"सजा"
"सजा"
पिता - राजू तुम मुझसे किस तरह बात कर रहे हो ? मैं तुम्हारा पिता हूँ।
राजू - आप भी कौन से शिष्टाचारी बेटे थे ? आप भी तो बाबा से लड़ते झगड़ते रहते थे।
पिता- बदतमीज जुबान लड़ाता है.... ??
राजू पिता की डाँट पर गुस्से से बुदबुदाते हुए वहाँ से चला गया।
राजू के पिता वही खड़े खड़े अपने अतीत में खो गये, कि कैसे वो भी अपने पिता से यानी राजू के बाबा से बात बात पर लड़ते रहते थे। शादी के पहले से ही राजू के पिता राजू के बाबा से किसी न किसी बात पर बहस करते रहते थे। और यह सिलसिला राजू के पैदा होने के बाद भी चलता रहा। बचपन में राजू अपने पापा और बाबा को आपस में बहसबाजी और झगड़ते देखता था। जिसका असर उस पर भी पड़ा।
राजू के पिता समझ गये कि अगर उन्होंने राजू के बाबा यानी अपने पिता की इज्जत की होती तो उन्हें आज ये दिन न देखना पड़ता। पर वो भी राजू की तरह अपने पिता से लड़ते झगड़ते रहते थे। वो जान गए कि भगवान उनको उनके किए की "सजा" दे रहा है।
