साल 2020 की यादे (लाकडाउन)
साल 2020 की यादे (लाकडाउन)
संस्मरण
लाकडाउन की कुछ पाबंदियां हटी थी ही, कि 10 अगस्त को सुबह सुबह फोन पर खबर आई कि हमारे चचेरे नाना का देहांत हो गया है। मम्मी पापा खबर सुनते ही तुरंत गाँव के लिए रवाना हो गये। मिट्टी में शामिल होने के बाद जब मम्मी पापा शाम को घर आये तो सारे कपड़े धोकर, नहाकर ही कमरे में प्रवेश किए। मैने कहा कि सबसे दूरी बरते थे न ? तो पिता जी ने कहा - गाँव में नहीं फैलता कोरोना, ओरोना। गाँव में नही होता कोरोना किसी को।
दो दिन बाद कूलर चलने पर एक बारगी ठंड लगने लगी। मैं दूसरे कमरे में सोने को भाग गया। दूसरे दिन जब सब उठे तो सबकी तबीयत खराब थी। मुझे भी आलस आ रहा था। वैसे तो पिता जी की तबीयत जल्दी खराब नहीं होती, पर उस दिन तो पिता जी नहाने के बाद पूजा भी नहीं किए और बिस्तर पकड़ लिए। दो तीन दिन तक बस सुबह उठते ही नाश्ता करते फिर बिस्तर, फिर खाना फिर बिस्तर। ये रुटीन बना था। पास के केमिस्ट की दवाइयाँ भी असर नहीं कर रही थी। टीबी पर खबर सुनते कि फला व्यक्ति के मरने के बाद उसकी कोरोना की पाजिटिव रिपोर्ट आ रही है। कोरोना का डर तो बना ही था।
मैंने कोरोना टेस्ट कराने का फैसला किया। क्योंकि पिता जी को बोलता था तो पिता जी बिगड़ जाते थे। मैंने सोचा कि उनको कोरोना होगा तो मुझे भी होगा।
छठे दिन 16 अगस्त को मैंने कोरोना टेस्ट कराया और उसी दिन मेरी पाजिटिव रिपोर्ट भी आ गई। दूसरे दिन छिड़काव वाला मेरे घर आ गया। मेरे कोरोना पाजिटिव होने की बात पूरे मुहल्ले में आग की तरह फैल गई। मुहल्ले के दूर दूर के परिचितों का फोन आने लगा। मुहल्ले में खौफ का एक माहौल बन गया। उसी दिन डाक्टरों की पूरी टीम हमारे घर आई और दवाइयों का पूरा पैकेट दिए। मैं होम क्वारंटाइन हो गया। फिर काफी बोलने पर पिता जी अपना कोरोना टेस्ट कराए। पर उनके पास कोई फोन नहीं आया।
वो बिस्तर पर अभी भी अधिक समय बीताते थे। काफी मान मनौव्वल के बाद दवाइयों की मेरी डोज लेने को तैयार हुए, और दूसरे दिन ही वो पूजापाठ शुरु कर दिए।
मुझे कोरोना पाजीटिव होने पर किसी भी प्रकार का पक्षतावा नहीं था। मैं कोरोना पाजीटिव था भी नहीं। मैंने रिपोर्ट करते समय पिता जी की सारी तकलीफ खुद की बताई थी। शंका के आधार पर भी परेशानियों का जिक्र किया था।
मुझे मालूम था कि अगर पिता जी को कुछ हो जाता तो आसपास के रिश्तेदार कंधा देना तो दूर रोने भी न आते। इसलिए मैंने 14 दिन का होम क्वारंटाइन खुशी खुशी बिता लिया। शायद पिता जी ने समाज के डर से कोरोना टेस्ट कराया ही नहीं था इसीलिए उनके पास फोन नहीं आया था। क्योंकि कोरोना पाजिटिव होने पर समाज जिस प्रकार का व्यवहार करता है। उससे लोग डरे हुए रहते है।
