रामायण का सार(7)
रामायण का सार(7)


घर में सभी रामायण देख रहे थे।दुबारा रामायण के आने से सभी एक्साइटेड थे।मैं तो कुछ ज्यादा ही।रामायण के एक एक पात्र चेहरे के सामने वैसे के वैसे थे जैसे हमारे बचपन के यादों में थे।हालांकि उस वक्त इतनी समझ नहीं थी।संडे को रामायण आती तो सभी लोग एक जगह इकट्ठे हो जाते थे।उस वक्त टीवी भी कुछेक घरों में होती थी और लाइट आने जाने की समस्या होती थी इसकारण सभी अड़ोसी-पड़ोसी एक ही जगह इकट्ठे होकर देखते थे।बड़े होने पर रामायण के चरित्र समझ आने लगे।
रामायण मेंं सभी चरित्रों का विस्तार से उल्लेख है।सभी पात्रों का अपना कर्तव्य,दायित्व,भातृ प्रेम,देश-प्रेम,नारी सम्मान,वचन-बद्धता दिखाया गया है।प्रभु राम की मर्यादा और सीताजी का त्याग समर्पण दिखाया गया है।भरत-लक्ष्मण का भातृ प्रेम,कैकेयी की हटता दिखाई गई है।फिर भी एक बात मेरे मस्तिष्क मेंं सदैव से कौंधती है कि रामायण के कुछ पात्रों का विस्तृत वर्णन नहीं किया गया है।
कुछ चरित्र जैसे-लक्ष्मण के बिना उर्मिला का चरित्र,भरत के बिना मांडवी का चरित्र, शत्रुघ्न का चरित्र, उनकी पत्नी श्रुतकीर्ति का वर्णन,राम के वनवास के बाद अयोध्या का वर्णन, कैकेयी द्वारा राम को वनवास देने के बाद दोनों रानियों का कैकेयी के प्रति व्यवहार।जनक जी का वर्णन, सीता जी राम जी के साथ गईंं तो लक्ष्मण जी पत्नी उर्मिला उनके साथ वन क्यों नहीं गई।मन्थरा का क्या हुआ।बिना किसी गलती के सिर्फ एक धोबी के कहने पर सीता जी को अयोध्या से क्यों निकाला।ये कुछ ऐसे सवाल हैं जिनका उत्तर कोई नहीं देता है।
रामायण में जो सीखने व अनुकरणीय बात लगी वह यह कि जीवन में अनुशासन होना चाहिये।दूसरा मर्यादा।प्रभु राम मर्यादा पुरषोत्तम हैं।उन्होंने इसका बखूबी पालन किया है।भरत-लक्ष्मण से अपने भाइयों के प्रति प्रेम और त्याग भावना का अनुकरण करना चाहिए।माँ सीता से पतिप्रेम और पति के साथ सुख दुःख में साथ देनी वाली यह बात सीखने लायक है।