Mukul Kumar Singh

Children Stories

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Mukul Kumar Singh

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न्याय

न्याय

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सुमन कोलकाता संलग्न उपशहर में रहता है। वह एक सरकारी प्राथमिक विद्यालय तृतीय श्रेणी का छात्र है। उसके आंखों को देख कर समझ में आ जाती है कि वह कितना सुबोध और सरल होगा। कोई भी ऐसा दिन नहीं होता है जब उसके घर में शिकायत न पहुंचे। घर के लोग तथा पाड़ा उसकी शैतानियों से परेशान। विद्यालय के शिक्षकों तथा साथी छात्रों के लिए भी एक त्रास बन चुका है। उसे दण्डित भी होना पड़ता है परन्तु अपनी शरारत से भला शत्रुता कैसे करें, यही तो उसकी विशेषता थी। जो भी हो विद्यालय के शिक्षकों का प्यारा भी है। एक दिन भूगोल के शिक्षक ग्राम और शहर के अंतर के बारे में बता रहे थे। बड़े मन से शिक्षक को सुनता है। आंखों में कौतूहल भरता जा रहा है। घंटी लगने से पहले ही शिक्षक महोदय कहते हैं - "तो सबको समझ में आ गया न"

" यस सर " लेकिन दो - तीन छात्र खड़े हो गए। शिक्षक महोदय उठकर चले जाते पर खड़े होने वाले में सुमन को देखकर समझ गये की आज खैर नहीं है घंटी लगकर ही रहेगी। इस लिए व्यंग्य के सुर में सुमन को बोले,

" कहिए सुमनजी क्या पुछना चाहते हैं ? "

" सर यहां जुट मिल की भों सुनकर सब जागते हैं, गांव के लोग क्या सुनकर जागते हैं " प्रश्न सुन शिक्षक आश्चर्य में पड़ गया कि कौन सा उदाहरण देकर समझाऊं। टाल देने पर तो यह शैतान तुरंत कह देगा आप पढ़ाना नहीं जानते हैं। अतः कुछ सोचकर बताया,

" चिड़िया के चहचहाना सुन"

" गांव के लोग चिड़िया पालते हैं क्या "

" नहीं। वहां चिड़िया पेड़ों पर अपने घोंसले बना कर रहती है।"

" यह घोंसला ईंट से बनती है सर!" दूसरे छात्र ने पूछा,

" अच्छा सर। ईंट उतना भारी वह तो उठा नहीं सकेगी। आप हमें मूर्ख बना रहे हैं। सुमन के ऐसा बोलने पर सभी छात्र हंसने लगे।

" चोप्प। गधों के दल। मुझसे मजाक करते हो। टिफिन के बाद आने दो मजा न चखाया।"

