नवजीवन
नवजीवन
इंसान वहीं है आसपास का वातावरण वहीं है फिर इस पवित्र वातावरण में यह कैसी सुरभि समाहित हो गई इससे संपूर्ण वातावरण सुगंधित हो उठा!
यह कैसे स्वर प्रकृति में गूंजने लगे की संपूर्ण वातावरण गुंजायमान हो उठा!
जीवन की असमानताओं से हारी हुई नीलिमा ऊंचे नीचे गड्ढों को पार करते हुए दूर क्षितिज से आती हुई रोशनी को देखकर सोच रही थी। उसके अंदर का डर धीरे धीरे क्षितिज की रोशनी में विलुप्त होने लगा था।
शायद उसके अंदर की ईश्वरीय अनुभूति थी जो उसको आगे जीवन जीने की प्रेरणा प्रदान कर रही थी।
और उसके कदम नवजीवन की ओर बढ़ चले।