Dhan Pati Singh Kushwaha

Children Stories Inspirational

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Dhan Pati Singh Kushwaha

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सफलता परिश्रम से-न कि इच्छा से

सफलता परिश्रम से-न कि इच्छा से

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आज मीटिंग में विचार विमर्श के लिए विषय को पहले ही ग्रुप पर संदेश भेज कर तय कर लिया गया था कि आज होने वाली आभासी बैठक (वर्चुअल मीटिंग) में "सफलता सबको क्यों नहीं ?" विषय पर अपने विचार व्यक्त करने और मन में उठ रही जिज्ञासाओं को शांत करने का निर्णय लिया गया था। सभी बच्चे इस वर्चुअल मीटिंग में समय से ही जुड़ गए। औपचारिक अभिवादन और कुशल क्षेम के बाद ओम प्रकाश ने अपनी जिज्ञासा सबके सामने रखी।


इस दुनिया में हर व्यक्ति अपनी इच्छाएं पूरी करना चाहता है और उसके लिए अपने प्रयास करता है। इसके साथ - साथ में देवी देवताओं से मन्नते मांगता और वरदान प्राप्त करने के लिए उनकी आराधना भी करता है। फिर भी अपने मन की इच्छाएं सबकी पूरी नहीं पाती। इस संबंध में मैं सभी साथियों के विचार जानना चाहता हूं। कृपया आप लोग बारी - बारी से अपने विचार प्रस्तुत करें ताकि मेरी इस जिज्ञासा का समाधान हो सके।


साधना ने अपनी बात की शुरूआत संस्कृत के एक श्लोक के माध्यम से की।

 उद्यमेन ही सिध्यंति कार्याणि न मनोरथै:!न

नहि सुप्तस्य सिंहस्य प्रविशन्ति मुखे मृगा:।

इस श्लोक का अर्थ है कि उद्यम अर्थात प्रयत्न करने से कार्य में सफलता मिलती है केवल मन में इच्छा करने से नहीं । जिस प्रकार होते हुए शेर के मुंह में हिरण स्वयं प्रवेश नहीं करते हैं।तो केवल किसी लक्ष्य की मात्र चाहत अर्थात केवल ख्याली पुलाव से उस लक्ष्य की प्राप्ति संभव नहीं।लक्ष्य प्राप्ति के लिए सुनियोजित कार्यक्रम को सूझबूझ, धैर्य के साथ योजना के अनुसार कार्यान्वित करना होता है।इस का अभ्यास भी सभी को बचपन से ही कर लेना चाहिए।मन में यह विचार कि पहले यह हो जाए उसके बाद करेंगे। ऐसे लोगों का यह बाद वाला समय कभी नहीं आता। बाद में भी वे अपने को नहीं बल्कि समय को या परिस्थितियों को दोषी ठहराते हुए देखे जा सकते हैं।

