मेरी बहना
मेरी बहना
क्सेनिया - मेरी बहना
लेखक: विक्टर द्रागून्स्की
अनुवाद: आ. चारुमति रामदास
एक बार, एक आम तरह का ही दिन था. मैं स्कूल से आया, थोड़ा सा खाया और खिड़की की सिल पर चढ़ गया. बहुत दिनों से मेरा दिल खिड़की के पास बैठने, आने जाने वालों को देखने और ख़ुद कुछ भी न करने को चाह रहा था. इस समय इस बात के लिए एकदम सही मौक़ा था. और, मैं खिड़की की सिल पर बैठ गया, और ख़ुद निठल्लापन करने लगा. इसी समय पापा उड़ते हुए कमरे में आए.
उन्होंने कहा:
“ ‘बोर’ हो रहा है?”
मैंने जवाब दिया:
“ओह, नहीं...बस यूँ ही...और, मम्मा आख़िर कब आएगी? पूरे दस दिनों से घर पे नहीं है!”
पापा ने कहा:
“खिड़की पकड़! कस के पकड़, वर्ना सिर के बल उड़ने लगेगा.”
मैंने सावधानी के लिए खिड़की की फ्रेम कस के पकड़ ली और कहा:
“क्या बात है?”
वो एक कदम पीछे हटे, जेब से कोई कागज़ निकाला, उसे दूर से ही दिखाया और बोले:
“एक घण्टे बाद मम्मा आ रही है! ये रहा टेलिग्राम! तुझे बताने के लिए मैं सीधा काम से भागा भागा आया! खाना नहीं खाएँगे, सब एक साथ ही खाएँगे, मैं उसे रिसीव करने जा रहा हूँ, और तू कमरा ठीक ठाक करके हमारा इंतज़ार कर! डन?”
मैं फ़ौरन खिड़की से कूदा:
“अफ़कोर्स, डन! हुर्रे! भागो, पापा, बुलेट की स्पीड़ से भागो, और मैं ये कर लेता हूँ! बस एक मिनट – और सब तैयार! चकाचक कर देता हूँ! भागो, टाइम मत वेस्ट करो, मम्मा को जल्दी ले आओ!”
पापा दरवाज़े की तरफ़ लपके. और, मैं काम पे लग गया. मेरा इमर्जेन्सी-जॉब शुरू हो गया, जैसे समन्दर में जा रहे जहाज़ पर होता है. इमर्जेन्सी-जॉब – ये डेक को चकाचक करने का काम होता है, और यहाँ तो मौसम शांत है, लहरों पर ख़ामोशी है – इसे निर्वात समय कहते हैं, और हम, नाविक, अपना काम करते रहते हैं.
“वन,टू! शिर्क-शार्क! कुर्सियाँ अपनी अपनी जगह पे! चुपचाप खड़े रहो! झाडू-वाडू! झाडू लगाएगा – फ़ौरन! कॉम्रेड फ़र्श, ये कैसे दिखाई दे रहे हो? चमको! अभ्भी! ऐसे! खाना! मेरी कमाण्ड सुनो! गैस पर, “प्लेटून” दाईं ओर से एक-एक, कड़ाही के पीछे भगौना – खड़े रहो! वन-टू! गाना गाएगा:
पापा सिर्फ तीली से करेंगे
चिर्क!
और आग फ़ौरन जलेगी
फ़िर्क!
गरम होते रहो! ऐसे. देखा, मैंने कैसा बढ़िया काम किया! असिस्टेंट! ऐसे बच्चे पर गर्व होना चाहिए! जब मैं बड़ा हो जाऊँगा, तब पता है मैं क्या बनूंगा? मैं बनूंगा – ओहो! मैं ओहो-हो भी बनूंगा! ओहोहूहाहो! वो बनूंगा मैं!
मैं खूब देर तक खेलता रहा और जम कर अपनी तारीफ़ करता रहा, जिससे कि मम्मा और पापा का इंतज़ार ‘बोरिंग’ न लगे. आख़िर में दरवाज़ा धड़ाम से खुला, और उसमें फिर से पापा उड़ते हुए अन्दर आए! वो आ गए थे और बेहद उत्तेजित थे, सिर की हैट पीछे खिसक गई थी! वो अकेले ही पूरे ब्रास-बैण्ड ऑर्केस्ट्रा जैसे हो रहे थे, और साथ ही ऑर्केस्ट्रा के डाइरेक्टर भी! पापा हाथ हिला रहे थे.