शिक्षक महोदय की घंटी लग चुकी थी। सो रजिस्टर उठाए और चल दिए टीचिंग रूम में। सुमन के हृदय पटल पर गांव की छवि अंकित हो चुकी थी। रह - रह कर हरे - भरे खेत, जंगल, पहाड़, पिंजरे में न रहने वाले पक्षियों को देखने की इच्छा प्रबल हो उठती परंतु वह गांव जाए तो कैसे? लेकिन उसकी मनोकामना पूर्ति होना निश्चित हो ही गया। स्कूल में गर्मी की छुट्टियां आरंभ हुई और बड़े सदस्यों के साथ वह भी जाएगा सुनकर उसका मन आनंद से नाच उठा। बस एक दिन ट्रेन में सवार हुआ। काफी भीड़ थी एवं रात का समय इसलिए कुछ देख नहीं पाया पर अगले दिन भोर में जिस स्टेशन पर उतरा वहां यात्रियों की भीड़ देखी लेकिन शोरगुल नहीं हालांकि लोगों में ट्रेन से उतरने या सवार होने की आपाधापी अवश्य दिखाई दे रही थी जिससे सुमन को आश्चर्य होता है और हंसी भी आती है। वह सोचता है कि कैसे लोग हैं जो एक दूसरे को धक्का देकर पहले बोगी में सवार होना चाहते हैं। इंजन सीटी बजाई और भक - भक कर कोयले की धुआं उगलती हुई आगे बढ़ने लगी। स्टेशन से बाहर निकला थोड़ी ही दूरी पर बस यात्रियों के कदमों को चुमने हेतु तैयार मिली और बैठने की सीट एकदम ड्राइवर के पास। भाग्य अच्छा था कि वह अपने बड़े सदस्यों के साथ पहले ही बैठ चुका था नहीं तो बस में लोग पशुओं की भांति चढ़ने की कोशिश कर रहे थे। फिर भी ड्राइवर तथा कंडक्टर का मन भूखा ही था। खैर जब सवार यात्रियों ने ड्राइवर को गालियां देना शुरू किया तब जाकर बस की इंजन गर्र - पों की आवाज निकाली और धीरे धीरे आगे बढ़ी। सवारियों के वजन से बस की कचूमर निकल रही थी फिर भी कंडक्टर यात्रियों को बुला रहा था। इस दृश्य को देखकर सुमन को स्कूल के सर की बात झूठी लगी कारण था सर ने कहा था कि गांव में भीड़ - भाड़ नहीं होती है पर इस बस में मनुष्य और सामानों में कोई अंतर नहीं दिखाई दे रहा है एवं बस की इंजन की गर्रगर्राहट तथा सवारियों की चिल्ल - पों की आवाज से लगता है जैसे कोई पागलखाने में आ गया है। जैसे-जैसे बस की गति बढ़ रही है वैसे ही सुमन का मुखमण्डल प्रसन्न होने लगा। सामने दायें - बायें हरे भरे लहलहाते फसलों के खेत नहीं दिखाई दिया परन्तु बड़े -बड़े पेड़ की कतारें, ताड़ के पेड़ों का झुण्ड और निकट हीं ताड़ के पत्तों से बने घर तथा मिट्टी के कलशियों के झुंड एवं कुछ ग्रामीण बैठे - खड़े होकर पता नहीं कर रहे थे। बस समय व सड़क के साथ आंख - मिचौली खेलते-खेलते दूरियां माप रही थी। सड़क किनारे काफी दूर - दर मिट्टी के बने घर जिसके खपरैल पर हरी - भरी लताएं देख सुमन का मन करता है कब उसे उतरने का अवसर मिलेगा और एकदम फांका माठ एवं बड़े - बड़े पेड़ों में झूलते पके आम के बाग -बगीचे में दौड़ लगाएगा। इतना हीं नहीं सड़क पर गाय - भैंस के झुंड को लापरवाही से चलते हुए आगे बढ़ते और बस की गति धीमी हो जाती है तथा बस का ड्राइवर पों - पां कर रहा है पर उन ढोरों को क्या फर्क पड़ता है वे सब स्वयं ही ट्रैफिक पुलिस बनकर रास्ते को अपने नियंत्रण में ले लिया है। सुमन एक बार ड्राइवर को तो एक बार ढोरों को देख खिलखिला कर हंसने लगता है जिससे निकट बैठे या खड़े यात्रियों को भी आश्चर्य होता है। इस पर सुमन चुप हो जाता है। आकाश का जलता गोल बल्ब का प्रकाश तीखी होती जा रही है ऊपर से किसी - किसी के उलटी करने की आवाज तथा खट्टी गंध से यात्रियों की अवस्था को ऐसा मदमस्त कर रहा था कि पुछना ही बेकार तिस पर कंडक्टर द्वारा भाड़ा न देने पर उसकी साहित्यिक भाषा बस यात्रा में चार चांद लगा रहा था। वैसे तीन से चार घंटे की बस यात्रा पुरी हो गई।

