V Aaradhya

Others

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रुका हुआ वक़्त

रुका हुआ वक़्त

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मेरे लिए मेरी पहली कमाई के साथ मेरी माँ की बड़ी मीठी यादें जुड़ी हुई हैँ । मैं जब भी मायके जाती हूँ तो आज भी अपनी माँ के कमरे में टंगी वो पुरानी घड़ी बचपन की एक मासूम कहानी सुना रही होती है । वो चिड़ियों की तरह चहचहाने वाली घड़ी बेहद संवेदशील स्वाभाव और सौम्य व्यक्तित्व वाली मेरी माँ के लिए मेरी तरफ से सबसे अनमोल तोहफा है ।

बात तब की है ज़ब बारहवीं का इम्तिहान देने के बाद मेरी छुट्टियां चल रहीं थीं । कुछ अरसे पहले मम्मी की एक सहेली मधु आँटी ने अपना प्ले स्कूल खोला था । जब भी उनके विद्यालय प्रांगण में क़ोई कार्यक्रम होता वो मुझे और मेरी छोटी बहन आहाना को बच्चों को तैयार करने और मँच नियंत्रित करने के लिए बुला लेतीं थीं । हमें भी बच्चों के बीच बड़ा मज़ा आता था । एक दिन ज़ब वो मम्मी से मिलने आईं तो बात ही बात में उन्होंने अपनी किसी टीचर के छुट्टी पर चले जाने का ज़िक्र किया जिनसे उन्हें बहुत ही परेशानी हो रही थी । उन्हें पता था कि मेरी बारहवीं की परीक्षा खत्म हो गई है और मैं इन दिनों प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के बाद बहुत सारा वक़्त फ्री ही रहती हूँ और घर पर ही रहती हूँ । तो अचानक उन्होंने मुझसे पूछा कि क्या मैं छोटे बच्चों क़ो अक्षर ज्ञान तक धैर्य से पढ़ा सकती हूँ । पहले तो मैं मना करती रही पर फिर ज़ब उन्होंने बताया ज़्यादा काम नहीं है और मुझे सैलरी भी मिलेगी तो मैं खुशी ख़ुशी मान गई ।

अगले दिन मैं उनके प्ले स्कूल में जाने क़ो ज़ब तैयार हो रही थी तो माँ एक छोटे कटोरे में दही चीनी लेकर आईं । मैंने बोला माँ , ये कोई बड़ी जॉब थोड़ी है जो आप दही चीनी लेकर आई हो तो माँ ने कहा , बेटा कोई जॉब बड़ा या छोटा नहीं होता । जो काम सामने से मिले उसे ईमानदारी से निभाओ । बस मैंने माँ की यह बात मन में गांठ बांध लिया । ज़ब पहले दिन जॉब पर गई तब थोड़ा डर सा भी लग रहा था कि पता नहीं कैंसे होंगे मेरे छोटे से स्टूडेंट्स । मैं उनको पढ़ा पाऊँगी कि नहीं ? मन में अनेकों सवाल लिए स्कूल पहुंची । तीन कमरे और एक बरामदे वाला प्ले स्कूल । जिसका नाम मधु आंटी ने अपने बेटे हार्दिक के नाम पर रखा था । हार्दिक प्ले स्कूल । मेरा पहला कार्यस्थल । बच्चों क़ो संभसलने में मुश्किलें तो बहुत आई पर उनके बीच रहकर मन भी लग जाता था । दिन के वो पांच घंटे कब बीत जाते मुझे पता ही नहीं चलता । फिर आया वो दिन जिसका मुझे बहुत दिन से इंतजार था । दोस्तों,आपको पता है । मेरी पहली तनख्वाह कितनी थी । सिर्फ दो हज़ार रूपये । हाँ , सिर्फ दो हज़ार रूपये पर ही तो बात हुई थी मधु आँटी से । उस वक़्त के पॉकेट मनी के लिए ये दो हज़ार रूपये भी एक बड़ी रकम से कम ना थे । मुझे उस स्कूल में काम करते काम हुए अब लगभग एक महीने होने को आए थे । और उस दिन बच्चों के जाने के बाद ज़ब मधु आंटी ने मुझे सैलरी लेने अंदर बुलाया तो मैं बहुत खुश होकर अंदर गई । अब तक ख्यालों में उन दो हज़ार रूपये से ना जाने मैं कितनी बार शॉपिंग कर चुकी थी । अपनी कल्पनाओं की दुनियाँ में लगभग हर वो चीज खरीद चुकी थी जो मैंने ना जाने कबसे सोच रखा था । खैर मधु आंटी के बुलाने पर मैं अंदर गई तो मधु मैम मुझे देखकर मुस्कुराई और एक लिफाफे में उन्होंने मुझे कुल ज़मा बारह सौ तीस रूपये पकड़ाए ।  ये क्या ?ये तो मेरे सपनों पर कुठाराघात था । बड़ी मुश्किल से ज़ब दबी ज़ुबान से मैंने कहा कि आपने तो दो हज़ार सैलरी की बात की थी । तो बोलते हुए मुझे बड़ी शर्म आ रही थी । फिर मधु आंटी ने हँसकर कहा चुंकि मैंने महीने के ग्यारहवें दिन ज्वाइन किया इसलिए कट कटाकर इतने ही मिलेंगे । सुनकर मन एकदम से दुखी हो गया । फिर भी अभी कई सपने ऐसे थे जो इन बारह सौ रूपये में भी पुरे हो सकते थे । मैं सैलरी लेकर ख़ुशी ख़ुशी घर आई और सबसे पहले सौ रूपये भगवानजी को चढ़ाए ।  फिर शाम को अपनी छोटी बहन के साथ मार्केट गई और मैंने पहले ही सोच रखा था कि अलग अलग सबको कुछ गिफ्ट देने की बजाए क़ोई ऐसी चीज ली जाए जो सबके काम आए । मेरी माँ को चिड़िया की बोलीवाली घड़ी बहुत पसंद थी । हम जब एकबार किसी के घर गए थे तो माँ उनके घर की चिड़ियों की चहचहाहट वाली दिवार घड़ी को बड़ी हसरत से देखते हुए देखा था । ना जाने कैसा बच्चों जैसा भोलापन और चाहत थी उस वक़्त माँ के चेहरे पर कि आज भी माँ का वो चेहरा याद आ जाए तो मैं तुरंत उन्हें फ़ोन लगा लेती हूँ । तो मैं और छुटकी वैसी ही घड़ी ढूंढने लगे । हमें वैसी घड़ी मिल भी गई । टाइटन की वो घड़ी पुरे आठ सौ की पड़ी । खैर । उसे गिफ्ट पैक कराके और मिठाइयाँ लेकर हम घर पहुँचे । बड़ी उत्सुकता थी कि माँ कितनी खुश होंगी ।