रीतू ने साधना के मत से सहमत होते हुए इसी बात को आगे बढ़ाया। हम सब को भी कक्षा से गृह कार्य मिलता है ।विद्यालय से जाने के बाद अर्थात विद्यालय से छुट्टी होने और फिर अगले दिन विद्यालय आने तक हम सभी विद्यार्थियों को समान समय ही मिलता है। किसी को कम या ज्यादा तो नहीं लेकिन हमें से कुछ विद्यार्थी नियमित रूप से अपना गृह कार्य पूरा करके लाते हैं ।वे अपने खेलकूद, मनोरंजन और घर पर घरेलू कार्यों में माता-पिता की सहायता भी करते हैं । इसके विपरीत हममें से बहुत से विद्यार्थी अक्सर अपना गृहकार्य पूरा नहीं कर पाते। घर के लोगों को भी ऐसे बच्चों से शिकायत रहती है कि वे अपना कोई काम निश्चित दिनचर्या के तहत नहीं करते। ऐसे बच्चे समय से उठते ,सोते ,खाते -पीते ,खेलते -कूदते या घर के काम में सहयोग नहीं करते। ऐसी शिकायतें घरवालों की ओर से मिलती रहती हैं।अपना गृह कार्य को जैसे-तैसे पूरा करने के लिए ऐसे बच्चे  दूसरे विद्यार्थियों की ओर ताकते हैं कि किसी तरीके से अपना कार्य पूरा करके कक्षा में दिखा दें। वे जब कभी अपना कार्य जिसे वे अक्सर दूसरे बच्चों की अभ्यास पुस्तिका से करते हैं यदि वे ऐसा नहीं कर पाते हैं तो उन्हें कक्षा में शर्मिंदगी उठानी पड़ती है ।साथ ही जब अपना गृहकार्य पूरा नहीं कर पाते तो वे अपने अध्ययन में पिछड़ते चले जाते हैं। यूं तो उनकी भी इच्छा यही होती है कि वे भी कक्षा के मेधावी विद्यार्थियों के समान रूप से होशियार और विषय के जानकार बनें। सभी अभिभावक और शिक्षक भी यही चाहते हैं कि उनके सभी बच्चे प्रतिभाशाली हों। पर न तो वे कक्षा में गृह कार्य पूरा करके अध्यापक-अध्यापिकाओं को  दिखाकर एक छोटा सा लक्ष्य प्राप्त कर पाते हैं और अध्ययन में पिछड़े होने के कारण अपने आगामी अध्ययन कार्य में भी सफलता उन्हें नहीं मिल पाती और जब अध्ययन में सफलता नहीं मिलेगी तो आने वाले समय में वे अपने लक्ष्य को किस प्रकार प्राप्त कर सकेंगे। उनके जीवन में सफलता उनसे कोसों दूर रहती है। फिर वे कभी विद्यालय को, कभी शिक्षक को ,कभी शिक्षा प्रणाली को कभी सरकार को,कभी समाज को अर्थात खुद को छोड़कर सारी दुनिया को और दुनिया के बहुत सारे लोगों को दोषी ठहराते हैं। समय रहते वे अपने लक्ष्य को पूरा करने के लिए आवश्यक परिश्रम नहीं करते और आजीवन दुखी रहते हैैं।आज भी अपनी किस्मत को कोसने वाले लोग अपने समय के ऐसे विद्यार्थी रहे होते हैं।

रीतु की बात को थोड़ा आगे बढ़ाते श्रवण ने यह भी कहा कि इस दुनिया में भी हर व्यक्ति को ईश्वर की ओर से समान रूप से चौबीस घंटे का समय मिला हुआ है ।किसी को एक क्षण कम या एक क्षण भी अधिक नहीं मिला है। इसमें जो लोग धैर्य -नियोजन- साहस के साथ परिश्रम करते हैं वे सफल होते हैं ।और इन्हीं चौबीस घंटों के समय को असफल रहने वाले लोग हवाई-किले बनाने में और ज्यादातर दूसरों को दोष देते हुए ही दिखाई देते हैं। अपनी कमी कोई नहीं बताता । हर व्यक्ति अपने स्तर से सर्वश्रेष्ठ करने का प्रयास करता है ,अच्छा करता है। लेकिन प्रयास के नाम पर दिवा -स्वप्न देखने से कुछ हासिल नहीं होता ।उसके लिए हमें संसार का अवलोकन करते हुए अपने अपनी क्षमता देखकर लक्ष्य निर्धारित करना ,उसको नियोजित करना और उस पर धैर्य के साथ सूझबूझ से आगे बढ़ना और लगातार कार्य का निरीक्षण करते रहना होता है। जिससे कि यदि कार्यक्रम में किसी भी प्रकार के संशोधन की आवश्यकता हो तो हम उस में बदलाव करके अपने लक्ष्य की ओर अग्रसर होते रहें। यही सफलता का मूल मंत्र है । परिश्रम करके ही सफलता प्राप्त की जा सकती है ,केवल इच्छा से नहीं।


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