रुक जाना नहीं..
रुक जाना नहीं..
"समय तो चल रहा है, चलता ही रहेगा। तुम्हारे रुकने से वो रुकेगा नहीं। तुम रुक गए और समय आगे निकल गया फिर समय के साथ साथ चलने की दौड़ में जिंदगी ही खत्म हो जाएगी। अंत तक आकर सोचोगे, काश मैं ना रुकता और सब भूल के आगे बढ़ता।"- वाणी ने अपने बेटे शौर्य से कहा।शौर्य को वाणी ने अकेले ही पाला था। शौर्य के पिता शौर्य की डॉउन सिंड्रोम की रिपोर्ट देखकर शौर्य के जन्म से पहले ही उसे और उसकी मां को छोड़कर चले गए थे। मां और नानी नाना ने शौर्य को पाला था। जब शौर्य धीरे धीरे बड़ा हो रहा था तो अध्यापक भी हैरान होती थी, इस बच्चे में दूसरे बच्चों के प्रति कितनी संवेदनशीलता है।
कक्षा का कोई भी बच्चा शौर्य से इतनी बात नहीं करता था, परंतु धीरे धीरे वो सबसे घुल मिल गया।कक्षा के हर क्रियाकलाप में अध्यापिका उसे जरुर सहभागी चुनती थी।शौर्य की कक्षा के कुछ बच्चों ने अपनी ही क्लास की लड़की से बदमाशी की।उन्होंने लड़की के डेस्क पर चुइंग्गुम चिपका दिया।लड़की के बाल उसमें अटक गए और वो रोने लग गई।शौर्य भी उसके साथ ही रोने लग गया। सभी ने उसका मजाक उड़ाना शुरू कर दिया। लड़कियों की तरह रो रहा है; कहकर उसे चिढ़ाने लगे।
शौर्य की मम्मी वाणी को बुलाया गया तब शौर्य शांत हुआ। इससे पहले किसी भी अध्यापक ने शौर्य को यूं अपना आपा खोते नहीं देखा था।वाणी ने घर आकर शौर्य को समझाया, -"बेटा रोना कोई बुरी बात नहीं है। लड़के भी रो सकते हैं और लड़कियां भी। उन बच्चों को अभी पता नहीं है। तुम उनकी बातों की तरफ ध्यान मत देना कभी।"शौर्य ने मां को पूरी बात बताई।
वाणी ने समझाया -" किसी को रोता देखकर रोना आ जाना हर मनुष्य की संवेदनशीलता है, पर तुम्हें टीचर को ये सब बताना चाहिए था। इतना गुस्सा करके तुम उस लड़की की भी मदद नहीं कर पाए।"
शौर्य -" सॉरी मां!! अब ऐसा नहीं होगा।"
धीरे धीरे शौर्य बड़ा हुआ वाणी ने हर कदम को बेटे को समझाया।जब 12 वीं कक्षा में आया तो उसे एक लड़की की तरफ आकर्षण महसूस हुआ, जो उसकी उम्र के बच्चों के लिए होना स्वाभाविक था। उसने दोस्तों के उकसाने से लड़की को दिल की बात बताने की कोशिश भी की।
लड़की ने उससे कहा -" तुमने सोच भी कैसे लिया मैं तुमसे कोई दोस्ती रखूंगी। तुम हम जैसे नहीं हो।"शौर्य को उसकी मां ने हमेशा मजबूत बने रहना सिखाया परंतु सबके सामने ये सब सुनकर उससे बर्दाश्त नहीं हुआ।
घर आकर गुस्से में खुद को बहुत मारा। वाणी के पूछने पर सब बात बताई -" मां! मैं कल से स्कूल नहीं जाऊंगा। मैं दूसरे बच्चों जैसा नहीं हूं। आप मुझसे झूठ बोलती रही की मै भी दूसरों जैसा ही हूं।"
वाणी को समझ नहीं आ रहा था बेटे को कैसे समझाऊं। अब बड़ा हो रहा है बहला तो नहीं सकती ,अच्छा है असलियत से रूबरू करवाऊं, शायद वक़्त आ गया है अब ।
वाणी -" बेटा!!! मैंने कब कहा तुम दूसरों जैसे हो?? तुम सबसे अलग हो, यूनिक हो। तुम्हारी जरूरतें दूसरों से स्पेशल है। हर इंसान को हम ये नहीं समझा सकते। पहले हमे खुद को स्वीकार करना होगा कि हम क्या है?? हम ही खुद को नहीं समझेंगे तो कौन समझेग?"
शौर्य -" मां वो हमेशा मुझसे ही मदद मांगती थी जब भी कोई उसे परेशान करता और आज बोल रही है हम दोस्त तक नहीं बन सकते। "
वाणी -" बेटा!! जो तुम्हे बगीचा समझ ले कि जब मर्जी आओ - जाओ। उस व्यक्ति को तुम चांद बनकर दिखाओ; जिसको पाने कि ख्वाहिश हर कोई करे।
मुझे भी तुम्हारे पापा एक रात यूँ ही अकेला छोड़ गए थे। मैं तुम्हारा दर्द समझ सकती हूं। फिर भी मैं आगे बढ़ी, खुद को संभाला, तुम्हे संभाला!! अब तुम्हारी बारी।"
शौर्य -" मां!! मैं तो खुद को भी नहीं संभाल सकता , आपको कैसे संभाल पाऊंगा!! मुझे कोई जॉब भी नहीं मिलेगी ।"
वाणी -" वक़्त किसी के लिए नहीं रुकता बेटा!! और अभी तुम पढ़ाई पूरी करो पहले। जॉब करना ही जरूरी नहीं, और भी बहुत से तरीके हैं। तुम पहले खुद को संभालो, आगे बढ़ो। तुम हार मानकर नहीं बैठ सकते। तुम अपनी स्पेशल मां के स्पेशल बेटे हो।"
शौर्य ने मेहनत से पढ़ाई की। शौर्य के 12 वीं पास करने के बाद वाणी ने उसे स्पेशल नीड़ बच्चों के वोकेशनल सेन्टर में ट्रेनिंग के लिए दाखिल करवा दिया।
शौर्य और वाणी ने खुद का एक छोटा सा कैफे शुरू कर लिया ।
शौर्य -" मां!! आप सही कहती थी। वक़्त नहीं रुकता किसी के लिए भी। हममें अगर भागने की हिम्मत नहीं तो चलना चाहिए, चलने की हिम्मत नहीं तो रेंगना चाहिए पर रुकना नहीं चाहिए।
आज जब अपने दोस्तों को नौकरी के लिए टेस्ट , कोचिंग सेंटर से परेशान होते देखता हूं तो लगता है क्या होता अगर मैं यूं ही पढ़ाई छोड़कर रुक जाता!! "
वाणी -" ये सब सोचना छोड़ दो। बस हमेशा मेरी यही सीख दूसरों को भी देना - रुक जाना नहीं, तू कहीं हार के....।
* ये सच है कि हमारी ज़िन्दगी की मुसीबतें हमारी चुनी हुई नहीं होती। पर उन मुसीबतों से लड़ना कैसे है, लड़ना है भी या हार मान लेनी है ये चुनाव हमारा ही है।
इसी चुनाव पर हमारा भविष्य टिका है। सफल वही होते हैं जो सफल होने के लिए पहला कदम बढ़ाते हैं, चाहे वो कदम कितना ही छोटा क्यूं ना हो।