Shagufta Quazi

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Shagufta Quazi

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रीति-रिवाज

रीति-रिवाज

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          रात के दूसरे पहर आकाश में चमकते पूर्णिमा के चाँद को देख तारिका का चेहरा चाँद सा चमकने लगा।नींद कोसों दूर थी।भविष्य के सपने बुनते वह नींद के आगोश में समा गई। पौ फटते पंछियों के संगीतमय मधुर कलरव से उसकी नींद टूटी।बीते चौबीस वर्षों की सुबह के मुक़ाबले आज की सुबह उसे अधिक उजली लग रही थी।सूर्योदय का सुंदर-सलोना रूप,सूर्य की कोमल सुनहरी रश्मियाँ घर-द्वार संग उसके मन मस्तिष्क को भी दैदिप्यमान कर रही थी।पैर ज़मीन पर नहीं टिक रहे थे,मन स्वछन्द तितलियों सा उड़ रहा था।
           महीने भर की मशक़्क़त व हज़ारों मिन्नतों के बाद मम्मी-पापा ने उसकी खुशी की खातिर विजातीय अमित को दामाद बनाना स्वीकार किया था।अमित साऊथ इंडियन तो तारिका महाराष्ट्रियन।दोनों के रहन-सहन,खान-पान व रीति-रिवाजों में भिन्नताएं थी।एम.बी.बी.एस के सहपाठी अमित से दोस्ती पढ़ाई व डिस्कशन के दौरान प्यार में बदल गई।इस दौरान वे एकदूजे से अटूट निःस्वार्थ व पवित्र प्यार के बंधन में बंध गए।फाइनल की परीक्षा समाप्त होते ही तारिका घर लौटी तो उसके विवाह के प्रस्ताव आने लगे।वह यह कह टालती रही की एम.डी. करने पर ही विवाह करेंगी।
              मन माफ़िक़ प्रस्ताव को उसके मम्मी-पापा हाथ से जाने नही देना चाहते थे।वे तारिका पर विवाह के लिए दबाव बनाने लगे।पानी सर से ऊपर उठता देख उसने उन्हें अमित के बारे में बता दिया कि, एम्.बी.बी.एस. का सहपाठी अमित साऊथ इन्डियन,आधुनिक विचारों का सुलझा हुआ सुंदर नौजवान है।परिवार में माता-पिता व एक भाई है।भाई पैरानॉइड शीज़ोफ्रेनिया रोग से ग्रसित है।उसकी दिमाग़ी हालत ख़राब है।उलटे-सीधे विचारों से घिरा ,अति संवेद शील,उग्र प्रवृत्ति से ग्रसित,व्यव्हार से ऐबनॉर्मल।पास रहने वाले लोगों से खुद को असुरक्षित मान उन्हें शत्रू समझता है।वे उसे नुकसान पहुंचाएंगे यह सोच सेल्फ डिफ़ेंस में दूसरों को नुक़सान पहुंचा सकता है।अनजाने डर के साए तले वह स्वयं को भी नुक़सान पहुंचा सकता है।जिसकारण उसे एक कमरे में बंद रख उसकी देखभाल करनी पड़ती है।अमित व तारिका डॉक्टर होने से उसकी देखभाल भली-भांति कर पाएंगे।
                 यह सुन तारिका के माता-पिता ने इस अन्तर्जातिय विवाह के लिए असहमति जाता दी थी।किंतु तारिका के तर्क-वितर्क,ज़िद व प्यार की दुहाई के आगे बेटी की ख़ुशी की ख़ातिर सहमति दे दी।
                 सगाई की रस्म के समय पूछे जाने पर अमित के माता-पिता ने किसी भी रीति-रिवाज का हवाला नहीं दिया।दोनों पक्षों की सहमति से सगाई की रस्म राज़ी-ख़ुशी सम्पन्न हो गई।
                 विवाह  तीथि तय करने अमित माता-पिता व कुछ ख़ास रिश्तेदारों संग तारिका के घर आया।तारिका के पिता ने  अपने भाई-बहन व अपने परम मित्र को उनके अमेरिका से छुट्टी मनाने आए डॉक्टर बेटे संग आमंत्रीत किया था।
