों के दलदल में नहीं फँसाना था। लेकिन, जाना भी जरूरी था। कज़िन ही सही पर तबस्सुम आप्पा का निक़ाह उस जुम्मन से होने से पहले उसके लिए तसल्ली करना बहुत ही जरूरी हो गया था।और उसके लिए बर्बस आज की रात ही खाली थीं।कल न जाने क्या क्या नए गुल खिलाएँ!!
सलीम मियां अपनी अम्मी का हाथ थामते हुए अम्मी को सोफे पर बिठाकर सिरहाने जा बैठा। और उनके पल्लू से लिपटते हुए रिक्वेस्ट मॉड में होले होले से बुदबुदाने लगा -
"अम्मी, आपके और अब्बू के ख़ातिर युद्ध छोड़कर यहाँ आया हूँ। फिर भी यहीं से उस युद्ध का हिस्सा बनना चाहता हूँ।"
"यानि कि, तुम् युद्ध लड़कर शहीद होने वाले हो! या अल्लाह! रहम कर मेरे बेटे पर। एक ही औलाद बचीं है हमारें बुढ़ापे को कंधा देनें के लिए।उसे तो हमारे आख़री वक्त के लिए मेहफ़ूज़ रखना मेरे मौला!!आमीन!
सौ आमीन"
"चाची जां, सलीम मियां, काम के वास्ते मेरे...लेकिन, काम तो करना ही होता है ना, अम्मी।"
"हाँ, पर, काम यहाँ बैठकर भी तो किया जा सकता है ना! तुम्हारे उस डिब्बे में घुस घुसकर। क्या नाम बताया था उस मुए का!!"
कहते हुए अम्मी सोच में पड़ गई।और फिर झपाक से बोल पड़ी - "टोप्लेप, टॉलेप, ले...टॉप... ऐसा ही कुछ अटपटा सा नाम बतलाया था, जुम्मन मियां ने, हाँ।और...उसके लिए इतनी सर्दी में बाहर जाने की क्या आन पड़ी है तुम्हें बेटा, हें?""अम्मी, माय डियरेस्ट डार्लिंग अम्मी! इमरान का घर कितनी दूरी पर है बोलों! और यहाँ रेंज नहीं आती है न्।
"आप जानती हो ना। नेटवर्क प्रॉब्लम से काम बिगड़ सकता है ना अम्मी।कुछ तो समझों। प्लिज़ अम्मी, मेरी प्यारी अम्मी। मान भी जाओ अब।"
सलीम की भोली सी सूरत देख अम्मी से कुछ और पल उसे रोका न गया। और सलीम अम्मी को प्यार से गले लगाकर उनके मत्थे आदरभाव से किस करते हुए इमरान के साथ उसके घर हमकदम हो चला।
दस बीस कदम की दूरी पर ही इमरान का घर था। फिर भी सलीम इमरान के साथ बातों में उलझता रहा। और उसी उधेड़बुन में दो नुक्कड़ पार करते हुए तीसरे नुक्कड़ तक चलता चला गया। और बरसों पुरानी उसकी पसंदीदा ईरानी की होटल में अदरक वाली कड़क मसालेदार चाय और बन पाव खाने का ऑर्डर देते हुए अंदर गया। और उसके पसंदीदा टेबल नंबर 11 पर जाकर बैठ गया।
इमरान को सलीम के आज के तौर तरीके कुछ हद तक अजीबोगरीब लगें। और वो उससे पूछने की ताग में था तभी अकरम, उन दोनों का चिपकू दोस्त। उसको सामने से आते देख इमरान ने चुप्पी साध ली।बन पाव और मसाला चाय की चुस्कियाँ लेते हुए बड़बोले सलीम को इमरान बस एकटुक देखता ही रहा।
