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Kunda Shamkuwar

Others

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Kunda Shamkuwar

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नोकझोंक अच्छी वाली....

नोकझोंक अच्छी वाली....

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"अरे, तुम्हारी क्या शिफ्ट है आज?"

"क्यों?"

"मुझे खाना बनाकर जाना होगा न ऑफिस। इसलिए पूछ रही हूँ।" "अच्छा खाने में क्या बनाऊँ? मेरा मतलब आलू गोभी या मटर पनीर?" "कितने सवाल करती हो तुम? हर बार तुम्हारे हज़ार सवाल होते है ... "

"इतना सब बोलने की ज़रूरत नहीं है। सिर्फ़ जितना पूछ रही हूँ उतना ही बता दो।" "नहीं, तुम्हारे सवाल ही ख़त्म नहीं होते।" 

"अरे, एक ही घर में रहने वाले लोग इतनी बात तो करेंगे ही न? और तुम क्या चाहते हो कि हम किसी रोबोट और कठपुतलियों की तरह एक घर में रहे? बात तो करनी ही होगी न?" 

आजकल न जाने हमारी कोई भी बात इसी तरह शुरू होकर एक अनप्लीजेंट नोट पर ख़त्म हो जाती है। 

और एक पछतावे के साथ कई सारे सवाल एक साथ मुँह बाये खड़े हो जाते है।

क्यों मैंने बोलना शुरू किया था? 

मुझे खामोशी से कब काम करना आयेगा? 

खामोशी से काम करना आयेगा भी? 

यह सारे सवाल फिर मुझे घेर कर मेरे आगे गोल गोल फिरने लगते है। उनकी वह सवालिया नज़रें मुझसे ढेर सारे सवाल करती है। वह सवाल मुझे चुभते है। लेकिन मेरा मन घूम फिर कर कहने लगता है की हम क्या कोई पेइंग गेस्ट है? घर है तो बात तो होगी ही.... 

फिर मुझे मेरे उन सारे सवालों का जवाब मिल जाता है..... 

घर है तो बात तो होगी ही.... 

घर की यह नोकझोंक हमारे रिलेशन्स को मजबूत करती है.....और उन सारे बॉन्ड्स को भी.... 

हाँ, दाग अच्छे है की तर्ज़ पर घर में हमारे बीच होनेवाली नोकझोंक भी अच्छी है।

लेकिन टीवी और फ़िल्मों की दुनिया तो बनावटी होती है...हक़ीक़त की दुनिया से कोसों दूर..जहाँ दाग़ क्या अच्छे होते है?बिल्कुल नही.... 

और नोकझोंक?

हम सब इस बातसे इत्तेफ़ाक़ जरूर रखतें है कि हल्की सी नोकझोंक भी हमारे रिश्तों में दरार पैदा कर देती है और कई बार रिश्तों में गाँठ पड़ जाती है....  


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