पुरस्कार
पुरस्कार
मोनू गधा जंगल का एकमात्र सीधा – साधा जानवर था। इसके सीधेपन का कभी – कभी उसे नुक्सान भी उठाना पड़ता था। पर उसकी एक अच्छी आदत थी कि वह किसी को वापस पलटकर जवाब नहीं देता था। न ही अपने मन में किसी के प्रति कोई बैर भाव। उसके इस सीधेपन की पूरे जंगल में तारीफ़ भी होती थी।
एक बार की बात है जंगल के एक हिस्से में आग लग जाती है। सभी जानवर यहाँ – वहां भागने लगते हैं। सब अपने आपको बचाने में लग जाते हैं। इस जंगल की आग में शेर के परिवार के लगभग सभी सदस्य जलकर मर जाते हैं बचता है तो केवल शेर का एक बच्चा। वह भी बुरी तरह से आग में झुलस जाता है। जंगल के दूसरे जीव सोचने लगते हैं कि चलो अच्छा हुआ अब हम जीवों को कोई अपना शिकार नहीं बना सकेगा। सभी यही कह रहे थे कि शेर का बच्चा भी मर जाए तो समस्या ही समाप्त हो जाए। किन्तु मोनू गधा कुछ और ही सोच रहा था। उसके मन की पीड़ा कोई समझ नहीं रहा था। जब सभी जानवर चले गए तब मोनू गधे ने शेर के बच्चे को पीठ पर लाद लिया और दूर जंगल के झुनझुन भालू वैद्य के पास ले गया। झुनझुन भालू वैद्य ने जब शेर के बच्चे की हालत देखी तो मोनू गधे से कहा कि तुम ठीक समय पर इसे यहाँ लेकर आ गए वरना कुछ ही समय में यह भी मृत्यु को प्राप्त हो जाता।
शेर के बच्चे का करीब पंद्रह दिन ईलाज चला और वह ठीक हो गया। इसके बाद मोनू गधा उस शेर के बच्चे को अपने साथ वापस ले आया। जंगल के सभी जीव मोनू गधे की इस हरकत पर नाराज हो गए। किन्तु मोनू गधे ने सभी को एक उपाय सुझाया कि क्यों न हम इस शेर के बच्चे को चिड़ियाघर को सौंप दें। वहां इसकी देखभाल भी हो जायेगी और हम सब जानवर भी सुरक्षित रहेंगे। मोनू गधे की बात से सब राजी हो गए और ख़ुश भी हुए कि मोनू गधे ने उनकी समस्या का हल भी सुझा दिया। सभी ख़ुशी – ख़ुशी शेर के बच्चे को चिड़ियाघर छोड़ आये।
शेर के बच्चे को बचाने और जंगल के जीवों की रक्षा के लिए मोनू गधे को “मानवता का पुजारी ” पुरस्कार दिया गया। जंगल के सभी जीव अपना – अपना जीवन ख़ुशी – ख़ुशी बिताने लगे।
