पुरस्कार
पुरस्कार
आस्था की रानी बुआ से बहुत पटती थी। उसकी रानी बुआ उसे बहुत प्यार करती थी। बुआ और रानी एक ही शहर में रहती थी। आस्था की उम्र बारह साल थी। वह छठवीं कक्षा में पढ़ रही थी। स्कूल की दो-चार छुट्टियां आतीं, आस्था बुआ के घर चली जाती थी।
बुआ भी उसे हर छुट्टियों में घर बुला भेजती थी। बुआ आस्था के पसंद का खाना बनाती। उसे और अमन को घुमाने ले जाती । अमन बुआ का बेटा था। अमन आस्था से बड़ा था। वह उसके साथ खेलती, दोनों अपने अपने स्कूल की ढेर सारी बातें करते।
आस्था को चित्रकला का बड़ा शौक था। अपनी कक्षा में वह सबसे सुंदर चित्र बनाने के लिए जानी जाती थी । आस्था को चित्रकला का ये हुनर अपनी बुआ से मिला था।
बुआ आस्था को चित्रकला के लिए खूब प्रेरित करती थी। चित्रकारी का सामान लाकर देती, चित्र बनाना सिखाती, कलर कैसे भरें समझाती। बुआ की बचपन से ही चित्रकला में बहुत ज्यादा रुचि थी। उन्होंने चित्रकला के शौक को कालेज तक जारी रखा, कई प्रतियोगिताएं भी जीतीं। आज भी खाली समय में चित्र बनाने बैठ जातीं।
अमन ट्यूशन क्लास चला जाता। बुआ खाना बना रही होती। आस्था चित्रकारी का अभ्यास करती रहती। चित्र बनाकर बुआ को दिखाती। बुआ उसकी चित्रकारी को और भी अच्छा बनाने के लिए चित्र में की गई कमियों को बताती।
चित्र में की कहां कौन से रंग भरें ?उसे रंगों का चयन और रंग भरने की कला सिखाती। चित्र को खूबसूरत बनाने के लिए मार्गदर्शन देती ।
आस्था बड़े ही ध्यान से सब सुनती, समझती। वह कभी निराश नहीं होती दुगने उत्साह से चित्र की कमियों को दूर कर उसे और भी सुंदर बनाने बैठ जाती । बुआ चाहती थीं आस्था एक अच्छी चित्रकार बनकर उभरे।
आस्था को प्रकृति से बहुत प्रेम था । वह हमेशा प्रकृति के दृश्यों को लेकर चित्र बनाती। सुबह, शाम, वृक्ष, फूल, नदी झरने, पहाड़, उगता हुआ सूरज उसे बहुत लुभाते ।
एक दिन उसने कृष्ण का चित्र बनाया , कृष्ण के साथ गाय भी बनाई । कृष्ण वृक्ष की छांव में अधरों पर बांसुरी लिए खड़े हैं, गले में फूलों की माला, सर पर मोर मुकुट और पीले सुनहरे वस्त्र धारण किये हुए मनमोहक अदा में गाय के साथ खड़े हैं ।
ऐसा ही चित्र उसकी बुआ के घर ड्राॅइंगरूम की दीवार पर लगा था। उसे देख कर ही आस्था ने अपना चित्र बनाया था।
उसने अपना चित्र बुआ को दिखाया, बुआ चित्र को देखते ही बोल उठी, अतिसुन्दर "आस्था तुम्हारी चित्रकारी दिन पर दिन निखर रही है। "
आज ये जो तुमने कृष्ण और गाय की चित्रकारी की है, पीछे जो डूबते हुए सूरज को दिखाया है और जो रंग भरे हैं कमाल कर दिया। सोचती हूँ इस बार तुम्हारे इस चित्र को चंपक की बाल चित्र प्रतियोगिता के लिए भेज देते हैं ।
ठीक है बुआ जैसा आप उचित समझें । मम्मी पापा को अभी कुछ मत बताना उन्हें चौंका देंगे। हां बुआ ...
मुझे पुरस्कार मिल सकता है बुआ? हां हां क्यों नहीं ,तुम्हारा बनाया हुआ चित्र सचमुच पुरस्कार के काबिल है।
आस्था का चित्र चंपक में छपा और प्रथम पुरस्कार भी पा गया। चंपक घर पर आया वह तुरंत पढ़ने बैठ गई । चंपक में अपना चित्र देख कर वह बहुत खुश हुई।
शाम को बुआ भी घर आ गई । पापा के आते ही बुआ ने पुष्प गुच्छ के साथ पापा को बधाई दी। आस्था के माता पिता दोनों चकित थे, बुआ बेटी की ये कौन सी खुशी है? जो उन्हें पता नहीं ।
अरे भई! हमें बधाई क्यों दी जा रही है। कुछ बताएं भी।
बुआ ने चंपक में प्रकाशित चित्र दोनों को दिखाया, दोनों आस्था के चित्र को मिले पुरस्कार के बारे में पढ़ कर बहुत खुश हुए । वाह बेटा! बहुत खूब ! माता पिता दोनों ने प्रशंसा करते हुए आस्था को चूम लिया।
भैया! इसी खुशी में आज बाहर खाना खाने चलते हैं बुआ चहकते हुए बोली।
हां हां क्यों नहीं, जीजाजी को कहिए अमन को लेकर तुरंत घर आ जायें ।
आस्था ने बुआ को धन्यवाद देते हुए कहा "बुआ ये आप की प्रेरणा और मार्गदर्शन से हुआ है"। नहीं पगली ये तुम्हारी मेहनत और लगन का फल है।
अगले दिन वह अपनी टीचर को दिखाने के लिए चंपक लेकर स्कूल पहुंची। स्कूल की लायब्रेरी के लिए आई चंपक की प्रति से चित्रकला की टीचर को पहले से ही ज्ञात हो गया था।
क्लास टीचर ने सभी बच्चों के साथ ये खुशी शेयर करते हुए आस्था को बधाई दी। मेहनत और लगन का महत्व समझाते हुए बच्चों से कहा आप सब भी मेहनत से अपने कार्य में सफलता प्राप्त कर सकते हो।
स्कूल के वार्षिक समारोह में आस्था को पुरस्कार दिया गया। आस्था भविष्य में एक बड़ी चित्रकार बनना चाहती थी । उसकी बुआ का भी यही सपना था। ।