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संजय असवाल "नूतन"

Others

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संजय असवाल "नूतन"

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फिर आना गांव -४

फिर आना गांव -४

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आज हमें गांव में एक महीने से ज्यादा समय हो गया था, और अब कल हम सबको शहर लौटना है तो बच्चे धर्म पत्नी जी मां जी सभी काफी दुखी हैं। बच्चे तो आज खेलने भी नहीं गए, बस दिन भर दादी दादा से चिपके पड़े रहे। दादा दादी भी काफी गमगीन हैं ना वो खेतों में गए ना कहीं गांव में बस पोतों को लिए बैठें हैं।

मां ने हमारे लिए बहुत सी पहाड़ी दालों की गठरी बांध रखी हैं, और अब घी के डिब्बे तैयार कर रही है और आंखों से आंसुओं को पोंछे जा रही है, उन्होंने मेरे मन पसंदीदा लाल चावल का एक कट्टा बांधा है। बहुत सारी सब्जियां तोड़ कर कट्टे में बांध रखी हैं।

 सभी दुखी हैं मैं खुद इतने सालों बाद गांव आया तो यहां से जाने का मन मेरा भी नहीं हो रहा पर क्या करें नौकरी भी करनी है अपने बच्चों के भविष्य के लिए।

पिताजी भी बहुत दुखी हैं भारी मन से मुझसे कह रहे हैं कि इस बार तू बहुत सालों बाद गांव आया, अगली बार बच्चों, बहू को लेकर जल्दी आना, तेरा और बहू बच्चों का बेसब्री से इंतजार रहेगा इन बूढ़ी आंखों को। 

मैंने मां पिताजी को भरोसा दिलाया कि अगली बार जरूर गांव आयेंगे और जल्दी आयेंगे।

बच्चे मां पिताजी को शहर चलने को कह रहे थे पर पिताजी ने कहा पहले तुम लोग गांव आना फिर हम लोग आएंगे।

मां पिताजी का मन शहर में नहीं लगता, उन्हें यहां घुटन होती है खुद को बंधे बंधे पाते हैं, इसलिए जब भी शहर आने को कहो टाल देते हैं।

मुझे पता है शहर की चका चौंध में उनका मन नहीं लगता उन्हें तो गांव का खुला वातावरण ही पसंद आता है।

अगले सुबह सारा सामान बैग व्यवस्थित किया और हम सभी सड़क पर पहुंचे यहां मैंने गाड़ी स्टार्ट करके चेक किया सारा सामान बैग गाड़ी में लगाया।

अब विदा होने का समय था मां पिताजी और अपने प्यारे गांव से.............

सारा माहौल गमगीन था, बच्चे धर्म पत्नी जी रो रही थी, मां पिताजी के आंखों में आंसू रुकने का नाम नहीं ले रहे थे, आंसू तो मेरे आंखों में भी थे पर मैंने उन्हें छुपा लिया, आखिर मैं करता भी क्या।

अब हम सभी ने मां पिताजी के पांव छुए उन्हें गले लगाया उनका आशीर्वाद लिया, मां पिताजी ने रूंधे गले से हमें विदाई दी और हम सबको गाड़ी में बिठाया। बच्चों की हालत देख कर मैं बहुत भावुक हो गया था।

गाड़ी धीरे धीरे गांव को छोड़ते हुए आगे शहर की ओर बढ़ने लगी लेकिन बच्चे खिड़की से टकटकी लगाए अपने दादा दादी को अपने गांव को देखते रहे अपना हाथ हिलाते रहें जब तक गांव आंखों से ओझल नहीं हो गया।

बड़े भारी मन से मैंने भी गांव को अलविदा कहा और अगले वर्ष आने का वादा कहकर अपने शहर की ओर चल पड़े.......।


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