चाय का आखरी घूँट पीते हुए भी सलीम इमरान से नज़रें चुरा रहा था। बहरहाल इमरान की अक्ल ने जवाब दे दिया। उसके चलते वह हॉटल से उठ खड़ा हुआ, और अपने घर की ओर अग्रसर होते हुए चलता बना।उसने एक बार भी सलीम की ओर नज़र न घुमाई। मानों, वो उसके लिए बिलकुल भी अन्जान हो।
सलीम इस बात से बिल्कुल भी बेख़बर नहीं था। पर वह, अपने पीछे पीछे आये हुए जुम्मन मियां को नज़रंदाज़ करने का बहुत बड़ा जुर्माना भरने जा रहा था। अपने जिगरी दोस्त की नाराज़गी अपने सिर ओढ़ कर। और, दुःख की बात तो यह थी कि, इन सब मामलों से उसका प्यारा सा दोस्त इमरान बिल्कुल भी अन्जान था।
हॉटल का बिल अदा करने के बाद भी सलीम अकरम से बतियाते हुए वहीं कुछ पल खड़ा रहा।
कनखियों से जुम्मन की ओर देखते हुए भी अकरम की बातों में बराबर का ध्यान देने की कोशिशें कामयाब हो रही थीं। अकरम से बतियाने से जुम्मन के साथ अकरम को ज़रा भी शक़ न होने दिया कि बेवजह ही वो गुफ़्तगू करनेवालों में से एक बन चूका था।अपने देश को घुसपैठियों से बचाने के मुतल्लिक।
सलीम की ओर से कोई हरक़त न पाते हुए थक हार कर जुम्मन मियां अपनी होनेवाली बेगम के घर बेगमगंज की ओर बढ़ते चले गए।अपने नौकर छुटकन को जुम्मन मियां के पीछे लगाकर मेजर सलीम, इमरान के घर जा पहुँचा।सर्द हवाओं को झेलते हुए सलीम इमरान के ऑंगन में जा पहुँचा। के जहाँ जलते हुए चूल्हें के पास अपनेआप को सेंकते हुए इमरान अपनी अम्मी संग बतिया रहा था। और उनको सब्ज़ियाँ काटने में हेल्प भी कर रहा था। तभी सलीम की आवाज़ में उसे अपना नाम पुकारे जाने का इल्म हुआ।
अम्मी के चहरे पर कोई शिकन न बदलने पर इमरान को लगा कि, शायद उसके कान बज रहे होंगें। वरना अम्मी जरूर कुछ न कुछ तानें कसती या कुछ उटपटांग बोलती।
फिर एक बार ''इमरान, मेरे प्यारे यार इमरान!" आवाज़ें कानों में गूँजने लगी।
"अभी आया सम्मा।" कहकर सलीम को पुकारते हुए वह अपने घर से बाहर की ओर लपक लिया।
"निक़ाह करने लायक हो गए हैं दोनों के दोनों। फिर भी बचपना नहीं गया इन दोनों का!" इमरान की अम्मी और अब्बू आपस में बातें करने लगे।
बरामदे की ओर लपका ही था इम्मू। की, उसने देखा उसका जिगरिया दोस्त सलीम क़दम दर क़दम टेढ़ा मेढ़ा होकर चल रहा था। या यूँ कहो, ख़ुदको घसीटकर ला रहा था।
"सली....म, स.... ली.....म! तुम ठीक तो हो! यूँ लड़खड़ा क्यों रहे हो? क्या हुआ?" इमरान का सूर टूटता चला जा रहा था। और उसकी आँखें डबडबा रही थीं।
सलीम को अपने कंधों पर उठाए वह सामने वाली कोठी के भीतर दौड़ता हुआ गया और
"डॉक्टर सा'ब, डॉक्टर सा'ब! जरा जल्दी से बाहर आइए। देखिए ना इस सलीम को, कुछ बुदबुदाते हुए चुप सा हो गया है। अब कुछ नहीं बोल रहा है। क्या हो गया अचानक से इसे?!"
