शरारती.
शरारती.
एक मध्यम वर्गीय परिवार में पति-पत्नी और उनकी दो संतान थी। बड़ी लड़की और छोटा लड़का था। दोनों पढ़ाई में तेज थे। परिवार एक शहर में जिल्हा अस्पताल को लगी हुई कॉलोनी में रहते थे। उसी कॉलोनी में अस्पताल में कार्यरत डॉक्टर भी नजदीक होने के कारण वही रहते थे। परिवार का मुखिया का कार्यालय भी अस्पताल के परिसर में था। मुखिया के बच्चे उसी कॉनवेंट में पढते थे जहाँ ज्यादातर डॉकटरों के बच्चे भी पढ़ा करते थे। स्कूल और कॉलोनी के मित्र वही होने के कारण वे फालतू समय में कॉलोनी में भी खेला करते थे। कॉलोनी की अन्य महिलाएं भी परिवार के मुखिया के पत्नी की तरह बच्चों को लाने स्कूल जाया करती थी। इसलिए उन सभी मातोश्रीयों में अच्छे संबंध बन चुके थे। कई परिवारों में अच्छे घनिष्ठ घरेलू संबंध स्थापित हो चुके थे।
परिवार में लड़की के तुलना में लड़का कॉफी शरारती था। वो अकसर खेलने-कुदने में कॉफी रुची रखता था। स्कूल की छुट्टी के बाद वो घर आने पर खिलौनों से खेलने लग जाता था। उसके माता को उसकी यह आदत अच्छी महीं लगती थी। उसकी माता बहुत ही अनुशासनबद्ध थी। उसका कहना था कि प्रथम स्कूल का पोषाक बदल कर घर का परिधान पहनना चाहिए और हाथ -पैर धोकर शांति से भोजन करने के बाद अन्य चीजें करनी चाहिए। लेकिन उनका सुपुत्र मातोश्री की बातों को नजर अंदाज कर देता था। उसकी एक और विशेषता थी। कोई भी खिलौना वो ज्यादा दिन सही-सलामत नहीं रखता था। उस खिलौनों को तोड़ -ताड़ के उसके पुर्जे-पुर्जे अलग कर देता था। फिर उन पुर्जों को फिर से जोड़ने का प्रयास करता था। एक खिलौने के पुर्जे दूसरे खिलौने में जोड़ के कोई तीसरी चीज बनने का प्रयास करता था। इन सब बातों की शिकायत उसकी मातोश्री और दिदी उसके पिता से हमेशा किया करते थे। लेकिन उसके पिता उसे इस कार्य के लिए कभी दंडित नहीं किया करते थे क्योंकि सपूत के पैर हमेशा झूले में दिखाई देते थे। उसके पिता को इस बात का यकीन हो चुका था कि उसका लड़का भविष्य में इंजीनियर जरूर बनेगा !। पिता को खुशी थी की उनका बालक कुछ- ना-कुछ करने में व्यस्त रहता हैं। अन्यथा खाली दिमाग याने शैतान का घर होता हैं।
शहर में एक मेला लगा था। वहाँ अच्छे खिलौने मिल रहे थे। बच्चे के जिद्द और खुशी के लिए पूरा परिवार मेले में गया था। वहाँ परिवार ने कॉफी मजे की थी। उस लड़के ने मेले में बहुत सारे खिलौने लिए थे। खिलौनों के साथ वो खेला करता था। उसके पास एक बड़ी सी डॉल याने गुड़िया थी। जिसे दबाने ने पर सीटी की आवाज गुंजती थी। किसी भी खिलौने का जब तक वो अंग-विछेदन नहीं करता और वो खिलौना कैसे कार्य करता इसका कार्य तंत्र का रहस्य जान नहीं लेता, तब तक उसे चैन नहीं पड़ता था। इसी रहस्य को जानने के लिए उसने उस गुड़िया के सभी अंग अलग-अलग कर दिए थे। तभी उस गुड़िया की कमर के नीच उसे एक प्लास्टिक की सीटी लगी हुई मिली थी। उस सीटी में से हवा गुजर जाने पर सीटी बजती थी। तब उसे समझ में आया की गुड़िया को दबाने से अंदर की हवा बाहर निकलती हैं। जिसके कारण सीटी बजती हैं। उसकी ये नई खोज थी। उसने उस सीटी को खेलने के लिए संभाल कर रखा था।
