नन्ही दूब
नन्ही दूब
"मम्मा ये देखो, डहलिया का पौधा मैं अपनी सहेली के घर से लेकर आयी हूं। इसे गमले में लगा देती हूं " कहती हुई जिया बालकनी की ओर बढ़ी।
"बेटा, घर में खाली गमले नहीं हैं। पहले से बता देती तो गमले मंगवा देती। अभी ऐसा करो एक पॉलिथनी में पौधा रख दो और थोड़ा पानी छिड़क देना। शाम को मैं पापा से गमला मंगवा दूंगी।" अनिता ने बेटी को समझाया।
"गमला तो है ही मम्मा। एक गमले में आपने घास उगा रखी है। मैंने उसमें पानी डालकर मिट्टी गीली कर ली थी। घास हटाकर अपना डहलिया लगा लूंगी" जिया चहकती हुई बोली।
"बेटा, उसे घास नहीं दूब बोलते हैं तो एक प्रकार की घास ही पर वो मुझे मेरी जड़ों पर पकड़ की याद दिलाती है"विम्मी ने बेटी को समझाने की कोशिश की।
"जड़ों पर पकड़ क्या मतलब है मम्मा" उसने हैरानी से पूछा।
"दूब घास की जड़ें मिट्टी को खूब तेजी से पकड़ती हैं। यह स्वास्थ्य के लिए उपयोगी हैं। और इन्हें देखभाल की बहुत अधिक जरूरत नहीं होती है। यह काफी नर्म होती है। गणपति को यही तो चढ़ाते हैं। बेटियां जब मायके से आती हैं तो मां आंचल में चावल आदि के साथ दूब भी देती है। ताकि बेटी वहां हरी-भरी रहे और मायके और ससुराल को दूब की जड़ों की तरह मजबूत आधार दे। अपने आंचल में मिले दूब को ही मैंने गमले में लगाया है जिया। यह मेरे लिए बहुत खास है। तुम्हारे लिए भी होना चाहिए। उसे रहने तो डहलिया तो फिर लग जाएगा, पर मां के स्नेह वाला दूब कहां पाउंगी मैं।"
जिया मां के गले लग गई, उसे दूब की महत्ता समझ में आ गई थी।
