Ratna Sahu

Others

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मेरी इकलौती बहू काम नहीं करेगी

मेरी इकलौती बहू काम नहीं करेगी

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सुलोचना जी गैस पर एक तरफ चाय बना रही थी और दूसरी तरफ दाल बनाने के लिए पानी गर्म कर रही थी। वह कुकर में चम्मच से माप कर थोड़ा-थोड़ा दाल, नमक और हल्दी डाल रही थी। तभी उनके पतिदेव रमाकांत बाबू आए और बोले,

"सुलोचना, अरे भई! आज चाय मिलेगी भी या नहीं? अब तक तो मैं दूसरी बार चाय पीता रहता था आज एक बार भी नहीं मिली।"


"हां-हां चाय बन गई है, अभी देती हूं। आप जरा कप दीजिए ना।"


रमाकांत बाबू कप पकड़ाते हुए बोले, "दाल सब्जी में नमक थोड़ा कम ही डालना, पिछले तीन चार दिनों से नमक बहुत ज्यादा रहता है, मेरा बीपी बढ़ गया है।"


"नमक कम ही डालती हूं पर पता नहीं कैसे ज्यादा हो जाता है? लगता है खाना बनाने की आदत छूट गई है शायद इसलिए।" सुलोचना जी बोली।


"अरे! तुमसे नहीं होता है, तुम्हारी आदत छूट गई है तो तुम क्यों बना रही हो? बहु एकता कहां है? उसे कहो वह बना लेगी।"



"वह अपने कमरे में लैपटॉप पर कुछ कर रही है।मैंने कई बार कहा पर वह कुछ बोली ही नहीं। सुधीर ने भी कहा कि मम्मी से खाना बनाने नहीं होता है, तुम बनाया करो पर उसने साफ-साफ इंकार कर दिया तो क्या करूं अब सबके सामने खटपट करूं। जैसे होता है बना रही हूं।" बोलते बोलते सुलोचना जी की आंखें छलक गई।



रमाकांत बाबू सुलोचना जी के आंखों से आंसू पोंछते हुए कहा, "क्यों रो रही हो? गलती तो तुम्हारी ही है। मैंने कई बार समझाया पर पता नहीं तुम्हें क्या हो गया था मेरी बात समझने की कभी कोशिश ही नहीं की। अब भूगतो।"


"हां,मुझसे गलती हो गई पर अपनी गलती का एहसास है मुझे।"


"अब एहसास होकर क्या होगा? किस मुंह से तुम सबको कहोगी कि मुझे अपनी गलती का एहसास है।" इतना बोल वो चाय लेकर बरामदे में बैठ गये और अखबार पढ़ने लगे।



सुलोचना जी का बड़ा संयुक्त परिवार था उनके पति की सरकारी नौकरी थी, बांकी तीन भाई बिजनेस करते थे। सभी एक साथ वर्षों से थे। बिरादरी में उनके परिवार का बहुत नाम था। जब भी संयुक्त परिवार की बात चलती तो इस संयुक्त परिवार की चर्चा अवश्य होती। इनके परिवार को उदाहरण के रूप में प्रस्तुत करते लोग। सुलोचना जी को एक ही बेटा हैं,बाकी सब को दो-दो बच्चे हैं। अभी पिछले साल उनके बेटे की शादी एकता से हुई है। एकल परिवार में पली-बढ़ी एकता इतना बड़ा संयुक्त परिवार देख उसे बहुत आश्चर्य हुआ। पहले तो डर गई कि इतने बड़े परिवार में खुद को कैसे एडजस्ट करेगी लेकिन धीरे-धीरे वह अपने आपको उसी अनुरूप ढालने लगी और सब का सहयोग भी मिलता गया। वह सब के साथ मिलकर काम बहुत ही तन्मयता से करती और सीखती भी। वह जो भी काम अपनी सास के लिए करती, जैसे बाल में तेल लगाना हो या फिर कभी पैर की मालिश करना तो वह अपनी सास के साथ बाकी तीनों सास का भी करती। बहू के ऐसा व्यवहार देखकर सभी बहुत खुश थे। एकता धीरे-धीरे अपनी चारों सास की लाडली हो गई। कुछ दिनों तक ठीक रहा पर धीरे-धीरे एकता की सास सुलोचना जी को बहू की ये आदत खराब लगने लगी। वह सोचने लगी कि यह मेरी बहू है तो सिर्फ मेरा ही काम करें, मेरी ही सेवा करें बाकी सब का नहीं। उन्होंने अपनी बहू को कई बार समझाने की कोशिश भी की पर एकता नहीं समझी।



एक बार एकता छोटी सास के बालों में तेल लगा रही थी तभी सुलोचना जी ने आवाज दी। एकता जैसे ही सास के कमरे में गई सुलोचना जी ने कहा, "अरे! तुम मेरी इकलौती बहू हो तुम काम क्यों करोगी? अगर तुम्हें करना ही है तो सिर्फ मेरा काम करो बांकी सब का नहीं।"


"लेकिन ऐसा अच्छा तो नहीं लगेगा कि आपका काम करूं बांकी उन सब का नहीं। आखिर वह सभी मुझसे बड़ी हैं। वैसे भी मुझे उनके साथ काम करना या कुछ नई चीजें सीखना बहुत अच्छा लगता है। बहुत प्यार से कोई भी काम सिखाती है वह सभी मुझे।"


"अरे! तुम नहीं समझती हो ये सब कुछ उन तीनों की चाल और चालाकियां है तुमसे काम करवाने की।"


