प्यार का एक रंग ऐसा भी

प्यार का एक रंग ऐसा भी

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ऋषि आज ऑफ़िस में बहुत व्यस्त था। ढेर सारी मीटिंग और एक प्रेजेंटेशन। अचानक उसके मोबाइल पर घंटी बजी। देखा तो कोई अनजान नंबर था। "पता नहीं कौन है? बार-बार क्यों फोन कर रहा है?"- उसके मन में सवाल उठा। पर उसे अनदेखा करके वह फिर अपने काम में डूब गया। पर उसका मन नहीं लगा- "यह टेलीमार्केटिंग वाले भी बहुत परेशान करते हैं। अब तो मैं इस नंबर को ब्लॉक कर ही देता हूं" उसने जैसे ही फोन हाथ में लिया कि फिर उसी नंबर से कॉल आया। 

डांटने के मूड में उसने जैसे ही फोन उठाया- 

" हेलो ऋषि! रीना को ब्रेन ट्यूमर हो गया है "- सामने से किसी परिचित महिला की आवाज़ सुनते ही उसके हाथ से फोन छूट गया। उधर फोन पर हेलो-हेलो की आवाज़ सुनाई दे रही थी। थोड़ा सामान्य होते हुए उसने नीचे गिरे हुए फोन को उठाया।

" यह सब कैसे हो गया?"- उसने कांपते हुए स्वर में पूछा

"क्या कहूं ऋषि। वैसे अब वह ठीक है, ईश्वर की कृपा से उसकी सर्जरी भी सफल रही। पर तुझे बहुत याद कर रही है। जब भी टाइम मिले तो उससे मिल आ। मैं अभी उसी से मिलकर आ रही हूं" फोन पर रीना की सहेली पायल थी।

"ओह! पर अभी ऑफ़िस में बहुत व्यस्तता है पर रात को मिलने जा पाऊंगा।" ऋषि ने बेबसी से कहा।

" कोई बात नहीं जब भी फ्री हो, मिल आना। वो तुझे बहुत याद कर रही है" - पायल भार देते हुए बोली।

 ऋषि को रीना से कुछ महीने पहले हुई अपनी मुलाकात याद आ गई। लगभग 15 वर्षों के बाद रीना से उसकी रूबरू मुलाकात हुई थी। दोनों बहुत सालों बाद फिर से सोशल मीडिया द्वारा आपस में जुड़े पाये थे। 

"मैं बचपन से ही आपको बहुत पसंद करती हूं, बहुत चाहती हूं पर कभी कह नहीं पाई। शायद रिश्तों की मर्यादा या नासमझी। "- रीना के ये कहते ही ऋषि एकदम चौक गया था। उसे समझ में ही नहीं आया कि वह क्या कहे और रीना, वह तो बोले चली जा रही थी- " जब भी मैं आपके घर खेलने आती थी, आपसे बातें करना मुझे बहुत पसंद था। आपके साथ समय बिताने और बातें करने के लिए मौका ही ढूंढती रहती थी।" 

"बोलो ना! क्या आप मुझे प्यार नहीं करते"- रीना उससे पूछ रही थी। उस समय तो उसने किसी तरीके से उसे टाल दिया था। वह कहता भी क्या?

 रीना उससे करीब 3- 4 साल छोटी थी। एक ही कॉलोनी में दो घर छोड़कर उसका घर था। तीन भाई -बहनों में सबसे छोटी, बहुत शरारती, गोल-मटोल सी और बड़ी-बड़ी मासूम आँखें। 