दूसरे दिन जब वो स्कूल से अपने मातोश्री के साथ लौटा था। हमेशा की तरह बिना स्कूल युनिफार्म निकाले सीटी को जोर-जोर से बजाने लगा। उसकी मम्मी उसके इस हरकत से आग-बबूला हो उठी थी। उसने उसे कई बार भोजन करने के लिए बुलाया था। लेकिन वो सीटी बजाने में ही खुश था। अभी उसके मम्मी का पारा कॉफी बढ़ चुका था। उसने उसका एक हाथ पकड़ लिया था। और दूसरे हाथ से उसके पीठ पर जोर से एक मुक्का लगाया था। तुरंत सीटी बजना बंद हो गया थी। मम्मी ने कहाँ वो सीटी उसे दे दे। लेकिन बालक ने कहाँ वो तो अंदर चली गई हैं। उसे शुरु-शुरु में विश्वास नहीं हुआ था। उसने उसकी सभी जेबें तलाशी थी। आजु-बाजु सब जगह देखा था। लेकिन सीटी कही नहीं मिली थी। बालक अंजान और मासूम बनकर उसे बार-बार बता रहा था कि सीटी अंदर चली गई हैं। तभी उसके मम्मी के पैरों तले की जमीन खिसकने लगी थी। वो पसीने से लत-पत हो चुकी थी। उसने तुरंत अपने पति को बुलाकार हुई घटना की जानकारी उसे दी थी। परिस्थिति की गंभीरता को देखते हुये उसके पिता ने उसे तुरंत अस्पताल ले गये थे। जैसे ही अस्पताल के मुख्य द्वार से प्रवेश किया था कि वही कॉलोनी के परिचित डॉकटर मिले। उनका पुत्र और रुग़्न दोनों एक ही कक्षा में पढ़ते थे। उसके पिता ने डॉकटर को पुरी आप-बीती सुनाई थी। रामायण सुनने के तुरंत बाद उन्होंने बच्चे की जांच करना आरंभ किया था। लड़का वैसे तो सामान्य दिख रहा था। सांस वैगरे लेने में उसे कोई कठिनाई नहीं हो रही थी। फिर भी डॉक्टर ने तुरंत एक्स रे निकालने के लिए कहा था। एक्स रे का परीक्षण करने पर डॉक्टर को कही कोई सिटी जैसी आपत्तिजनक चीज नहीं दिखाई दी थी। फिर भी डॉक्टर ने उसके पिता को ढेर सारे केले उसे खिलाने को कहाँ था। और कोई परेशानी होने लगी तो तुरंत उसे दिखाने को कहाँ था। लेकिन बालक की माता अभी भी परेशान थी। उसे पूरा यकीन था कि सीटी जरूर अंदर हैं। वो अपने आप को कोस रही थी। क्यों मेरी अक्ल घास चरने गई थी?। अभी पछतावा के अलवा उसके पास कोई विकल्प नहीं बचा था क्योंकि अभी तीर कमान से निकल चुका था। अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत जैसी हालत उसकी हो चुकी थी।
उस दिन वो उसे बहुत केले खिलाती रही थी। केले खाने से उसका पेट भर चुका था। बिना खाना खायें उस रात वो गहरी निंद ले रहा था। इधर माता के तोते उड़ गये थे। पति-पत्नी को उस दिन निंद नहीं आ रही थी। वे रात भर विचित्र घटनाओं के हवाओं में घोड़े दौड़ा रह थे। सुबह जब हुई। तभी उस बालक को जगाया गया था क्योंकि स्कूल जाने का समय करिब आ रहा था। उसके मातोश्री ने उसे संडास करने के लिए एक समतल जगह बिठाया था। उसी किये हुये संडास में उसे वो सीटी नजर आई थी। उसे देखकर वह खुशी से झूम उठी थी क्योंकि उसका बालक एक बड़ी समस्या से निजात पा चुका था। ये खुश खबरी उसने बालक के पिता को भी दी थी। दोनों ने लंबी राहत भरी सांसे ली थी। पिता ने बालक को स्कूल पहुंचाया था। इस तरह उनकी फिर दिनचर्या शुरु हो गई थी।