Rajesh Chandrani Madanlal Jain

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Rajesh Chandrani Madanlal Jain

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पत्नी - सुदर्शना …

पत्नी - सुदर्शना …

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 धरती पर बिखरे दानों को चुगने एक सुंदर पक्षी, ऊपर से उड़ता हुआ आता देखने के साथ ही मेरी दृष्टि, वहाँ घात लगाए बैठी बिल्ली पर भी पड़ी थी। त्वरित रूप से मेरे मन में पक्षी के प्राण रक्षा के भाव आए थे। मैंने दौड़ लगाई थी। दाना चुगने बैठ चुके पक्षी पर बिल्ली, जब झपटने की तैयारी में थी तभी मेरे पहुँच जाने से पक्षी दूर फुदका, फिर उड़ गया था।

मंदिर, यूँ मैं नियमित नहीं आता हूँ। आज मेरा छब्बीसवां जन्मदिन था और अवकाश का संयोग भी था। मम्मी ने कॉल पर विश करते हुए, दर्शन के लिए मुझे मंदिर जाने को कहा था। इस कारण विलंब से जब मैं मंदिर आया तब तक इक्के-दुक्के दर्शनार्थी ही बचे थे। दर्शन के बाद यूँ ही घूमता हुआ मैं मंदिर की छत पर आया था। संयोग से, तभी अनायास ही पक्षी के प्राणों की रक्षा हो गई थी। 

इस स्थान पर आसपास कोई और नहीं था। मंदिर में होने से मिलती शांति का अनुभव करते हुए मैं, वहीं मुंडेर से टिक कर आसमान की ओर निहारने लगा था। तब ही मुझे अपने सामने दिव्य प्रकाश दिखाई पड़ा था। पल भर में ही वह प्रकाश, एक मानव सदृश आकृति में परिवर्तित हो गया था। मुझे, उस दिव्य मानव के मुख से निकली वाणी सुनाई दी थी। वह कह रहे थे - 

प्राण रक्षक की तुम्हारी भावना से प्रसन्न हो मैं, तुम्हें मुझसे दो वरदान माँगने की अनुमति देता हूँ। 

मैं, चमत्कृत हुआ, मंत्रमुग्धता से उन्हें सुन रहा था। कुछ कह नहीं पाया था। तब दिव्य मानव ने ही पुनः कहा था - 

तुम्हारी वय विवाह की है। अतः ये वरदान तुम्हारी वधु के लिए उपयुक्त, योग्य कन्या से संबंधित हैं। पहला वरदान सरल है। दूसरे के चयन में, मैं हर विकल्प में संभावना बताते हुए उसमें से, श्रेष्ठ चयन हेतु तुम्हारी सहायता करूंगा। अब बताओ मनोहर, तुम्हें मुझसे ये वरदान चाहिए हैं?

मैं अचंभित हुआ था, दिव्य मानव मुझे मेरे नाम से संबोधित कर रहे थे। मैंने मन ही मन, उन्हें भगवान संबंधित करना तय किया। फिर कहा - मेरे भगवन, मैं आपकी आज्ञा शिरोधार्य करता हूँ। 

दिव्य मानव ने तब, मेरे सामने अनेक फोटो रखीं थीं फिर कहा - पहला वरदान, इन कन्याओं में से अपनी परिणीता बनाने के लिए तुम्हें, एक का चुनाव करना है। 

मैंने सभी फोटो ध्यानपूर्वक देखे थे। दिव्य मानव ने यह तो सरल वरदान बताया था मगर इन रूपसी कन्याओं में से, एक चुनाव कर पाना मुझे, दूभर कार्य लगा था। कठिनाई से तय करते हुए मैंने उनमें से एक फोटो, दिव्य मानव के हाथ में दे दी थी। 

दिव्य मानव ने तब अन्य फोटो हटाते हुए, पुनः चार फोटो मेरे समक्ष रखे थे। फिर बताया - 

तुम्हारे द्वारा चयनित कन्या का नाम सुदर्शना है। इन चार फोटो में, सुदर्शना के चार रूप हैं। अब दूसरे वरदान में तुम्हें सुदर्शना का कम से कम सुंदर, वह रूप पसंद करना है, जिसका होना तुम अपने जीवनकाल में देखना चाहते हो। 

मैंने चारों तस्वीरों पर दृष्टि डाली थी। इन तस्वीरों में सुदर्शना के क्रमशः यौवना से वृद्धा होने के चार रूप थे। 

अपनी पत्नी का वृद्धा वाला रूप किस पति को पसंद आता है। मैंने चार में से, ‘पहले वरदान’ में दिखाई वाली ही, सुदर्शना की तस्वीर दिव्य मानव को देते हुए कहा - भगवन, मेरी पत्नी का, यह रूप देखना मुझे पसंद होगा। 

दिव्य मानव ने पूछा - मनोहर, इस वरदान के प्राप्त करने का अर्थ तुम्हें समझ आता है? 