“ज़ूम-ज़ूम!” पापा चिल्लाए, और मैं समझ गया कि मम्मा के आने की ख़ुशी में ये बड़े बड़े बिगुल बज रहे हैं. “पीख़-पीख़! तांबे की तश्तरियाँ झनझना रही थीं.
इसके बाद कोई बिल्लियों जैसा म्यूज़िक शुरू हो गया. सौ आदमियों का कोरस चिल्लाने लगा. इन सौ आदमियों के लिए पापा अकेले गा रहे थे, मगर चूँकि पापा के पीछे दरवाज़ा खुला था, मैं बाहर कॉरीडोर में भागा, जिससे कि मम्मा से मिल सकूँ.
वह हाथों में एक बण्डल लिए हैंगर के पास खड़ी थी. जब उसने मुझे देखा, तो वह प्यार से मुस्कुराई और हौले से बोली:
“हैलो, मेरे बच्चे! मेरे बिना तुम कैसे रहे?”
मैंने कहा:
“मैंने तुम्हें बहुत ‘मिस’ किया.”
मम्मा ने कहा:
“और, मैं तुम्हारे लिए एक सरप्राइज़ लाई हूँ!”
मैंने कहा:
“एरोप्लेन?”
मम्मा ने कहा:
”देखो तो सही!”
हम बहुत धीमे से बात कर रहे थे. मम्मा ने बण्डल मेरी तरफ़ बढ़ाया. मैंने उसे ले लिया.
“ये क्या है, मम्मा?” मैंने पूछा.
“ये तेरी बहन क्सेनिया है,” उसी तरह धीमे से मम्मा ने कहा.
मैं चुप रहा.
तब मम्मा ने लेस वाला रूमाल हटाया, और मैंने अपनी बहन का चेहरा देखा.
ये छोsssटा सा चेहरा था, और उसके ऊपर कुछ भी नहीं दिखाई दे रहा था. मैंने उसे पूरी ताक़त से हाथों में पकड़ा.
“ज़ूम-बूम-त्रूम,” अचानक कमरे से मेरी बगल में पापा प्रकट हुए. उनका ऑर्केस्ट्रा अभी भी गरज रहा था.
“अटेन्शन,” पापा ने अनाऊन्सर की आवाज़ में कहा, “छोटे बच्चे डेनिस्का को छोटी-सी बहना क्सेनिया इनाम में दी जाती है. पंजों से सिर तक की लम्बाई पचास सेंटीमीटर्स, सिर से एड़ियों तक – पचपन! वज़न तीन किलो दो सौ पचास ग्राम्स, पैकेजिंग को छोड़कर.
वो मेरे सामने पालथी मार के बैठ गए और मेरे हाथों के नीचे अपने हाथ लगा दिए, शायद, डर रहे थे, कि मैं क्सेनिया को गिरा दूँगा. उन्होंने मम्मा से अपनी नॉर्मल आवाज़ में पूछा:
“और, ये किसके जैसी है?”
“तुम्हारे जैसी,” मम्मा ने कहा.
“ओह, नो!” पापा चहके. “अपने स्कार्फ़ में ये हमारी रिपब्लिक की ख़ूबसूरत फ़ोक-आर्टिस्ट कर्चागिना-अलेक्सान्द्रोव्स्काया जैसी लग रही है, जिसे अपनी जवानी में मैं बहुत पसन्द करता था. अक्सर मैंने देखा है, कि अपनी ज़िन्दगी के आरंभ के कुछ दिनों में सभी छोटे बच्चे प्रसिद्ध आर्टिस्ट कर्चागिना-अलेक्सान्द्रोव्स्काया जैसे लगते हैं. ख़ासकर नाक तो बेहद मिलती-जुलती है.
नाक तो एकदम निगाहों में भर जाती है.”
मैं अपनी बहन क्सेनिया को हाथों में लिए खड़ा ही रहा, जैसे बेवकूफ़ लिखे हुए झोले को लटकाए चलता है, और मुस्कुरा रहा था.
मम्मा उत्तेजना से बोली:
“होशियारी से, प्लीज़, डेनिस, गिरा न देना.”
मैंने कहा:
“क्या कहती हो, मम्मा? परेशान न हो! मैं बच्चों की पूरी साइकिल एक, बाएँ, हाथ में पकड़ लेता हूँ, क्या मैं इत्ती छोटी सी चीज़ को गिरा दूँगा?”
पापा ने कहा:
“शाम को इसे नहलाएँगे! तैयार रहना!”
