rohit mishra

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"एक स्वयंबर ऐसा भी"

"एक स्वयंबर ऐसा भी"

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पुराने समय में मगध देश में विश्वजीत नाम के राजा राज करते थे। विश्वजीत अत्यंत ही पराक्रमी और वीर थे। उन्होंने अपनी ताकतवर सेना के बल पर दूर दूर तक के राजाओ को अपनी आधीनता स्वीकार करने पर विवश कर दिया था।


उसी समय मगध देश से कोसो दूर सिंहगढ़ नामक देश था। जिसके राजा शुभदेव नंदन थे। शुभदेव नंदन के कोई पुत्र न था। बल्कि उनकी तीन बेटियाँ थी। सभी एक से बढ़कर एक गुणवान और सुंदर थी। राजा शुभदेव अत्यंत ही दयालु और विनम्र स्वभाव के थे। उनके शासन में उनकी प्रजा अत्यंत ही सुख पूर्वक जीवन व्यतीत कर रही थी। राजा शुभदेव नंदन की बेटियाँ सुन्दरता के साथ शस्त्र शिक्षा में भी पारंगत थी। शुभदेव की बेटियो को जानवरो से बड़ा ही लगाव था। जिस कारण राज्य में कर्ई बड़े गौशाला और अन्य जानवरो के विहार थे।


जब राजा विश्वजीत को सिहंगढ़ राज्य के बारे में जानकारी हुई तो उन्होने उसे अपने आधीन करने का निश्चय किया। जब गुप्तचरो द्धारा उन्हे सूचना प्राप्त हुई कि सिंहगढ़ दुर्ग के चारो ओर बड़ी बड़ी खाईयाँ है जिससे उसे सैन्य बल के द्वारा जीतना नामुमकिन है। तब उनके मंत्री ने विश्वजीत को सिंहगंढ से वैवाहिक संबंध के जरिए उसका विलय अपने राज्य में करने का सुक्षाव दिया।

विश्वजीत ने अपने मंत्री का सुक्षाव मानते हुए, सिंहगढ़ के राजा शुभदेव के पास उनकी बड़ी बेटी से शादी का प्रस्ताव भेजा।

राजा शुभदेव अत्यंत ही बुजुर्ग हो चुके थे। उन्होने विश्वजीत के प्रस्ताव की जानकारी अपने परिवार के सभी सदस्यो को दी। तो शुभदेव की धर्मपत्नी ने कहा पहली बात तो हम बुजुर्ग हो गये है। दूसरा एक के बाद दूसरी , दूसरी के बाद तीसरी बेटी की शादी में काफी समय लग जाएगा। क्यो न हम तीनो बेटियो का एक साथ विवाह करे ? राजा शुभदेव को अपनी धर्मपत्नी का यह विचार पसंद आया। और उन्होने तीनो बेटियो का विवाह एक साथ कराने का निश्चय लिया।


जब राजा विश्वजीत को राजा शुभदेव के निर्णय की जानकारी हुई तो वह पशोपेश में फँस गया। कि सिहंगढ़ का दुर्ग पाने के लिए मैं दो और शुभदेव की बेटियो के लिए वर कहाँ से ढूड़ू ?


तब राजा विश्वजीत ने राजा शुभदेव के पास संदेश पहुँचाया कि बड़ी बेटी का का विवाह कीजिए, बाद में दोनो बेटियो के विवाह में मैं सहयोग कर दूँगा।

राजा शुभदेव, विश्वजीत की बातो को नकार दिया। उन्होने कहा कि मैं अपनी सभी बेटियो का विवाह उसी से करुगा जो मेरे और मेरी बेटियो की परिक्षा की शर्तो को मानेगा।

विश्वजीत की नजर पूरे राज्य पर थी। वह राज्य के बँटवारे के पक्ष में बिल्कुन भी न था। इसलिए उसने अपने दो आदमीयो को शुभदेव के समक्ष वर के रुप में पेश किया। जिस कारण राजा भम्र में पड़ गये। अर्थात उन्होंने तीनो बेटियो के स्वयंबर कराने का निर्णय लिया। राजा विश्वजीत भी स्वयंबर में भाग लेने के लिए तैयार हो गये। क्योकि उनको अपनी भुजाओ पर भरोसा था। 

स्वयंबर की विधिवत तैयारी शुरु हो गई। स्वयंबर में कर्ई राजाओ सहित,व्यापारी, साहूकार, गरीब तक शामिल हुए।

स्वयंबर का आयोजन शुरु हुआ। पर ये क्या यहाँ शारीरीक शक्ति के बजाय मानसिक शक्ति की परिक्षा शुरु हो गई।

सबसे पहले राजा शुभदेव की बड़ी बेटी सुरेखा ने सवाल किया। इस दुनिया में सबसे भारी क्या है ?

सबसे पहले राजा विश्वजीत ने कहा इस दुनिया में सबसे भारी मेरा रथ है। इसी प्रकार सभी राजाओ ने अपने अपने मत प्रस्तुत किए किसी ने भाला तो किसी ने पेड़ तो किसी ने कुछ बताया। आखिर में एक लकड़हारे ने कहा कि दुनिया में सबसे भारी वस्तु माँ की गोद है।


दूसरी बेटी सुमित्रा ने सवाल किया कि इस दुनिया में सबसे ऊँचा क्या है ? किसी ने कहा आकाश, तो किसी ने मेरा महल, तो किसी ने कहा कि सबसे ऊँची बुद्धि है। आखिर में उसी लकड़हारे ने कहा कि सबसे ऊँचा पिता का साया होता है।


फिर तीसरी बेटी सुशीला ने सवाल किया कि इस दुनिया में सबसे काला क्या है ?

किसी ने काजल को बताया, तो किसी ने काले रंग को बताया। आखिर में लकड़हारे ने कहा कि दुनिया में सबसे काला माथे पर लगा कलंक होता है।


शुभदेव की तीनो ही बेटियाँ लकड़हारे के उत्तर से संतुष्ट थी। तीनो ही बेटियो ने अपसी परामर्श करके पिता जी को अपनी राय से अवगत कराया। राजा शुभदेव ने घोषणा की कि वह तीनो बेटियो का विवाह लकड़हारे के साथ ही करेगे। इस पूरे घटनाक्रम में राजा विश्वजीत जिन्हे अपनी भुजाओ पर घमंड था। वो भीड़ में ही खो गये। और सिंहगढ़ की कमान अब एक लकड़हारे के हाथो में आ गई थी।




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