जैसा सामान्य भारतीय परिवारों में होता है, अपने पड़ोसियों से मधुर संबंध, उनसे दोस्ती और ‌स्नेह का रिश्ता। उन लोगों का एक दूसरे के घर बहुत आना-जाना था। आपस में बहुत घनिष्ठ पारिवारिक संबंध थे। दिन भर भैया-भैया करते हुए आगे पीछे घूमती रहती थी। भैया आज स्कूल में यह हुआ, भैया आज मम्मी ने यह बनाया और वह भी उसकी प्यारी-प्यारी बातें बड़े ध्यान से सुनता था। उसको अपने साथ साइकिल पर घुमाने ले जाता था। उसका होमवर्क करने में मदद कर देता था। खासकर गणित! गणित के मुश्किल सवाल रीना को उलझा देते थे और जब वह उन्हें चुटकियों में हल कर देता था तो उसकी आँखों में चमक आ जाती थी।  


पहले तो वह हमेशा उसको अपनी छोटी बहन जैसी ही मानता था और वो भी उसे भैया ही कहती थी। साथ में खेलते हुए ही वह कब युवा हो चले थे पता ही नहीं चला। पर जैसे-जैसे वो जवान होने लगे, उसका आकर्षण रीना की ओर बढ़ने लगा। वह उसके साथ ज्यादा से ज्यादा समय बिताने के बहाने ढूंढने लगा। पर वह भी कभी कह नहीं पाया, वही रिश्तों की मर्यादा।

और आज यह पायल का फोन। ऋषि को अपनी मजबूरी पर गुस्सा आ रहा था। चाह कर भी वह लोगों से जुड़ा नहीं रह पाता। कितने महीने हो गए थे कि रीना से कोई संपर्क ही नहीं हुआ था। पहले तो रोज उसके मैसेज आते थे। फिर धीरे-धीरे बंद हो गए पर अपनी व्यस्तता में उसका ध्यान ही नहीं गया। हां बीच में एक-दो बार उसने जरूर मैसेज भेजकर हाल-चाल पूछे थे पर उस का कोई जवाब नहीं आया तो उसे लगा कि उसके जवाब ना देने के कारण वो नाराज़ है पर पायल के फोन ने उसे हिला कर रख दिया था। अब उसने एक निर्णय ले लिया । व्यस्तता तो जिंदगी भर लगी ही रहती है‌ पर आज रीना को उसके साथ की बहुत जरूरत है। 


सोचते-सोचते एक हफ्ता ऐसे ही निकल गया रीना से मिलने जा ही नहीं पाया। पर अंततः ऋषि ने आज उसके घर जाने का निश्चय कर ही लिया था। वह जैसे ही वहां पहुंचा, बाहर बहुत भीड़ देखकर उसका मन आशंका से भर गया। उसने ईश्वर से प्रार्थना की- "हे भगवान सब ठीक हो।"


दरवाज़े पर कदम रखते ही उसके कदम जैसे ठहर से गए। सामने रीना अपनी अंतिम यात्रा के लिए तैयार थी। दुल्हन के जोड़े में बहुत सज रही थी। भारी कदमों से वह उसके पास पहुंचा। 


"आखिर आज आपको टाइम मिल ही गया। आपको कब से बुला रही थी? मैंने तो आपके आने की आशा ही छोड़ दी थी" उसके कानों में रीना के शब्द गूंज उठे। उसने चौक कर उसकी ओर देखा। लगा, जैसे रीना उससे शिकायत कर रही है। वही हमेशा वाली मीठी शिकायत! वह अपने आप को रोक नहीं पाया उसकी आँखों से आँसू बह चले।


उसने हौले से रीना का हाथ अपने हाथों में लिया और बुदबुदाते हुए बोला- "मुझे माफ़ कर दे रीना! मैं तेरा कसूरवार हूं। तू उस दिन मुझसे पूछ रही थी ना- "हां मैं तुझे बहुत-बहुत प्यार करता हूं…. सालों से…. पर मैं भी तुझे कह नहीं पाया- ना पहले और ना ही उस दिन। मैं नहीं चाहता था कि तेरी हँसती - खेलती गृहस्थी में कोई परेशानी आये। मुझे माफ़ कर दे।"


और उसे लगा कि रीना के चेहरे पर एक संतोष भरी मुस्कान आ गई।

 



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