उन्होंने मेरे हाथों से बण्डल ले लिया, जिसमें क्सेनिया लिपटी थी, और चल पड़े. मैं भी उनके पीछे-पीछे चलने लगा, और मेरे पीछे – मम्मा. हमने क्सेनिया को अलमारी की बाहर निकली हुई दराज़ में सुला दिया, और वह आराम से वहाँ पड़ी रही.
पापा ने कहा:
“ये सिर्फ अभी के लिए, एक रात के लिए है. कल मैं इसके लिए छोटा सा पलंग ख़रीदूँगा, और वह पलंग पे सोया करेगी. और तू, डेनिस, चाभियों पर नज़र रख, जिससे कोई तेरी छोटी सी बहना को अलमारी में बन्द न कर दे. वर्ना बाद में ढूँढ़ते रहेंगे कि वो कहाँ चली गई...”
और, हम खाना खाने बैठे. मैं हर एक मिनट बाद उछल कर क्सेनिया को देख लेता. वह पूरे समय सोती रही. मुझे अचरज हुआ, और मैंने ऊँगली से उसका गाल छू लिया. गाल नरम-नरम था, बिल्कुल मक्खन जैसा. अब, जब मैंने ध्यान से उसे देखा, तो पाया कि उसकी लम्बी-लम्बी काली पलकें हैं....
शाम को हम उसे नहलाने लगे. हमने पापा की मेज़ पर छोटा सा पाइप वाला टब रखा और वहाँ कई सारे गरम और ठण्डे पानी से भरे बर्तन ले आए. क्सेनिया अपने ड्रावर में लेटी रही और नहाने का इंतज़ार करती रही. वो, ज़ाहिर है, परेशान हो रही थी, क्योंकि ड्रावर चरमरा रहा था, दरवाज़े की तरह, और पापा, उल्टे, पूरे समय उसका मूड ठीक रखने की कोशिश कर रहे थे, जिससे कि वह ज़्यादा डरे नहीं. पापा इधर उधर पानी और तौलिए लिए घूम रहे थे, उन्होंने अपनी जैकेट उतारी, आस्तीनें चढ़ा लीं और ख़ुशामद करते हुए ज़ोर से चिल्लाए:
“हमारे घर में सबसे बढ़िया कौन तैरता है? कौन सबसे बढ़िया गोते लगाता है? कौन सबसे बढ़िया बबल्स बनाता है?”
और, क्सेनिया का चेहरा ऐसा था, कि वही सबसे बढ़िया गोते लगाती है – पापा की ख़ुशामद काम कर गई. मगर जब उसे नहलाने लगे, तो उसके चेहरे पर इतना डर छा गया, कि देखो, भले आदमियों: सगे माँ-बाप अपनी बेटी को डुबा रहे हैं, और उसने एडी से टटोलते हुए टब की तली पा ली, उस पर एड़ी टिका ली और तभी कुछ शांत हुई, चेहरा कुछ सामान्य हुआ, अब वो इतना दुखी नहीं लग रहा था, और उसने अपने ऊपर पानी डालने दिया, मगर फिर भी उसके मन में शक ही था, अचानक पापा ने उसे थोड़ा सा पानी में डुबाया, उसका दम घुटने लगा...मैं फ़ौरन मम्मा की कुहनी के नीचे से निकला और क्सेनिया को अपनी ऊँगली थमा दी, और, ज़ाहिर है, मैं समझ गया था और मैंने वही किया जो करना चाहिए था, उसने मेरी ऊँगली पकड ली और पूरी तरह शांत हो गई. बच्ची ने इतनी बदहवासी से, इतनी कस कर मेरी ऊँगली पकड़ ली, जैसे डूबता हुआ इन्सान तिनके को पकड़ता है. और, मुझे उस पर दया आई, कि वह मेरा ही सहारा ले रही है, अपनी चिड़ियों जैसी ऊँगलियों की पूरी ताक़त से मुझे पकड़े हुए है, और इन ऊँगलियों से साफ़ महसूस हो रहा है कि अपनी बेशकीमती ज़िन्दगी के लिए वह अकेले मुझ पर ही भरोसा कर रही है और यह, कि ईमानदारी से कहूँ तो, ये सब नहाना-वहाना उसके लिए दुखदायी है, डरावना है, और ख़तरनाक है, और धमकी भरा है, और उसे ख़ुद को बचाना चाहिए: अपने ताक़तवर और बहादुर, बड़े भाई की ऊँगली थाम लेना चाहिए. और जब मैं ये सारी बात समझ गया, जब मैं समझ गया कि उस बेचारी को कितनी मुश्किल हो रही है, कितना डर लग रहा है, तो मैं फ़ौरन उससे प्यार करने लगा.