नसीहत
नसीहत
दाल चावल को छोड़कर बाकी सभी भोजन मुझे पसंद आते हैं। वह साउथ इंडियन हों, मुगलाई हों, चाइनीज़ हों, थाई या फिर कॉन्टिनेंटल। और मीठा ,ओहो यह तो मेरी कमजोर नस है ! गर्मी के दिनों में खाने पर मेरा ध्यान नहीं होता। खाने के बाद आम खाने हैं, इस पर ध्यान होता है। अन्य दिन भी खाना खत्म हुआ और कुछ मीठा होना ही चाहिए, तो मीठा मेरी कमजोरी है। मुझे आइसक्रीम बेहद पसंद है।
हमारे देश में खाने की इतनी किस्में हैं कि वर्णन करने बैठें तो कई पन्ने भर जाएंगे।
जब हम छोटे थे तो हर इतवार को बाहर खाना खाने जाते थे। अधिकतर दोसा या फिर मुगलाई और उसके बाद आइसक्रीम,' हैव मोर' ।यह अहमदाबाद,गुजरात की बात है। मुगलाई खाना होता तो महाशयां दी हट्टी। विवाह के बाद गुजरात छूटा और एक छोटे से कस्बे में बसना हुआ। उस समय ले देकर एक दो रेस्टोरेंट हुआ करते थे और उनमें ठेठ देहाती ढंग से बने हुए डोसे जिनमें कच्चे प्याज डले होते,मोटा- मोटा डोसा हुआ करता था।समय के साथ वर्षों बाद अच्छे रेस्टोरेंट भी खुले।मगर बचपन में गुजरात के अहमदाबाद का चेतना होटल का डोसा, किशोर की लस्सी और हैव मोर की आइसक्रीम स्मृति से मिटाए नहीं मिटती।
किसी अपने के आने पर भी हम उन्हें बाहर इन्हीं जगह खाना खिलाने ले जाना अच्छा समझते थे। एक बार जब हमारी बुआ जी आईं तो हम बड़े गर्व से उन्हें बाहर खाना खिलाने ले गए।मगर जब वे वापस घर लौटीं तो उन्होंने इस बात पर बहुत बवाल खड़ा किया और पिताजी से कहा कि तुम्हारी पत्नी हमें एक समय भी हाथ से खाना बनाकर खिला नहीं पाई। उस दिन से मैंने भी इस बात को गांठ बांध ली कि कोई अपना अगर आता है तो उसे घर का भोजन ही कराना
चाहिए।बाहर का भोजन कितना भी लज़ीज़ हो मगर उस भोजन में शायद आत्मीयता, स्नेह और प्रेम नहीं झलकता।