नीम का पेड़
नीम का पेड़
यह क्या! यहां का नीम का पेड़ कहां गया? दो साल बाद अपने पिताजी के घर आई निशा ने पूछा। दरअसल निशा के घर के सामने एक 50 वर्ष से भी अधिक पुराना नीम का वृक्ष था। जिसके आसपास निशा का बचपन गुजरा था। कभी वृक्ष पर चढ़ना कभी झूलना और न जाने क्या-क्या खेल खेले थे निशा ने इस वृक्ष के आसपास। इस वृक्ष के पीछे शॉपिंग कॉम्प्लेक्स भी था और वृक्ष के ठीक पीछे स्टेशनरी की दुकान ।
पिताजी ने बताया कि इस दुकान के मालिक की शिकायत थी कि, यह पेड़ उसकी दुकान व ग्राहकों के बीच रुकावट बन रहा है अतः कटवा दिया गया। अर्थात हमारे मौलिक कर्तव्य का बड़ी आसानी से हनन कर दिया गया। कुछ लोगों ने इसके विरोध में आवाज उठाई तो उसे दबा दिया गया। दरअसल उस दुकान में ग्राहकों की संख्या के कम होने का कारण वह वृक्ष नहीं अपितु दूसरी स्टेशनरी दुकान का भी उसी दुकान के दो दुकान छोड़कर बाजू में होना था। दुकान तो नहीं हटवा सकता था अतः मूक पेड़ ही कटवा दिया उसने।
कुछ पैसे ज्यादा जोड़ने के चक्कर में खुद की सांसो का ही हिसाब घटा लिया उसने।
उस एकमात्र वृक्ष की बलि चढ़ने के बाद अब निशा के घर के आस-पास सिर्फ कांक्रीट का जंगल ही बचा था जहां अब न पत्तों की सरसराहट सुनाई देती ना ही निमोली वाली ठंडी पुरवाई का आनंद मिलता । दिखाई देती तो सिर्फ सड़कों पर उड़ती धूल और सुनाई देता है तो वाहनों का शोरगुल।