                अतिथियों का स्वागत-सत्कार गर्मजोशी से किया गया।विवाह की तारीख व समय आपसी सहमति से तय हो गया।तारिका के माता-पिता ने अमित के मात-पिता से विवाह के रीति-रिवाज पूछे,ताकि दोनों पक्षों के रीति-रिवाजों से विवाह संपन्न हो सके।अमित की माँ ने कहा,"विवाह विधि आप अपने रीति-रिवाज से करें, हमें कोई आपत्ति नहीं,केवल विवाह विधि के समय दुल्हन के तन पर उसके पिता की ओर से पचास तोले सोने के गहने चढ़े होने चाहिए।हमारे यहाँ यह रिवाज है।"यह बात सुन तारिका के माता-पिता परेशान हो गए।किन्तु स्थिति की नज़ाकत को ध्यान में रख आपस में सलाह कर उनहोंने इस बात के लिए हामी भर दी।
                तारिका माता-पिता की आर्थिक स्थिति से भली-भांति परिचित थी।छोटी बहन इंजीनियरिंग की पढ़ाई व भाई ए आई ई ई ई प्रवेश परिक्षा की तैयारी कर रहा था।पिता की नौकरी के बल ही घर खर्च व बच्चों की पढ़ाई चल रही थी।उनके पास बैंक बैलेंस,संपत्ती या पुश्तैनी जायदाद नहीं थी।क़र्ज़ लेकर पचास तोले सोने के गहने बनवाने की बात तारिका ने सुन ली थी।
                 माँ की बगल में बैठा अमित सारी बात सुन भी चुप था।यह बात तारिका को खटक गई।उसने दोनों पक्षों से अमित से अकेले में बात करने की अनुमति ले ली।खुली हवा में खुले मन से घर के बाहर छोटे से आंगन में अमित को पिता की आर्थिक स्थिति से अवगत करा विनंती की,कि वह अपनी माँ को समझाए कि पचास तोले सोने के गहने के रिवाज का कोई तुक नहीं।हम शिक्षित लोगों को तो कम से कम इस तरह के बेतुके रिवाजों से तौबा करनी चाहिए।
                अमित तारिका की इस बात से सहमत नही था,सो कहने लगा,"मैं अपनी माँ के अरमानों पर पानी नहीं फेर सकता।माँ ने बरसों से मेरी शादी के सपने संजोए है,मेरे मानसिक रोगी भाई की शादी तो होने से रही।मुझ से ही उन्हें आस है,मैं उन्हें निराश नही कर सकता।
                 अमित की इस प्रतिक्रिया से तारिका बुरी तरह आहत हुई।अमित और वह सुख-दुःख में साथ रह साथ जीने-मरने की कसमें खा चुके थे।अमित के बिना जीवन की कल्पना मात्र से ही वह सिहर उठी।वह पूरी तरह टूट गई।वह सुलझे विचारों की संवेदनशील अधिकारों के प्रति जागरूक ज़िम्मेदार युवती थी।कल्पना की ऊँची उड़ानों से पल में सच्चाई के धरातल पर उतर कठिन परीक्षा की घड़ी में उसने संयत हो निर्णय ले लिया।
                   घर में प्रवेश करते ही उसके चेहरे में हाव-भाव देख माँ-पिता किसी अनिष्ट की आशंका से कांप उठे।उनके चरणों में बैठ उसने अमित से सगाई तोड़ने का अपना निर्णय सुना दिया।
