निमंत्रण
निमंत्रण
काफ़ी समय पहले की बात है। एक बार शेख़ सादी को एक अमीर आदमी ने दावत में आने का निमंत्रण दिया। शेख़ सादी निर्धन थे, वे अपने फटे- पुराने कपड़े पहनकर दावत में गये। किसी ने उनकी ओर देखा तक नहीं। उनको अन्दर बैठने तक नहीं दिया गया, बाहर ही रहने दिया।
उनको सबसे बाद में सिर्फ़ बचा- खुचा खाना खाने को दिया गया।
कुछ दिनों बाद शेख़ सादी को उसी घर से फिर खाने का बुलावा आया। उन्होंने किसी से बढ़िया कपड़े उधार मॉंगे और उन्हें पहनकर दावत में गये।
अच्छे बढ़िया कपड़े पहनकर जब वह दावत में पहुँचे तो सबने उनकी बड़ी आवभगत की, मानो वह कोई बहुत बड़े आदमी हों। भोजन के समय उनको सबसे ज़्यादा सम्मान की जगह बैठाया गया।
शेख़ सादी ने थोड़े से चावल लेकर अपने कोट की एक बॉंह में डाल दिये। दूसरी बॉंह में सालन का थोड़ा सा हिस्सा डाला। मेहमान यह देखकर आश्चर्य चकित हुए।
शेख़ सादी ने मेहमानों की तरफ़ देखे बिना अपने कोट की बाहों से कहा-“ खाओ , मुझको जो इज़्ज़त आज यहॉं मिल रही है, वह तुम्हारे कारण। “
किसी की इज़्ज़त कपड़ों से नहीं, उसके व्यवहार और विद्या बुद्धि से होनी चाहिये। निर्धन व्यक्ति भी बहुत शिक्षित गुणी हो सकता है। गुणों का सम्मान होना चाहिये, कपड़ों का नहीं।