अनिल कुमार गुप्ता अंजुम

Children Stories Classics Inspirational

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अनिल कुमार गुप्ता अंजुम

Children Stories Classics Inspirational

मुस्कान लौट आई

मुस्कान लौट आई

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गाँव के मुहाने पर एक ओर बुधिया का मकान। मकान में बुधिया की पत्नी, उसकी प्यारी सी बेटी गौरी , माता एवं पिता कुल इतने सदस्य थे। थोड़ी सी ज़मीन थी जिस पर बुधिया और उसकी पत्नी नकद फसल उगाया करते थे। बुधिया के माता – पिता शारीरिक रूप से थोड़ा बीमार रहते थे इसलिए घर के काम में उनका योगदान नहीं के बराबर था। घर में ग्रामीण जीवन स्तर की सभी आवश्यक चीजें मौजूद थीं। बिटिया गौरी अब सातवीं कक्षा में गाँव के ही मिडिल स्कूल में पढ़ रही थी। पढ़ाई में अव्वल होने की वजह से गाँव के सभी लोग उसकी तारीफ किया करते थे। गौरी की एक सहेली थी नंदिनी। वह भी उसके साथ सातवीं कक्षा में पढ़ती थी।

एक दिन अचानक गौरी की माँ को दिल का दौरा पड़ा और उनका असमय निधन हो गया। घर में मायूसी का आलम हो गया। अब खेत की सारी जिम्मेदारी बुधिया पर आ पड़ी और घर की सारी जिम्मेदारी गौरी के छोटे – छोटे कंधों पर। किसी तरह से गौरी ने सातवीं कक्षा पास की। इसके बाद उसक पिता बुधिया ने उसे साफ़ – साफ़ मना कर दिया कि वह आगे की पढ़ाई नहीं कर सकेगी क्योंकि उसे घर के सारे काम के साथ – साथ दादा और दादी की भी देखभाल करनी है। गौरी की मुस्कान अब गुम हो गयी और वह अब उदास रहने लगी।

समय बीतता गया। करीब एक वर्ष बाद एक दिन गौरी अपने पिता के साथ खेत पर काम करने गयी। खेत पर काम करते समय अचानक उसकी सहेली नंदिनी अपने पिता के साथ मिठाई का डिब्बा हाथ में लिए आ पहुंची और अपनी सहेली गौरी को अपने गले से लगा लिया। गौरी को यह सब असामान्य लग रहा था। उसने सबसे पहले नंदिनी के पिताजी को नमस्ते कहा फिर नंदिनी से पूछा – क्या बात है ? तभी गौरी के पिता भी उनके पास आ पहुंचे। तब नंदिनी के पिता ने गौरी के पिता को बताया कि आपकी बेटी ने कक्षा आठवीं की बोर्ड परीक्षा में पूरे ब्लाक में प्रथम स्थान प्राप्त किया है। यह सुनकर गौरी के पिता सन्न रह गए और कहने लगे कि मैंने तो गौरी की आगे की पढ़ाई रोक दी थी फिर ये कैसे संभव हुआ। सारा दिन घर के कामकाज में गौरी व्यस्त रहती है मैंने इसे कभी पढ़ते हुए नहीं देखा। तब नंदिनी के पिता ने बताया कि एक साल पहले जब आपने गौरी की पढ़ाई पर रोक लगा दी थी तब मेरी बेटी नंदिनी को बहुत दुःख हुआ था और उसने मुझे गौरी को आगे पढ़ाने के लिए आग्रह किया। मुझे भी गौरी की योग्यता के बारे में मालूम था सो मैने अपनी बेटी नंदिनी का आग्रह स्वीकार कर लिया और गौरी को अपने घर बुलाकर बात की और कहा कि जब तुम्हारे पिताजी खेत पर काम करने के जाया करें तब तुम हमारे घर पढ़ाई के लिए आ जाया करो जो भी पढ़ाई स्कूल में नंदिनी पढ़कर आया करेगी वो तुम्हें समझा दिया करेगी। फिर क्या था हमने इस तरह से गौरी और नंदिनी की पढ़ाई साथ – साथ जारी रखी। मैंने गौरी का प्राइवेट फॉर्म भरवा दिया और देखो आज उसने ब्लाक स्तर पर प्रथम स्थान प्राप्त किया है और एक बात यह भी कि ब्लाक शिक्षा अधिकारी ने बताया है कि गौरी की आगे की पूरी पढ़ाई का सारा खर्च सरकार उठाएगी|

ये सब सुन गौरी के पिता की आँखों में ख़ुशी के आंसू छलक उठे और उन्होंने बिटिया गौरी को अपने सीने से लगा लिया साथ ही बिटिया नंदिनी और उसके पिताजी का कोटि – कोटि धन्यवाद किया और प्रण किया कि वे गौरी को आगे भी पढ़ाएंगे। वे गौरी की इस उपलब्धि पर फूले नहीं समा रहे थे। गौरी की मुस्कान अब वापस लौट आई थी।


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