सुमन को जिस घर में जाना था वह मुख्य सड़क से चार सौ मीटर की दूरी है और वहां तक जाने के लिए कोई रास्ता नहीं है सिवाय खेतों के पगडंडी। सुमन को बड़ा मजा आया कभी खेत में उतर जाता कभी मेड़ पर चढ़ जाता एक दम चंचल पक्षियों की भांति। अब तक न जाने कितने प्रकार के चिड़ियों को आकाश में तथा पेड़ों के झुरमुट में देखा। मन ही मन अंदाज लगाया कि उसके सर का भी अवश्य गांव होगा तभी उन्होंने ने शहर - गांव के अंतर को बताया। घर पहुंचने के बाद वह वहां के लिए अपरिचित था पड़ोसी के बच्चे उसे देखने आते हैं और कुछ हीं समय में आंखों के माध्यम से मित्रता का आमंत्रण स्वीकार कर लिया और गांव के बड़े वट वृक्ष के छाया तले गांव के बच्चों के साथ खेलने लगा और उसका शरारती हृदय उसे एक अलग पहचान दिलवा कर ही छोड़ा। गांव के बच्चों ने सोचा था सुमन शहरी लड़का है और उन लोगों की तुलना में कमजोर होगा लेकिन वह उनके सोच के विपरीत निकला। सुमन बुद्धि एवं बल में बीस जिसका प्रमाणपत्र गांव के सबसे दुष्ट लड़के को पीट दिया। परिणाम वही जो बच्चों का लड़ना - झगड़ना तथा बड़ों का उसमें कूदना। बड़े एक दूसरे को गालियां एवं धमकियां देने में उलझे रहते हैं और छोटे बच्चे पुनः खेल रहे होते हैं। तीन से चार दिन में पूरा गांव जान जाता है कि राय बाबु के घर में सुमन नाम का एक यंत्र आया है।

