नकारा जाना
नकारा जाना
बात कुछ नहीं है 'जय मेरे पति कहते हैं ना कि मैं बिना वजह ओवर रिऐक्ट करती हूँ। अति प्रतिक्रिया ?या फिल्म बना लेती हूँ।
'हां मेरा अति सवेंदनशील होना ही, लेकिन क्या सचमुच बात कुछ भी नहीं है, घर -परिवार सब कुछ अच्छे से सम्भालते हुए भी ख़ुद को नकार दिया जाना, बात कुछ भी नहीं है ?
(पति के शब्दों में )बिना वजह तुम फिल्म बना लेती हो, मेरे पूरे वजूद को "बिना वजह"बना देता है।
घर मे जब किचन से खाने की सोंधी महक उठती है तो अम्मा-बाबू जी खाना लगा दो बहू सोंधी महक से भूख लग गई है। मैने दो-तीन तरह की सब्जी और दाल, चावल, रायता सब बनाया था थाली परोस कर उनके कमरे मैं दे आई फिर पति और बच्चों को भी पुकार लगाई गरम आप भी खा लें,सबने खाना खाया छक कर फिर अपने-अपने काम में व्यस्त हो गए।
अपने लिए दो फुलके थोड़े से चावल जानते हुए भी सब्ज़ी नहीं बची है। फ्रिज से दही ले कर कमरे मैं पति पास आ गई खाना खाने ..चहक कर बोले आ गई तुम जय कहते हैं सब्ज़ी बहुत अच्छी बनी थी ,कहते हैं 'अरे' ताजा सब्जी होतो खुद बा खुद अच्छी बन जाती है ।
जय का आख़िर लफ्ज़ खल गया.. कभी दाल,चावल की उच्च क्वालिटी को ,तो कभी गरम मसालों की शुद्धता को खाना अच्छा बनने का ...
कभी किसी ने मेरे खाना बनाने की तारीफ नहीं की ....या समान अच्छा लाने की वजह से खाना अच्छा बना ...
जाने क्यों मेरे तन बदन में आग लग गई आंखों मेंं आँसू आ गए ,बात कुछ भी नहीं थी बस....।
अपने आपको हर जगह नकारे जाने का दर्द था जो आंसुओं के साथ बह निकला .....।