तभी तो एकता सास की बातों पर ध्यान नहीं दी लेकिन रोज वही बातें दोहराने से उसके मन पर भी धीरे-धीरे असर होने लगा। अब वह काम करने से कतराने लगी। सुलोचना जी भी इसमें बहू की मदद करने लगी। जैसे ही कोई तीज- त्योहार या कोई मेहमान आते, जब भी ज्यादा काम होता तो वो बहू को बेटे के साथ बाहर घूमने भेज देती या मायके भेज देती।‌ धीरे-धीरे यह बात तीनों को भी पता चल गई और आपस में वे सभी कानाफूसी करने लगी। 1 दिन मंझली सास ने एकता से कुछ काम करने को कहा पर एकता काम करने से मना करने लगी। मंझली सास थोड़ा नाराज होते हुए बोली,

"अरे! तुम्हें क्या हो गया है? आजकल कोई भी काम करने से कतराने लगी है।"


वह कुछ बोलती उससे पहले ही सुलोचना जी बोली, "अरे! वह मेरी इकलौती बहू है क्यों काम करेगी? तुम लोग के ज्यादा बच्चे हैं तो काम भी तुम लोगों का ज्यादा है, तुमलोग करो।"



जेठानी के मुंह से यह बात सुनकर तीनों अवाक रह गए। मंझली ने फिर कहा, "दीदी, आप बड़ी हो,आप कोई काम नहीं करोगी लेकिन बहु का काम नहीं करना तो गलत है।"


सुलोचना जी बिना कुछ बोले ही बहू के साथ अपने कमरे में चली गई।


अब घर में खटपट होने लगी, काम बंटने लगा। अब सभी एक दूसरे के हिस्से का काम करने से कतराने लगी। सभी भाई मिलकर अपनी पत्नियों को समझाने की कोशिश की पर कोई फायदा नहीं हुआ। तब चारों भाई अलग रहने का निर्णय लिया। अभी 1 सप्ताह पहले ही वे सभी अलग हुए हैं। अलग होने पर सुलोचना जी सोचने लगी कि अब बहू काम करेगी लेकिन एकता अब भी काम करने से कतराती है, इंकार करती है। इतने सालों से छूटा सारा काम अब सुलोचना जी को अकेले करना पड़ता है। एक-दो बार छोटी देवरानी आई मदद करने के लिए पर सुलोचना जी ने मना कर दिया। अब उन्हें संकोच हो रहा था बहू के रहते हुए देवरानी से काम करवाने में।



तभी रमाकांत बाबू फिर से कप लेकर आए और बोले, "सुलोचना एक कप चाय और दो।"


वह पति को चाय देकर सब्जी काटने लगी और मन-ही-मन सोचने लगी कि मेरी गलती की वजह से इतने सालों से चल रहा संयुक्त परिवार टूट गया, सब बिखर गए। जो देवरानी हमेशा दीदी- दीदी कहते थकती नहीं थी, एक काम नहीं करने देती थी, आज ढंग से बात भी नहीं कर रही। बहू की भी आदत मैने ही खराब कर दी।उन्हें अपनी गलती का आभास हुआ और अपराध बोध होने लगा। यह सब सोचते-सोचते उनका ध्यान हटा और चाकू फिसल गई जिससे थोड़ी सी उंगली कट गई, खून बहने लगा। यह देख छोटी देवरानी भाग कर आई और बोली, "दीदी क्या हो गया आपको कैसे उंगली कट गई?"

आवाज सुनकर वह दोनों देवरानी भी भाग कर आई, कमरे से एकता भी निकली। सबने उनकी उंगली पर पट्टी लगाई और कहा, "दीदी आप बैठिए हमलोग खाना बना देते हैं।"


जब तीनों मिलकर खाना बनाने लगे तब एकता ने कहा, "मां, क्या मैं भी जाऊं मदद करने या आपके पास बैठूं?"


सुलोचना जी की आंखों में आंसू आ गए। उन्होंने हां में स्वीकृति दी। आज उन्हें पहली बार तीनों देवरानी के साथ बहू का काम करना भी अच्छा लग रहा था।


खाना बनाने के बाद जब सुलोचना जी के लिए थाली परोस कर लाई तो उनकी आंखों से आंसू बहने लगे।

सब ने कहा, "दीदी, आप क्यों रो रही हैं?"


उन्होंने अपनी तीनों देवरानियों से कहा, "मुझसे बहुत बड़ी भूल हो गई। अलग होने के बाद पता चला मैंने कितनी बड़ी गलती कर दी। मेरी वजह से परिवार टूट गया। क्या हम सभी फिर से एक साथ नहीं रह सकते? देखो मना मत करना। मेरी इस भूल के लिए तुम लोग क्षमा.....।"


बात पूरी करने से पहले सब ने उनका हाथ पकड़ लिया और कहा, "आप बड़ी हैं, आपका हाथ सिर्फ आशीर्वाद देने के लिए है, माफी मांगने के लिए नहीं। आपको अपनी गलती का एहसास हो गया वही बहुत है। माफी मांगने की कोई जरूरत नहीं। हम फिर से एक साथ रहेंगे।"


सुलोचना जी मुस्कुराते हुए अपनी तीनों देवरानियों और बहु को गले लगा लिया फिर उन्होंने एकता से कहा, "बहु, आज तक मैंने तुम्हें जो भी कहा वह सब भूल जाओ। अब तुम्हारी एक नहीं चार सास है। पहले की तरह सबके साथ मिल जुल कर रहो। कभी मेरी सेवा में कमी आए तो आए पर इन तीनों की सेवा में कोई कमी नहीं आनी चाहिए।"


एकता ने भी हंसते हुए हां में स्वीकृति दे दी।



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