दोपहर का समय। जेठ मास की दुपहरी में सारा गांव अपने - अपने घर में कैद हो आराम कर रहा होता है जबकि वट वृक्ष के बने पक्के चबूतरे पर ताश खेलने वालों का चार - पांच दल साहेब-बेगम-गुलाम-टेक्का का पाठ्यक्रम पढ़ रहा है। वटवृक्ष के ठंडी छांव के सारे में गाय-भैंस तथा कुत्ते भी विश्राम कर रहे हैं। वहीं से कुछ दूरी पर एक फूलवारी में धान के आंटियों की कई पूंजीलगाई गई थी। सुमन अपने साथियों के साथ वहीं खेल रहा है। लुका-छिपी खेल अपने चरम सीमा पर पहुंच गया है। अतः थोड़ा आराम करने के लिए खेल रुक जाता है। बाल सुलभ भावना अजीबोगरीब होती है। एक स्थान पर स्थिर नहीं रह सकता है,इन बच्चों की चंचलता कब किस ओर मुड़ जाएगा कोई नहीं कह सकता है। खेलने वाले बच्चों में सिंधु नाम का एक दुष्ट भी था जिसके अंग-अंग में दुष्टता झलकती थी। उससे परेशान गांव वासी हारु का योग्य सपूत कहा करते थे क्योंकि हारु के क्रियाकलापों से सबका नुकसान ही अधिक होता है और वह इतना चतुर था कि स्वयं बचकर निकल जाता और दूसरे को फंस जाना पड़ता। हारु पक्का बिड़ी खोर था और उसका पुत सिंधु बाप की जेब से बिड़ियां चुरा कर लाता तथा साथियों के बीच में स्वयं भी कश लगाता और दूसरे लड़कों को भी दम लगाने को उकसाया करता। जिस समय सभी लड़के आराम कर रहे थे सिंधु अपने अभ्यासानुसार बिड़ी-माचिस निकाल उसे सुलगाकर मुंह से धुआं का गोल-गोल छल्ला बना कर दिखाता है। अन्य लड़के बड़े उत्सुकता से उसे देख रहा था एक-एक कर सभी लड़के सिंधु की भांति करने का प्रयास करते हैं। चुंकी सुमन भी साथ खेल रहा था इसलिए सिंधु उसे बिड़ी का दम लेने को कहता है पर सुमन तैयार नहीं हुआ सो सभी लड़के जबरदस्ती करते हैं और जोरा जोरी में बिड़ी का टुकड़ा छिटक गया। छिटका तो छिटका, जाकर गिरा धान की आंटियों की पूंजी के पास। ऐसे समय में हारु भी फुलवारी के पास लघुशंका के लिए आया हुआ था और उसने बिड़ी का छिटकना देख लिया और लड़कों को डांटा नहीं बल्कि वहां से कुटिल मुस्कान बिखेरते ताश खेलने चला गया। एक तो सूखी धान की आंटी ऊपर से जेठ की गर्मी धीरे-धीरे बिड़ी का टुकड़ा अपना रुप दिखाना प्रारंभ कर दिया। लड़कों ने देखा कि हल्की-हल्की अग्नि की लपटें उठने लगी तो वे उसे बुझाने का प्रयास किये पर आग बुझने के स्थान पर कहीं ज्यादा क्रोध दिखाने लगा। लड़के सब डर गये तथा आग लग गई-आग लग गई चिल्लाते हुए भाग खड़े हुए। इस चित्कार को सुनकर सारे तशेड़ी भागने वालों को देखा जिनमें सबसे पीछे सुमन दौड़ते हुए भाग रहा था। चबूतरे पर खेल बंद, गपशप पर वज्र गिर पड़ा। धान की बिचाली(सूखी आंटी) की पूंजी को स्वाहा होने से बचाने के लिए काफी कोशिशें की गईं परंतु एक पूंजी को छोड़कर बाकी सभी अग्नि के साथ फेरे लगा कर ब्रह्मलोक प्रस्थान कर गए। अब जिनके-जिनके पूंजी थी उनके नुकसान का भरपाई कैसे होगा। सबने निर्णय लिया कि जिस लड़के ने आग लगाई उसके बाप को देना पड़ेगा और उसी अनुसार कार्य होगा। खेलने वाले लड़कों के घर वालों के सामने पहाड़ टूटता दिखाई देने लगा। और क्रोध में आकर लड़कों की खोज होने लगी तथा सभी लड़के मिले पर सुमन कहां गया। शाम होने को था। पूरे गांव में हवा की भांति बात फैल गई कि राय बाड़ी में जो नया लड़का आया था वह को गया है। गाय-बैल, बकरियों के झुंड धूल उड़ाते हुए गांव की ओर लौट रहे थे। पश्चिमी आकाश की लालिमा अब घनी होती जा रही है और खगों का दल भी किचिर - मिचिर कलरव करते हुए अपने घोंसले को लौट रहे हैं। राय बाड़ी के नारियों का आर्तनाद सुनाई देने लगा। की तरह की आशंकाएं ग्रामीणों के मनोमस्तिष्क में घुमड़ती है। सभी एक-दूसरे को संदेह की दृष्टि से देखते हैं कारण भी था एक तो राय बाड़ी की आर्थिक स्थिति खराब नहीं है और लड़का इस गांव में एक दम नया था। दूसरा संदेह उस पहाड़ी नदी की धारा जो गांव और जंगल के बीच सीमा रेखा है। तीसरी चिंता जंगली जानवरों की जो शाम के समय गांव में भी चले आते हैं एवं घरेलू ढोरों को उठा कर चले जाया करते हैं। अंत में लोग बड़ी - बड़ी टार्चें, खाली टिन की बुरी तरह पीटते हुए लाठी - बल्लम, दांव - कटारी लिए नदी की तरफ सुमन की खोज में गये परंतु काफी समय बाद सारे के सारे लोग खाली हाथ लौट कर आए तथा शेष निर्णय लिया गया कि अब अगले दिन जंगल में भी ढूंढा जाएगा यदि जंगली जानवर का ग्रास बन गया होगा तो भी अवशेष अवश्य मिलेगा। उधर जिनके बिचाली जल कर स्वाहा हो गया था उनका क्रोध ठंडा पड़ गया और राय बाड़ी के प्रति सभी ग्रामवासियों का मन दुखी था। इसे हीं गांव की सरलता कहते हैं। एक दूसरे के दुःख में या सुख में समान रुप से सहभागी होते हैं परन्तु ईर्ष्यालु एवं गिद्ध दृष्टि में सौ प्रतिशत में एक सौ दस। किस प्रकार से नुकसान किया जाएगा का प्रशिक्षण उन्हें बचपन से हीं प्राप्त हो जाता है।

