साहस – कहानी
साहस – कहानी
दिनेश अग्रवाल जी के परिवार में दो बच्चों पंकज और कोमल के अलावा पत्नी सुधा और माता -पिता थे। दिनेश जी की अपनी खुद की मेडिकल की दुकान थी। परिवार संपन्न और खुशहाल जीवन व्यतीत कर रहा था। पंकज कक्षा ग्यारहवीं और बहन कोमल कक्षा नवमी में पढ़ रही थी। दोनों बच्चे सुसंस्कृत और सभ्य आचरण से परिपूर्ण थे। न किसी से झगड़ा और न ही किसी से बैर।
अपनी पढ़ाई में व्यस्त रहना , समय पर खेलना और घर में सभी के साथ पूर्ण सहयोग करना इनकी आदत थी। दादा – दादी की आँखों के तारे थे दोनों बच्चे पंकज और कोमल। इन दोनों का स्कूल घर के ही पास था सो ये पैदल ही आते जाते थे और दोनों एक ही स्कूल में पढ़ते थे।
एक दिन की बात है कि पंकज और कोमल स्कूल से वापस लौट रहे थे। दिन का समय था और जिस गली से गुजरते हुए वे घर आ रहे थे वो गली एकदम सुनसान थी। अभी ये दोनों कुछ कदम आगे बढ़े ही थे कि पीछे से आकर दो मोटर साइकिल रुकती हैं और उनमें से चार लड़के उतरकर पंकज की बहन से छेड़छाड़ करने लगते हैं। पंकज उन चारों लड़कों का विरोध करता है तो वे उसकी पिटाई कर देते हैं। इसी बीच दूसरी ओर से एक पुलिसवाला मोटर साइकिल पर वहीं से गुजरता है तो चारों लड़के वहां से भाग जाते हैं।
पंकज के दिमाग पर इस घटना का बहुत असर होता है। वे दोनों घर आकर पूरी घटना की जानकारी परिवार के सदस्यों को देते हैं। पंकज और कोमल को हिदायत दी जाती है कि वे उस सुनसान गली से न होकर भीड़ वाले रास्ते से स्कूल जाया करें। पंकज और कोमल माता – पिता की बात को मान लेते हैं। पर पंकज के दिमाग में कुछ और ही चल रहा था।
घटना को चार माह बीत गए थे। एक दिन की बात है पंकज और कोमल स्कूल से घर लौट रहे थे। भीड़भाड़ वाले रास्ते पर चक्का जाम था। किसी को जाने की इजाजत नहीं थी। मजबूरी में पंकज और कोमल फिर से उसी सुनसान गली से घर के लिए चल पड़ते हैं। चंद कदम दूर जाने पर फिर से वही चार लड़के आ धमकते हैं। इससे पहले कि वे कोमल को छेड़ते उससे पहले ही पंकज और कोमल उन चारों पर टूट पड़ते हैं। और चारों को अधमरा कर देते हैं। इसी बीच पुलिस गश्ती दल वहां आ जाता है और चारों बदमाशों को पकड़कर ले जाता है। चारों लड़कों को लड़की को छेड़ने और उस पर शारीरिक शोषण करने की धाराओं के तहत गिरफ्तार कर लिया जाता है और सजा दी जाती है।
तो हुआ यूं था कि पहली घटना के बाद पंकज और कोमल के माता – पिता अपने बच्चों को लेकर थाने में शिकायत दर्ज करा देते हैं। दूसरी ओर पंकज और कोमल दोनों को कराटे और जूडो के साथ – साथ सुरक्षा के विभिन्न तरीकों की ट्रेनिंग के लिए अकेडमी में कोचिंग के लिए भेजने लगते हैं ताकि वे अपनी रक्षा स्वयं कर सकें। तान – चार महीने में ही पंकज और कोमल स्वयं की सुरक्षा के तरीके सीख जाते हैं। और उन दोनों के जीवन में डर के लिए कोई स्थान नहीं था। वे दोनों निडर और साहसी बन जाते हैं।
उनके साहस के परिणामस्वरूप उन्हें राष्ट्रपति पुरस्कार के लिए चुन लिया जाता है। पूरे देश में उनके शौर्य और साहस की सराहना होने लगती है। कोमल और पंकज के माता – पिता अब निश्चिंत हो जाते हैं और बच्चों के पुरस्कार प्राप्त करने पर ढेर सारा आशीर्वाद और स्नेह देते हैं।
