Rajeshwar Mandal

Others

3.8  

Rajeshwar Mandal

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निर्दोष मुजरिम

निर्दोष मुजरिम

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एक हाथ में आधार कार्ड और दूसरे हाथ में पानी बोतल।वैसे तो कोर्ट में हाजीर होने का समय एग्यारह बजे है परंतु टेंपु से थोड़ा जल्दी पहुंच गयी है आज।

टाइम पास करने के लिए कचहरी प्रांगण के बाहर खड़ी खड़ी बिल्डिंग को यूं ही निहार रही है।लोगों का आना जाना शुरू हो गया है। यह इंडिया का कचहरी है। होम्योपैथी युनानी डाॅक्टर की तरह हर एक मर्ज की दवा मिलती है यहां।एफिडेविट के सहारे जन्म प्रमाण पत्र से मृत्यु प्रमाण पत्र के बीच का सारे प्रमाण पत्र।सो भिन्न-भिन्न कैटेगरी के लोगों का आना जाना रहता है यहां। भले लोग भी और बुरे लोग भी।


एक लफंदर टाइप लड़के ने तंज कसा - "इतनी सुन्दर है तब पति इसे काहे छोड़ दिया रे बाबा।"


दुसरे ने नहला पर दहला मारा- "अरे बड़ी घालमेल है इस सुंदरता में । हो सकता है सुंदर हो पर शालीन न हो।"


तीसरे ने बात संभालते हुए दोनों को फटकारा "भागते हो कि नहीं यहां से। बेचारी दुखियारी है तब न आई है यहां। नहीं तो किसको शौक है तुम्हारे जैसे लोगों के ताने सुनने का।"


केस नम्बर एक दहेज़ प्रताड़ना से संबंधित है जो शालीनी (पत्नी) ने नागो (पति) पर की है और आरोप है कि नागो उनको मायके से पैसे मांगने के लिए दबाव बनाते हैं और नहीं लाने पर उनके साथ मारपीट करते हैं।केस नम्बर दो नागो (पति) ने शालीनी (पत्नी) पर किया है तलाक का , आरोप है कि शालीनी चाल चलन ठीक नहीं है सो उन्हें तलाक चाहिए।जज साहब के लाख प्रयत्न के बाबजूद भी कोई सकारात्मक नतीजा नहीं निकाला जा सका।नागो बार बार एक ही रट लगाए बैठा था कि जब बेवजह तीन महीने जेल खटवा ही दिये तो अब कैसा समझौता?बात सही है पति पत्नी के झगड़ों में अक्सर इसी तरह की व्यवधान हर एक दो तारीख पर उठती रहती है।और अगर बाल बच्चों के भविष्य के मद्देनजर कोई समझौता कर भी लेता है तो वह रेत की बनी दीवार से कम नहीं होती। आपसी प्रेम का लेस मात्र भी जगह नहीं। रेल की पटरी जैसी जिंदगी। अंत तक चलना साथ साथ है पर दिलों का मिलन कभी नहीं होना है।और अंततः गवाह और बयानातो के आधार पर नागो को तीन बर्ष का सश्रम कारावास की सजा के साथ साथ उभय पक्ष के मध्य तलाक का फैसला सुना दिया गया।


एक ओर जहां नागो सोच रहा है चलो तीन साल ही न जीवन भर का टेंशन से मुक्ति तो मिली । वहीं दूसरी ओर केस जीतने के कारण शालीनी के चेहरे पर हल्की सी मुस्कान बिखर गई थी। ( हालांकि शालीनी को अभी ये पता नहीं है कि वह केस जीत कर भी केस हार चुकी है )


जज साहब -- "देखिए जो होना था वो तो हो गया। अभिलेख पर उपलब्ध साक्ष्यों के आधार पर मैंने अपना फैसला भी सुना दिया। और मैं अब इसमें कोई तब्दीली भी नहीं कर सकता।लेकिन पता नहीं मुझे ऐसा क्यों लगता है बात उतनी बड़ी नहीं जितनी बातें आप लोगों के अर्जी में लिखी गई है।"


"जी! सचमुच बात वैसी नहीं है।"


"तो बात क्या है?"


नागो-- "मी लॉर्ड बात ऐसी है कि मैं मोटर साइकिल से एक दिन बाजार जा रहा था। शालीनी बोली एक किओ कारपीन तेल लेते आना।मोटर साइकिल के आवाज के कारण मैं एक किओ कारपीन के जगह एक किलो तारपीन सुन लिया। और मैं तारपीन का तेल ले आया।वो बोली किओ कारपीन बोले थे तारपीन नहीं

मैं बोला अरे बुलेट की आवाज में नहीं सुन पाया।वह और तम तमा गई। बोली बुलेट किसको बोला?एक बार मैं गलत सुना एक बार वो गलत सुनी।

यूं ही बात का बतंगड़ होते चला गया और मामला यहां तक आ पहुंचा। और दोनों पक्ष की ओर से मनगढ़ंत कहानी बना कर केस कर दिया गया।


मी लॉर्ड चश्मा खोलते हुए चैंबर की ओर चल पड़े थे।तभी पीछे से एक धीमी आवाज आई " निर्दोष मुजरिम"।


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