                      जेठ महीने में करोड़ों रत्नों से सजा रात का आकाश एक दम भारी - भरकम होकर पूरे गांव की आंखों के नींद का हरण कर लिया था। घरों के बड़े - छोटे आंगनों में केवल खटियों पर करवटें बदली जा रही थी और लोग इन्तजार कर रहे थे आनेवाली भोर का ताकि पौ फटते ही सुमन के तलाश में सभी जंगल की राह पकड़ेंगे। जब कोई अनिश्चित घटना घटित हुई तो समझो कि समय का चक्का आगे बढ़ना नहीं चाहता है। खैर खेतिहरों का अभ्यास सदैव रहा है ब्रह्म मुहूर्त में बिछौना त्यागना। जवान साहसी लड़कों का दल पुरी तरह से सज्जीत होकर जंगल की ओर कूच कर गए। पश्चिमी आसमान में भोर का तारा इतना उज्जवल दिखाई दे रहा था जैसे वह अकेले ही अंधेरे को भगाने का प्रयास कर रहा है। कुछ समय पश्चात मुर्गे की बांग सुनाई दी और फिर मंदिर का घंटा बजाने एवं मस्जिद की अज़ान सुनाई देती है। राय बाड़ी से नारियों का धीमी आर्तनाद पुनः आना शुरू कर दी। भुवन - भाष्कर ने पेड़-पौधों,खगों तथा पशुओं को भी निद्रा छोड़ने का आदेश दिया। पशुओं को चारा खिलाने के लिए बाहर निकाला जा रहा है और गौशाला साफ करने का काम चल रहा था। राय बाड़ी के गौशाले के गोबर निकालने वाली की दृष्टि अचानक उपर बिचाली रखी मचान पर पड़ती है। चौंक उठी यह तो किसी बच्चे की टांग है इसका मतलब सुमन यहीं सोया हुआ है। दौड़ कर सबको बुलाकर लायी। मचान पर वास्तव में सुमन हीं था। उसे जगाकर समझाया गया कि उसे न डांट पड़ेगी और न ही मार खाना पड़ेगी और घर के लोगों के आंखों में खुशी आंसू छलक आए। फौरन हीं पास-पड़ोस के घरों में खबर दी गई कि जो लोग जंगल की ओर गए हैं उन्हें वापस लाया जाय।

लेकिन राय-बाड़ी के लिए यह खुशी क्षणिक हीं रहा क्योंकि पंचायत में अभियोग दायर किया गया कि राय बाड़ी को बिचाली जल जाने के लिए क्षतिपूर्ति देनी होगी। एक-दो रुपए की बात नहीं है लाखों आंटी बिचाली हैं तथा लगभग दो सौ रुपए हजार न्युनतम बाजार का मुल्य है जबकि बच्चे तो सबके खेल रहे थे क्षतिपूर्ति की राशि सबसे वसूला जाना चाहिए था। इतनी बड़ी राशि का भुगतान एक के सर पर थोप देना अभियोग करने वालों को क्या हंसी-खेल लगती है या ईर्ष्या वश ऐसा किया जा रहा है। सुमन के लिए घर से निकलना बंद कर दिया गया परन्तु उसका मन इस बंदी दशा को स्वीकार नहीं करता है। वह रह-रहकर बाहर की मुक्त हवा में उड़ना चाहता है पर उसके पंखों को बांध कर रखा गया है, परिणाम घर में इतना शैतानी करता है कि घर वालों को उसे वापस भेजने का निर्णय लेना ही पड़ता है। वैसे जब तक पंचायत में विचार न हो जाय सुमन को शहर भेजना भी संभव नहीं है।