जब माँ को गिफ्ट खोलने कहा तो उनके चेहरे पर वही बच्चों वाला भोलापन,ओह मेरी माँ कब बड़ी होंगी । कैसा उतावलापन था उस घड़ी को पकड़ते हुए । फिर पापा माँ दोनों से कसकर डाँट भी पड़ी कि इतने पैसे क्यूँ खर्च कर दिए । घर में पहले से कितनी तो घड़ियाँ हैँ । कुछ अपने लिए क्यूँ नहीं लिया । हमेशा दूसरों के लिए सोचती है । वगैरह वगैरह (पर इतना तो तय था कि माँ को घड़ी बहूत पसंद आई थी और वो बहुत खुश भी थी )ऊपर से डाँट खाने के बाद शरारत से मैंने भी माँ को याद दिला दिया कि आप तो फलाने के घर ऐसी घड़ी देखकर बहुत खुश हो रही थी , इसलिए मैं ले आई तो माँ ने भावुक होकर मुझे गले से लगा लिया । आज इस बात को वर्षों बीत चुके हैँ । माँ के कमरे में वो घड़ी अब तक टंगी रहती है । हाँ ,अब वो घड़ी चलती नहीं बल्कि बंद पड़ी है । कई बार सबने टोका कि बंद घड़ी नहीं रखते । पर माँ नहीं सुनतीं किसीकी । एक बार तो मैंने सख्त होकर कह दिया था कि,"माँ, अब घर में इतनी अच्छी अच्छी घड़ियाँ हैँ । इस पुरानी घड़ी में क्या रखा है ? फेंक दो ना इसे । वैसे भी रुकी हुई बंद घड़ी नहीं रखते ,वक़्त रुक जाता है " । इसके जवाब में माँ ने भावुक होकर कहा था । "मेरे लिए तो वो वक़्त वहीँ रुक गया बेटा , जब मेरी गुड़िया अपनी पहली कमाई से मेरे लिए ये घड़ी लाई थी । आज भी मेरे लिए सबसे कीमती तोहफा यही तो है । मैं इस बंद घड़ी को हमेशा अपने कमरे में इसलिए रखती हूँ कि। इसमें मेरी गुड़िया की यादें कैद है । सच में वो वक़्त रुका हुआ कैद है इस घड़ी में । तुम चाहे जहाँ रहो , जितनी भी बड़ी हो जाओ पर इस घड़ी में मेरी वही बेटी कैद है जो इसे लेकर आई थी । हाँ , सही कहते हो तुमलोग बंद घड़ी में वक़्त रुक जाता है, मैंने भी इस बंद घड़ी में उन यादों को सहेज़कर , रोककर रखा हुआ है!"बोलते बोलते माँ रो पड़ी थीं । उस दिन मैं भी माँ से लिपटकर बहुत रोई थी । तबसे उनको नहीं पूछती कि बँद घड़ी को अपने कमरे में क्यूँ सजाकर रखा हुआ है । उसे याद कर आज भी मेरी आँखें पनिया जाती हैँ । कई बार तो माँ का अगाध प्रेम महसूस कर भावुक होकर मैं रो पड़ती हूँ । सच । माँ का प्यार अनमोल है


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