सावन का महिना
सावन का महिना
महाशिवरात्रि पर्व का महत्व
आज कल एक फैशन चल पड़ा है। सोशल मीडिया पर तो यह आम हो गयी है, कि दूध को शिवलिंग पर डालने से बेहतर है कि दूध किसी भूखे को दिया जाए।
इस तरीके के पोस्ट करने वालों को इतनी सी भी जानकारी नहीं होती है। कि मंदिरों के शिवलिंगों पर दूध चढ़ाया कब जाता है ?
मंदिरों में स्थापित शिवलिंगों पर अधिकांशतः दूध चढ़ाने का विधान सावन महीने में है। इसी महीने में नागपंचमी आदि का भी त्यौहार पड़ता है। सावन के पूरे एक माह भगवान शिव की आराधना का आयोजन मंदिरों में होता है। इसी माह कावड़ यात्रा भी होती है। इसी समय मंदिरों के बाहर फूल आदि बेचने वाले दूध भी फूलो के साथ बेचते है। जिसे श्रद्धालु खरीद कर शिवलिंगों पर पुष्पो के साथ अर्पित करते हैं।
शिवलिंगों पर सावन के महीने में सिर्फ दूध ही नहीं चढ़ाया जाता है। बल्कि जल भी चढ़ाया जाता है। सभी अपनी स्वेच्छा अनुसार मंदिरों में चढ़ावा चढ़ाते है।
शिवलिंगों पर दूध अर्पित करने का तार्किक और वैधानिक विधान है। सावन मास अर्थात वर्षा ऋतु में बारिश के कारण पेड़ पौधों में कीड़े लग जाते है। इसी कारण सावन के महीने में पत्तेदार और हरी सब्जियाँ नहीं खाने की हिदायत दी जाती है।
हरी सब्जियों के साथ घास फूस में भी कीड़े लगते है। दूध देने वाले जानवर इधर उधर उगे घास फूसों को कीड़े सहित खा जाते है। जिनके विषैले तत्व दूध में मिल जाते है। जिस कारण दूध में वो पौष्टिकता तो रहती नहीं है। ऊपर से विषैले तत्व भी आ जाते है। इसी कारण सावन में हरी सब्जियों के साथ दूध भी अधिक न पीने की हिदायत दी जाती है।
इसी विधान को ध्यान में रखते हुए सावन में शिवलिंगों पर दूध अर्पित करने का विधान है।
ताकि दूध की मात्रा के जरिए विषैले तत्व को समाज में फैलने से रोका जा सके।
भगवान शिव को विष धारण करने वाला माना जाता है। जिस कारण सावन के मौसम में शिवलिंगों पर दूध अर्पित करने का विधान है।
