यादगार होली
यादगार होली
मै शाम को होली मिलने मनीष के घर पहुँचा तो मालूम हुआ कि अभी उसके ऊपर से भांग का नशा उतरा नही है फिर भी मै उससे मिलकर ही जाना चाहते थे। जैसे ही वो कमरे में आया उसके पैर लड़खड़ा रहे थे। हम भी समझ गये कि उस पर कुछ अधिक चढ़ गई है। फिर उसके साथ बैठ गये। जब अंदर से उसकी माता जी गुछिया, मठरी, पापड चिप्स की प्लेट लाकर दी तो वही पूरी प्लेट खा गया। पर हमे बिल्कुन भी बुरा न लगा। क्योकि हमे मालूम था कि ये सब भांग के नशे के कारण हो रहा है।
उस पल को याद करके आज भी खुशी का बेहतरीन एहसास होता है।
