Dhan Pati Singh Kushwaha

Children Stories Action Inspirational

4.5  

Dhan Pati Singh Kushwaha

Children Stories Action Inspirational

समस्याएं और उनके हल

समस्याएं और उनके हल

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प्रतिदिन की भांति आज भी कक्षा के अधिकांश बच्चे गूगल मीट के माध्यम से आभासी बैठक (वर्चुअल मीटिंग )में भाग लेने के लिए ऑनलाइन जुड़ गए। हर रोज की भांति ही औपचारिक अभिवादन के उपरांत कुशल-क्षेम की जानकारी का आदान-प्रदान हुआ। आज अपनी जिज्ञासा व्यक्त करने वालों ने साधना पहली जिज्ञासु बनी।

साधना ने पूछा कि दुनिया में हर व्यक्ति हमेशा ही प्रसन्न रहना चाहता है। अपनी प्रसन्नता के लिए ही हर कोई विविध तरीकों से अपने - अपने स्तर पर अपनी समझ के अनुसार अपनी प्रसन्नता के लिए सर्वश्रेष्ठ प्रयास करता रहता है फिर भी विडंबना यह है कि इस संसार में दुखी लोगों की संख्या अधिक देखने को मिलती है। जब किसी से औपचारिक रूप से यह पूछ ले जाता है कि वह कैसा है और जब समझ लेता है कि यह कुशलता केवल औपचारिकता निभाने के लिए पूछी जा रही है तो वह भी अपना औपचारिकता का निर्वहन करते हुए कह देते हैं कि ठीक हैं। कभी किसी को किस बात का एहसास हो जाता है कि यह व्यक्ति केवल औपचारिकता पूरी करने के लिए नहीं पूछ रहा है । आपके प्रश्न करने की भाव भंगिमाओं से जब वह यह समझता है कि यह केवल प्रश्न नहीं है। प्रश्न कर्ता के आत्मीय भाव को समझने पर व्यक्ति अपने मन की गांठ फूलता है बातचीत में खुलापन आते ही उसमें ज्यों ही अपनेपन का भाव आता है तो वह अपने हृदय में छिपे हुए ग़मों को उड़ेल लेता है। अधिकांश लोगों को एक नहीं बल्कि अनेक समस्याओं से घेर रखा होता है। समाज में देखें तो बच्चे अपने माता-पिता से तो उनके माता-पिता अपने बच्चों से, मकान मालिक किराएदार से तो किराएदार मकान मालिकों से, सास बहू से बहू सास से, भाभी ननद से तो ननद भाभी, कोई लड़की अपने ससुराल वालों से तो किसी के घर के सदस्य उसके लड़के की ससुराल वालों से परेशान नजर आते हैं। अगर विद्यालय की बात की जाए तो अधिकांश विद्यार्थी अध्यापक -अध्यापिकाओं से और अध्यापक -अध्यापिकाएं विद्यार्थियों से परेशान हैं। विद्यार्थियों की शिकायत होती है कि उन्हें बहुत अधिक गृहकार्य दे दिया जाता है, खेलने कूदने का तो मौका ही नहीं मिलता । तो अध्यापक -अध्यापिकाएं बच्चों के उनके अध्ययन के प्रति जागरूक न होने की शिकायत करते हुए मिलते हैं। बच्चों और उनके माता-पिता के बीच में भी यही समस्या है अधिकांश बच्चों के माता-पिता का कहना है कि उनके बच्चे पढ़ते- लिखते नहीं, उनकी बात नहीं सुनते, हर समय खेल- टीवी या मोबाइल में लगे रहते हैं। जबकि बच्चे अपने माता-पिता द्वारा की जाने वाली टोंक-टांक से परेशान हैं । अधिकांश बच्चों का यह कहना है कि माता- पिता उनकी भावनाओं का ख्याल नहीं रखते । जब देखो तब -पढ़ लो, पढ़ लो और पढ़ लो की ही बात करते हैं । जरा सा टीवी के सामने बैठने पर, मोबाइल पकड़ लेने पर या खेलने लग जाने पर उन्हें बड़ी आपत्ति होती है। जरा सी देर होने पर बहुत जल्दी ही टोकने लग जाते हैं।

