sushil pandey

Others

1.5  

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पर वो दर्द सुहाना था

पर वो दर्द सुहाना था

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कल रात मैं खबरिया चैनलों की खबर सुनते हुए सोया जिसमे कोरोना ख़बरें ही ज्यादा थी? काफी डरा हुआ सा महसूस कर रहा था। उसी के बारे में सोचते हुए पता नहीं कब नींद आ गयी

मुझे कुछ सीने में दर्द सा महसूस हुआ दर्द बढ़ता जा रहा था मैंने पत्नी से बोला तो अस्पताल जाने की सलाह मिली और मैंने तय किया और हॉस्पिटल के लिए रवाना हो गया वहां चिकित्सकों ने मेरा मुआयना किया और भर्ती होने की सलाह के साथ भर्ती कर भी लिया, मेरा दर्द प्रति क्षण बढ़ता जा रहा था, मुझे साँस लेने में भी दिक्कत होने लगी थी अब तक मैंने किसी को घर में बताया नहीं था मुझे अपने घर की, पत्नी की, बच्चे की, पिताजी की, भईया -भाभी और भतीजे की बहुत याद आ रही थी मैं कुछ भी कर पाने में अपने आप को असमर्थ महसूस कर रहा था मैं चाहते हुए भी चिकित्सकों को घर खबर देने की बात नहीं कह पा रहा था।

तभी मैंने एक असहनीय दर्द सा महसूस किया और धीरे धीरे कम होने के साथ साथ उस दर्द को ख़त्म होते हुए भी अनुभव किया। किसी ने मेरे मुंह में वो ऑक्सीजन वाला प्लास्टिक चढ़ा दिया फिर मैंने सुस्ती महसूस किया और शायद सो गया।

नींद खुलने के साथ मैंने अपने कानों से घरवालों की आवाज सुनी मैं बात करना चाह रहा था पिताजी से भईया से बाबू से पर मैं इतना अभी स्वस्थ नहीं हुआ था की इशारे से या बोलकर किसी को बुला सकूँ मैं।


परिवार के सभी लोगों की बातें एक साथ कान से घुस रही थी पर समझ में नहीं आ रही थी ऐसा लग रहा था के सब लोग रो रहे हैं मेरे आँखों के सामने अँधेरा सा छाने लगा और कान में आने वाली आवाजें धीरे-धीरे कम होने लगी तभी किसी ने करीब करीब चिल्लाते हुए कहा अब ये नहीं रहे? कैसी बात थी ये मैं सुन भी रहा था डॉक्टर्स कह रहे थे की मैं मर गया पर था मैं जिन्दा।

सेकंड के एक अत्यंत छोटे हिस्से में मुझे हर वो घटना याद आने लगी जब माँ ने आने को कहा और छुट्टी न मिलने की बात कह के मैंने टाल दिया था, पिताजी ने मिलने की लिए बुलाया और मैंने असमर्थता जाहिर कर दिया था, पत्नी बच्चों पर कम ध्यान दिया नौकरी, दोस्तों के साथ घूमना पार्टी करना याद आने लगा, घर के सभी लोग भगवान से अब भी मेरे ठीक हो जाने के लिए दुआएं कर रहे थे पर मेरे सामने अँधेरा छा गया था कुछ दिखाई नहीं दे रहा था न भगवान न शैतान न स्वर्ग और न ही नरक ऐसा कुछ नहीं था बस मैं और अंतहीन अँधेरा केवल अंधेरा! मैं लाखों टुकड़ों में बंट गया था मेरा अस्तित्व ख़त्म हो गया था।


एक बात मेरे दिमाग में कौंधी सभी थे, पर अपनी जिंदगी मे अच्छे स्वास्थ्य के दौरान जिन लोगों के साथ था मैं, उनमें से मेरा कोई दोस्त मेरे साथ नहीं था उस वक्त। मैं मिन्नतें कर रहा था की मुझे एक महीने का वक़्त और दे दो भगवान! मैं वो सब जो छोड़ आया था उसकी कमी की भरपाई करता पिताजी के सामने रोना चाहता था भईया -भाभी पत्नी और बच्चों के से माफी मांगना चाहता था।

दोस्तों को देखना चाहता था अपने स्कूल कॉलेज घर सब देखना चाहता था और गांव की मिट्टी में लोटना चाहता था क्योंकि अब जो रिश्ता ख़त्म हो रहा था हमेशा के लिए।

मैं देखना चाहता था अपना खलिहान, घर का दालान, गांव का दादा जी का बनवाया हुआ मंदिर खानदान के एक एक सख्श से मिलना चाहता था अपनी गलतियों के लिए माफी चाहता था मैं सबसे, उन सबके साथ हंसना चाहता था मुस्कुराना चाहता था और रोना भी चाहता था पर अब शायद वक़्त नहीं था मेरे पास।


तभी एकदम से शरीर में मैंने बिजली का करंट सा महसूस किया जो अत्यंत पीड़ादायक था पर मेरी चेतना लौट आई अब मैं वापस सब को सुन पा रहा था सबकी आवाजें कान में स्पष्ट आने लगी डॉक्टर्स के भी चेहरों पे उभर रहा था जैसे मरे हुये को जिन्दा कर दिया हो उन्होंने मिलकर। शायद इलेक्ट्रिक शाॅक दिया गया था मुझे।

हम दर्द से दूर रहना चाहते हैं पर ये दर्द मुझे बड़ा सुहाना लगा और अब जब तक मैं जिन्दा रहूँगा संजो के रखूँगा इस दर्द को हमेशा।


इसी के साथ एकदम से मेरी नींद खुल गई और मैं काफी देर तक उस सपने के बारे में सोचता रहा, जिन्दा रहते हुए मृत्यु के बाद की स्थिति से रूबरू कराने के लिए भगवान को धन्यवाद किया, कार्यालय जाने के देर हो रही थी तो तैयार होकर कार्यालय के लिए निकल गया।


खड़ा जहां था मैं, वो मौत का मुहाना था। 

हां जो भी हो मगर,सच वो दर्द सुहाना था।।


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