इमरान की आँखों से गंगा यमुना बहने लगे। उसकी आवाज़ भी भारी होती जा रही थीं। और वो आगे कुछ भी कहने में असफल हुए जा रहा था।
डॉक्टर ने सलीम को चेक करके उसे इंजेक्शन देकर आराम करने का फ़रमान जाहिर किया। और सलीम को वहीं पर सोने का इंतज़ाम करवाकर डॉक्टर बाहर चले गए।
इमरान के खस्ताहाल देख सलीम को बहोत बुरा लग रहा था। पर अपने देश को बचाने के लिए कुर्बानियाँ देनी जायज़ होगी। यह सोच क़ायम रखते हुए सलीम यूँही ऑंखें बंद कर सोने की एक्टिंग करता रहा।तक़रीबन दो घंटे सलीम को यूँही बेजान सा पड़ा देख इमरान की आँखें पथराने लगीं और वो अपने दोस्त के सिरहाने ही सो गया।
ढाई घंटे बाद कुछ लोगों की ख़ुसूरपुसूर की आवाज़ें आने लगीं। उसे सुनकर मेजर सलीम एलर्ट हो गया, लेकिन उसे इमरान को एलर्ट करने का वक्त न मिला।
"ये लो हकीमुल्ला 'हैंड ग्रेनेड'। इसका इस्तेमाल कर अपने रक़ीब का काम तमाम कर दीजिए।"जुम्मन ने अपने साथी डॉक्टर हकीमुल्ला खां से कहा।
"जुम्मन मियां, ये मुझसे न हो पायेगा। ये.. ये.. मारने - मरवाने का काम तुम ही कर लो। मेरे तो हाथ पैर फूलने लगे हैं।"
"तुम हकीम के हकीम ही रहें हकीमुल्ला! अल्लाह जानें सीरियाई पुलिस ने तुममें क्या ख़ास बात देख ली कि, तुम्हें मेरा गुरु बनाकर यहाँ भेज दिया!!"
जुम्मन झुँझलाते हुए डॉक्टर के पीछे पीछे चल पड़ा और मौक़ा देख सलीम की खाट को तीन और बंदों की हेल्प से उठवाकर बरामदे से बाहर खुले मैदान में ले आया।सलीम को झंझोड़तें हुए एक दो बार चेक भी किया कि कहीं वो होश में तो नहीं है! वर्ना, उसे तमाम करने के चक्कर में सुबह समझेगा कि, ख़ुद ही हलाल हो गया।
सलीम की ओर से कोई हरक़तें न होने पर बेफ़िक्री में उल्टी दिशा में दौड़ता चला गया। खुद काफ़ी दूर आ चूका है, ये जानकर जुम्मन ने 'हैंड ग्रेनेड' की पिन मुँह से तोड़ी और सलीम की ओर फेंककर औंधे मुंँह भागता हुआ अली रज़ा की मज़ार पर तय किये हुए वक्त से पहले ही जा पहुँचा।
"सलाम वालेकुम जुम्मन मियां! सर्द हवाओं का रुख़ बदलते हुए कहाँ भागे जा रहे हैं आप? जरा तशरीफ़ तो रखिये। हमसे भी थोड़ी गुफ़्तगू कर लीजिएं।"
आवाज़ जानी पहचानी सी लगीं पर अन्दाज़ा न लगा पाया जुम्मन। और रंगे हाथों पकड़ा गया। वो भी बैंड बाजा बारात के साथ!ढोल ताशे भी बजने लगें। एक ओर से इमरान और दूसरी ओर से सलीम को आता देख जुम्मन को तो काटो तो खून भी न निकलें वैसी हालत ख़स्ता हो गई।
उसे समझतें देर न लगीं कि सलीम ने एक्टिंग ही की थी। और वो ख़ुद ही उसके झाँसे में फँस गया था।पुलिसकर्मी और फौजियों के हत्थे लगने के पहले ही सर्द मौसम का फ़ायदा उठाते हुए जुम्मन ने सायनाइट का एक कश भरा और जहन्नुम की सैर पर अकेले ही निकल पड़ा। डॉक्टर को धरती पर अकेला छोड़ कर।
डॉक्टर की ख़ातिरदारी करने पर सारा का सारा प्लान उन्होंने अपने से ही उगल दिया। और, कई सारे वेपन्स भी बरामद किए गए डॉक्टर के तहख़ाने से।
सॉल्जर्स को मिलें मल्टी लेयर कपड़े की तश्करी करने के जुर्म में डॉक्टर को ipc 302 के तहत उम्रकैद की सज़ा फ़रमाई गई।इमरान, सलीम के प्लान में इम्पोरटेंट हिस्सा बनने की खुशी में जश्न मनाने के लिए आमादा हो गया।जुम्मन की असलियत जानने के बाद सलीम के दोस्त इमरान से हेना आप्पा का निकाह तय कर लिया गया।
सर्द पूस की हसींन रात को निक़ाह पढ़वाया गया।और अब मेजर सलीम इंजीनियर इमरान का साला बन गया।
