सौ रुपए
सौ रुपए


एन. एस. एस. का दस दिन का कैंप लग रहा है , गुजरात में मैने दादा जी को बताया। मुझे भी जाना है। "तुम कैसे जा सकते हो ? तुम्हारा अलॉटमेंट लेटर आ गया तो , कैसे ज्वाइन करोगे?" "अरे दादा जी मैं ट्रूप लीडर हूं , मुझे जाना पड़ेगा , पन्नालाल सर ने कहा है। और ज्वाइनिंग के लिए कुछ टाइम तो मिलेगा ना ।"
"नहीं तुम नहीं जाओगे। ठीक है नहीं जाऊंगा"। मैने गुस्से से कहा, मेरा गुस्सा हो जाने का मतलब ,उनकी जान सूख जाना।
"अच्छा बताओ कितना खर्च आएगा?" शायद पैसे नहीं थे उनके पास। "चार पांच सौ लग जाएंगे । "जाना ज़रूरी है उन्होंने पूछा था।
" हां " ठीक कल पैसे ले जाना। मन ही मन जीतने की खुशी । उनकी मज़बूरी शायद समझ नहीं पाया।
दस लोगों का ग्रुप पन्नालाल सर के साथ रवाना हो गया। नाहन से दिल्ली तक बस , दिल्ली से अहमदाबाद ट्रेन , इतने सालों बाद ट्रेन का सफर फिर से। मन में लड्डू फूट रहे थे।दादा जी को बिल्कुल भूल गया था। हम दोनों कस्बे में रहते थे मेरी पढ़ाई की वजह से।
अहमदाबाद से आगे तलोद में कैंप था। सुंदर कस्बा था। पूरे भारत वर्ष से लोग आए थे। दिल्ली, कानपुर, लखनऊ, हैदराबाद , बंगाल , तमिलनाडु हर जगह से । दिन में सब मिल कर तालाब की खुदाई करते शाम को सांस्कृतिक कार्यक्रम होते। देखते देखते दस दिन बीत गए।
घर वापिस पहुंच कर दादा जी को बताया सिर्फ सौ रुपए खर्च हुए। उन्होंने अपने चश्मे से झांकते हुए बोला , "बाकी तुम रख लो ।" मुझे तब पता चला वो मुझे भेज कर अकेले नहीं रहना चाहते थे। पर हुआ तो वहीं, आखिरी समय भी मैं उनके पास नहीं था । क्योंकि मैं पढ़ रहा था (पोस्ट ग्रेजुएशन)। उनके शब्द अभी भी कानों में गूंजते हैं , "मुझे कुछ हो गया तो , तुम पढ़ाई छोड़ कर मत आना , पढ़ाई करते रहना।" सब कुछ उनकी ईच्छा अनुसार हुआ। मैं नहीं जा पाया। पर क्या वो वाकई ऐसा चाहते थे। नहीं यह झूठ था,मैंने उनके झूठ पर भरोसा कर लिया।