आखिर वह दिन आ गया जब दूध का दूध और पानी का पानी हो। गांव के चबूतरे पर शाम के वक्त अभियोजन पक्ष तथा आरोपी पक्ष को बुलाया गया। विचारक के रूप में पंचायत का प्रधान विधुभूषण राय को सबने मिलकर चुना। विधुभूषण राजनीतिक दल के नेता और आसपास के गांवों में उनकी तूती बोलती है। किसमें हिम्मत है जो विधुदा की बात को काटे। आज के पंचायत में न्याय का पलड़ा किस ओर झुकेगा यह देखने के लिए पास-पड़ोस के ग्रामीण एवं राजनैतिक कार्यकर्ताओं की भीड़ भी जुट जाती है। विधुदा सबसे पहले पूरी घटना की जानकारी लिया और उन सभी लड़कों को भी बुलाया गया तथा उन्हें कहा गया वे अभिनय करके दिखाए क्या हुआ था और कैसे भागे। उपस्थित सभी लोग निर्वाक होकर विधुदा के चेहरे पर दृष्टि गड़ाए थे। वटवृक्ष के पत्ते हल्के-हल्के कांप रहे थे जिससे गर्मी में थोड़ी नरमी आ गई। अचानक विधुदा ने अभियोगकारियों से पूछा कि आप लोगों ने सुमन के द्वारा आग लगाई गई यह किस आधार पर कहा है। फौरन एक अभियोगकारी ने बताया कि "दादा हारु ने आग लगाते हुए देखा"

"अच्छा तो हारुदा आपने देखा सुमन ने आग लगाई"

"हां दादा"

"ठीक है। पर आपने कैसे देखा, आप वहां कैसे पहुंचे"

"जी, मैं लघुशंका के लिए गया था" यह सुनकर सबलोग हंसने लगे।

"अब आप मुझे बताएंगे कि क्या उस लड़के को आपने मना किया था?" इस प्रश्न पर हारु सकपका गया और उसके समझ में नहीं आया वह क्या उत्तर दे!

"क्या हुआ आप चुप लगा गये" उसकी चुप्पी ने हीं सब कुछ कह दिया। लोगों में कानाफूसी होने लगी। सबके हृदय की धड़कन बढ़ गई कि पंचायत प्रधान क्या निर्णय लेंगे साथ ही साथ रमापद राय कपाल पर पसिने की बूंदें उभर आई। सुमन उसका नाती था इसी कारण से एक बड़ी राशि का भुगतान करना होगा। कहां से लाएगा?

"उपस्थित ग्रामवासी बंधु, आप अच्छी तरह से समझ गयें है कि अभियोजन पक्ष ने सुमन के ऊपर आरोप लगाया है परन्तु मुझे लगता है अपराधी इन लड़कों में से कोई नहीं है बल्कि अपराधी यदि कोई है तो वह है हारु"। एक बार फिर वातावरण में पारा उपर चढ़ गया। ये सभी लड़के अभी उम्र में बहुत हीं कम हैं। इन्हें लाभ-हानि का ज्ञान नहीं है और सारी बातें इनके लिए खेल के अलावा कुछ नहीं है जबकि हारु वयस्क और समझदार तथा मन-मस्तिष्क से परिपक्व है। जब उसने देखा कि लड़के जलती हुई बीड़ी लिए आपस में छीना-झपटी कर रहे हैं तो उसके लिए क्या उचित था बच्चों को मना करे पर उसने ऐसा नहीं किया और बिचाली सूखी हल्की-सी अग्नि स्फुलिंग ने देखते ही देखते सब स्वाहा कर दिया"।

" एक दम सही" ग्रामीणों के बीच से गुंजन आई।

"सबसे महत्वपूर्ण विषय यह है कि बिचाली जल कर खाक हो गई तो अगली खेती में आप प्राप्त कर लेंगे पर आपने कभी सोचा है यदि इन बच्चों में से कोई भी आग की भेंट चढ़ जाता तो क्या अगली खेती में वह बच्चा आपको वापस मिलेगा! इसलिए मानव जीवन से बढ़कर कुछ भी मूल्यवान नहीं है। आज के बच्चे अपने देश के भविष्य हैं अतः इन्हें सही मार्गदर्शन देना हम बड़ों का सबसे बड़ा कर्तव्य है। अतः मैं सुमन के ऊपर लगे आरोप को खारिज करता हूं और हारु को उसके अपराध के लिए पांच हजार रुपए की राशि पंचायत को भुगतान करने का फैसला करता हूं।"

उपस्थित ग्रामीणों के बीच से साधू-साधू की लहर उठी।



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