                  उसके इस निर्णय से माता-पिता को झटका लगना स्वाभाविक था।उन्होंने उसे समझाया,"बेटी इतना बड़ा निर्णय अकेले लेने से पहले तुम्हें हमारी राय लेनी चाहिए थी।क्या तुम नहीं जानती,रिश्ता टूटने पर तुम्हारे लिए दूसरा रिश्ता ढूंढने में हमें कितनी मुश्किलों, दिक्कतों से दोचार होना होगा।लोग तरह-तरह की बातें बनाएंगे सो अलग।तुम्हें व हमें ताने-उल्हानों से लहूलुहान कर देंगे।तुम्हारी छोटी बहन की शादी में भी समस्याएं आएंगी।अब भी कुछ नहीं बिगड़ा है।बात हाथ में है।अपना फ़ैसला बदल शादी के लिए हां कर दो।समय बड़ा बलवान होता है,हर घाव भर देता है।क़र्ज़ का बोझ हम सहन कर सकते है किंतु समाज की रुसवाई,जग हंसाई क़तई नहीं।
                 तारिका अपने निर्णय पर अडीग रही।उसने साफ़ शब्दों में कहा,"मै ऐसे व्यक्ति के साथ सात फेरे ले सात जन्मों के बंधन में नहीं बंधना चाहती,जो मेरे प्यार की ख़ातिर बेतुके रीति-रिवाजों को तोड़ने का साहस नहीं रखता।यह जानते हुए,कि इस रीत को निभाने में मेरे माता-पिता भारी क़र्ज़ के बोझ तले दब जाएंगे।मैने उसके माता-पिता के सुख-दुःख में सहभागी होने व उसके पैरानॉइड शीज़ोफ्रेनिया से ग्रसित भाई की ज़िम्मेदारी निभाने का वादा किया,उसने भी मुझसे मेरे परिवार के सुख-दुःख बांटने का वादा किया था।किंतु आज वह अपने वादे से मुकर रहा है।
                    यह वह अमित नहीं, जिसके साथ मैंने अपने सपनों के महल की नींव रखी थी।महल खड़ा करने के लिए नींव का मज़बूत होना आवश्यक होता है।कमज़ोर व खोखली नींव पर खड़ा किया महल हवा के झोंके,अंधी-तूफ़ान की आहट मात्र से ही धराशाई हो जाता है।पापा आपने मुझे बड़ी लगन-मेहनत,लाड़-दुलार से पाल-पोस उच्च शिक्षा दिला डॉक्टर के सम्मानित ओहदे पर खड़ा कर एक जिम्मेदार नागरिक बनाया है।आपकी कड़ी तपस्या व दिए हुए सुसंस्कारों को मैं रुसवा नहीं करूंगी।आपने मुझे समाज में सम्मान से सर ऊँचा कर जीना सिखाया है,मै आपको क़र्ज़ के बोझ तले दबे नहीं देख सकती, रीति रिवाजों की आड़ में अमित के घर वालों के सामने आपके सर को झुका नहीं देख सकती।सदियों से समाज में व्याप्त रीति रिवाजों,कुरीतियों व सड़ी गली मान्यताओं को पूरा करने मे मैं सहभागी नहीं हो सकती।
                    अमित हमारी यह आख़री मुलाक़ात है,तुमसे विनंती करती हूँ यहाँ से चले जाओ,अब हमारा आपस में कोई नाता नही।
                    वहां बैठे तारिका के पिता के मित्र व उनके बेटे ने आपस में कान में खुसर-पुसर की।मित्र ने सबसे अनुरोध किया कि उनका बेटा कुछ कहना चाहता है।बेटे ने शालीनता से अपनी बात इस तरह रखी," मैं बिना किसी रीति-रिवाज की दुहाई दिये तरिका से विवाह करने का इछुक हूं।मुझे इस जैसी जीवन संगिनी की तलाश थी,जो अपने सुसंस्कारों को जीवित रखते हुए रीति-रिवाजों की बलि चढ़ने के विरूद्ध अपनी आवाज़ बुलंद कर सके।मेरी एक शर्त यह है कि तारिका स्वयं इस विवाह के लिए तन-मन से सहमति दे तथा उसके माता-पिता का आशीर्वाद हमें मिले।मेरे माता-पिता ने मुझे जो सुसंस्कार दिये है उन में मानवता व निःस्वर्थ भाव से प्रेम कर रिश्तों को निभाना ही सबसे बड़ी रीत है।
                     तारिका ने गर्दन हिला अपनी सहमती दे दी।


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