मैंने कहा - भगवन, आप ही अर्थ बताइए। 

दिव्य मानव ने बताया - सुदर्शना का यह रूप, अब 4-5 वर्ष ही और रह पाएगा। फिर सुदर्शना के रूप में (क्षीणता) परिवर्तन होते ही, तुम्हारे जीवन का अंत हो जाएगा। 

मैं भयाक्रांत हो गया। मैं इतने कम समय में मरना नहीं चाहता था। मैंने अब बाकी तीन में से पहली तस्वीर उठा कर उन्हें दी थी। इसमें सुदर्शना का ठीकठाक आकर्षक रूप विधमान दिख रहा था। 

दिव्य मानव ने मेरे अनकहे ही आशय को समझा और कहा - मनोहर, सुदर्शना का यह रूप जब तुम्हारे दो बच्चे, 8-10 वर्ष के होंगे तब तक ही रह सकेगा। सुदर्शना के इस रूप के भी क्षीण होने पर, तुम्हारे जीवन का अंत आ जाएगा।  

मेरे शरीर में भय से सिहरन दौड़ गई। किस पापा को पसंद होगा कि जब उसके बच्चे बाल वय में हों, तब ही उनके सिर पर से पिता का साया उठ जाए। वस्तुस्थिति को समझते हुए अब मुझे सुदर्शना की वृद्धा हुई (चौथी वाली) तस्वीर उठानी चाहिए थी मगर मैं, अपने रूप-लावण्य लोभी, भावना संवरण नहीं कर पाया था। मैंने, सुदर्शना जिसमें संभ्रांत महिला दिखाई दे रही थी, वह तस्वीर दिव्य मानव को दी थी।  

दिव्य मानव ने इसे देखते हुए कहा - सुदर्शना के इस रूप में होते तक तुम्हारे बच्चे, बड़े तो हो जाएंगे मगर उनके विवाह नहीं हुए होंगे। 

मैंने दिव्य मानव के आगे कहने के पहले ही, मन मसोसते हुए सुदर्शना की वृद्धा रूप वाली तस्वीर उन्हें दे दी थी। 

इस तस्वीर को लेते हुए, दिव्य मानव ने कहा - तथास्तु! 

मैं, उन्हें दुखी दिखाई दिया तो उन्होंने कहा - मनोहर, तुम्हारे द्वारा सुदर्शना का यह रूप देखना, माँग लेने के बाद एक अच्छी बात होगी। 

मैंने उत्सुकता में पूछ लिया - वह क्या, भगवन!

दिव्य मानव ने कहा - वह यह कि सुदर्शना का यह रूप भी ढ़लता, बदलता जाएगा। तब भी तुम रूप के ऐसे बदलने में भी जीते रह सकोगे। तुम उस दिन मृत्यु को प्राप्त होगे जिस दिन सुदर्शना, अपने कंपकंपाते हाथों में थामे गिलास से तुम्हें औषधि पिला रही होगी। 

अब मुझे स्पष्ट हो चुका था कि इन वरदान के माध्यमों से मैंने अपने लिए, अभी रूप लावण्या वधु सुदर्शना और उसके सहित, अपने दीर्घ जीवन की सुनिश्चितता कर ली थी। 

जब मुझे, दिव्य मानव आकृति मेरे सामने से ओझल होने की तैयारी करते प्रतीत हुई तो मैंने अधीरता से पूछ लिया - 

भगवान, ये तो मुझे बताते जाओ कि सुदर्शना मुझे कहाँ और कैसे मिल सकेगी?

दिव्य मानव ने कहा - शीघ्र ही सुदर्शना का तुमसे मिलने का प्रसंग बनेगा। 

फिर इस वाणी की गूँज मात्र, मेरे कर्णों में रह गई थी। दिव्य मानव, दिव्य प्रकाश में परिवर्तित होते हुए एक सूक्ष्म पुंज होकर ऊपर अनंत आकाश में लुप्त हो गए थे ….


क्रमशः

(अगले भाग में समाप्त)



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