आकांक्षा ने साधना की बात का समर्थन करते हुए कहा बिल्कुल सही कह रही है साधना बहन। एक महिला जब पहले अपनी सास की बुराई करते करते नहीं थकती थी। फिर जब वह जब सास बनी है तो वह बहुओं के सारे दुःख-दर्द को भूल कर अपनी बहू में इतनी सारी कमियां निकालकर ने बुरी तरीके से प्रताड़ित करती है । कई महिलाएं समूह में बैठकर अपनी-अपनी बहुओं की कमियों की चर्चा मिर्च-मसाला लगाकर एक दूसरे से करती हैं । तो बहुएं भी किसी से कम नहीं । उन्हें भी जब मौका मिलता है तो वह अपनी- अपनी सास की कमियों के पिटारे खोल कर बैठ जाती हैं। यह संसार को आधुनिक परमाणु -मॉडल सा हो गया है जिसका अधिकांश भाग ऋणावेशित (नकारात्मकता से भरा) है। इसका अति सूक्ष्म भाग ही धनावेशित और उदासीनता (सकारात्मकता और तटस्थता) से युक्त है।

मैंने बच्चों से कहा आज मैं यह चाहता हूं कि आज की चर्चा की समस्याएं और उनके समाधान तुम लोगों के द्वारा ही आपस में विचार विमर्श से प्रस्तुत किए जाएं। मुझे आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास है कि तुम्हारे अपने विचारों का क्षेत्र काफी विस्तृत है और तुम सब भी इन समस्याओं पर विचार विमर्श करने और अपनी राय देने में पूर्ण सक्षम हो । इसके बाद भी यदि कोई असंतुष्टि की बात आती है या मुझे अनुभव होगा कि मुझे कुछ जोड़ना है तो मैं तुम्हारी चर्चा में शामिल हो जाऊंगा । अब तुम सब अपने विचार इन समस्याओं पर बारी-बारी से प्रस्तुत करो।

मुझे लगा ओमप्रकाश सचमुच अपने विचार व्यक्त करने के लिए पहले से तैयार था अपने विचारों को व्यक्त करने की अनुमति प्राप्त करने के बाद अपने विचारों को प्रस्तुत करते हुए कहा मेरा ऐसा मानना है कि जो जिस स्थिति में है वह केवल अपनी समस्याओं की ओर ध्यान देता है। दूसरे पक्ष के सामने जो कुछ भी समस्याएं होती हैं उनके बारे में बात करना तो दूर उनके बारे में सोचने का प्रयास भी विरले ही करते हैं। एक सास जब बहू थी तब उसको इस बात का पूरा अहसास था कि सास की कौन-कौन सी बातें, कौन सा व्यवहार बहू को अखरता है । एक महिला जो अपने मायके में अपने माता-पिता की लाड़ली थी। अपने पिता के घर को छोड़कर स्वीकार किए गए इस नए घर में उसकी सास से क्या -क्या अपेक्षाएं हैं? यह केवल उसे तब तक ही याद रहता है जब वह बहू होती है। सास बनते ही उसे उसके मन से वे सारी अपेक्षाएं डिलीट हो जाती हैं और उसके मन में बहू से क्या-क्या अपेक्षाएं हैं यह भावनाएं जन्म ले लेती हैं।  यही हमेशा से चले आ रहे वाद- विवाद, पसंद -नापसंद जैसे विषयों को लेकर विवाद का कारण बनता है। हसनैन के चेहरे के अभाव से लगता है कि वह बहुत ही महत्वपूर्ण बात हम लोगों के बीच में रखना चाह रहे हैं मैं आपसे निवेदन करूंगा कि हसनैन भैया को अपने विचार रखने की अनुमति प्रदान करिएगा।

मैं ओमप्रकाश की बात में थोड़ा सा और इतना चाहूंगा कि जिस तरीके से सास बहू के संबंधों को लेकर ओमप्रकाश भैया ने अपनी बात रखी। यही बात बाकी भाभी-ननद, मकान मालिक-किराएदार, बच्चों और माता-पिता, विद्यार्थियों और अध्यापक-अध्यापिकाओं के संबंधों के ऊपर भी अक्षरश: लागू होती है। संक्षेप में मैं यही कहना चाहूंगा कि एक पक्ष अपने को दूसरे पक्ष के स्थान पर रखे। हर बड़ा अपने उन दिनों को याद करें और उन अपेक्षाओं को याद करें जब जिसकी में दूसरा है। इसी तरीके से छोटा कल्पना करे कि आगे चलकर वह अगर इस स्थिति में आता है तो आने वाली समस्याओं को किस प्रकार दूर करेगा। इसका विचार और कल्पना करके ही वह अपना आचरण और व्यवहार करें तो यह समस्याएं संभवतः स्वमेव समाप्त हो जाएंगी।

तुम्हारे विचार बहुत मुझे बहुत ही परिपक्वता से परिपूर्ण मुझे और कुछ अधिक जोड़ने की आवश्यकता नहीं लगती। इन पर सार्थक चिंतन और अपने वास्तविक जीवन में व्यावहारिक रूप में लाने की आवश्यकता है। हम अपने घरों में भी शालीनता के साथ ही विचार रखेंगे तो यह समस्या निश्चित रूप से हल होंगी।


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