रहस्य
रहस्य


कहते हैं साँप के कान नहीं होते। साँप या तो भूमि से आने वाली तरंगों को सुनता है या फिर इशारे को देखकर अपनी प्रतिक्रया देता है। जैसे साँप कहीं चुपचाप पड़ा है और कोई मनुष्य उसी तरफ आ रहा हो तो मनुष्य के पैरों की धमक से उत्पन्न ध्वनि-तरंगों को भूमि के माध्यम से साँप ग्रहण करेगा और भाग खड़ा होगा। या जैसे सपेरे की बीन जिधर-जिधर घूमेगी साँप अपना फन उसी तरफ घुमाएगा। मगर एक घटना ऐसी घटी कि उसने सोचने पर विवश कर दिया कि क्या सचमुच ऐसा ही होता है? बात एक गोशाला की है। गोधूलि बेला थी। गायें चरागाह से लौट रही थीं। प्रतिदिन के नियम के अनुसार गायों ने पहले पानी पिया और फिर अपने-अपने स्थान की तरफ बढ़ गयीं। अचानक एक गो-सेवक ने देखा- एक साँप, जो शायद करैत रहा होगा या नाग और जो डेढ़ मीटर से कम लम्बा नहीं रहा होगा, गायों के लिए चारा लगाने वाली नांद में घूम रहा था। उस गो-सेवक ने आवाज़ देकर अन्य लोगों को भी इकट्ठा कर लिया। एक गो
-सेवक ने साँप को मारने के लिए लाठी उठाई। परंतु उसे पहले गो-सेवक ने रोका-
"रूको! उसे मारो नहीं। वो अपने आप चला जायेगा।"
"कैसे? क्या तुम कोई मन्तर पढ़ने वाले हो?"
"ऐसा ही समझो।"
कहकर गो-सेवक ने कहा-
"यहां क्या करने आये हो? जाओ- वापस जाओ।"
मानो साँप उसकी भाषा को समझ रहा हो और ये उसकी भाषा को। साँप ने भी सिर उठा कर देखा।
"चलो वापस जाओ।"
साँप इधर-उधर होने लगा।
"उधर नहीं! नीचे।"
साँप फिर इधर-उधर हुआ। जैसे वापस जाने का मार्ग खोज रहा हो।
"नीचे जाओ, नीचे।"
साँप फिर इधर-उधर हुआ। अब उसे मार्ग मिल गया और वो नीचे उतर कर चरागाह के पीछे के खेत की तरफ चला गया। ये घटना हैरान करने वाली हो सकती है। परंतु इससे मुझे कोई आश्चर्य नहीं हुआ। कारण! इस प्रकार की घटना से मैं पहले भी दो-चार हो चुका हूं। जब कोई साँप निवेदन मात्र से ही मार्ग से हट गया था।