मैनिक्विन
मैनिक्विन
कपडे की दुकान के सामने सुंदर और नए कपड़ों से सजी धजी मैनिक्विन रास्ते पर आते जाते लोगों का ध्यान बरबस अपनी ऒर खींच रही थी।दुकान में यही उसका रोज का काम होता था।
आज एक लड़की दुकान के सामने से रास्ते पर जाते जाते उस सुंदर कपड़ों से सजी हुई मैनिक्विन को देखे जा रही थी।मैनिक्विन के आकर्षक कपड़ों को देखकर वह ठिठकी सी रह गयी।
लड़की उसके लिबास से गरीब लग रही थी और उसके आँखों में मैनिक्विन के सुंदर कपड़ों का आकर्षण साफ़ झलक रहा था।
लड़की की बेबसी से और मजबूरी से जैसे मैनिक्विन भी परेशान हो रही थी।वह बस खड़ी रही एक बेजान से पुतले कि तरह।
उसे क्या लेना देना था उस लड़की की पसंद नापसंदगी का और उसके अभाव भरी जिंदगी का? वह कर भी क्या सकती थी?उसका काम तो है बस दुकान में रखे कपड़ों की नुमाइश करना।
जिंदगी में हम भी क्या करते है ?
अपने अपने हिस्से की धुप ओढ़ते है अपनी हिस्से की छावं में बैठ कर।
हम भी तो कभी कभी मैनिक्विन बन जाते है, जिंदा,लाचार और कभी बेहिस...