Aaradhya Ark

Children Stories Inspirational

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Aaradhya Ark

Children Stories Inspirational

मैं तो अपनी फेवरेट हूँ

मैं तो अपनी फेवरेट हूँ

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"मैं अपनी फेवरेट हूँ "

कुक्कू हमेशा सबसे गर्व से कहा करती थी।

चुलबुली सी कुक्कू बचपन से ही करीना कपूर को बहुत पसंद करती थी। वैसे उसके मम्मी पापा ने उसका नाम भी करीना ही रखा था। उसका पूरा नाम था करीना चौहान और सब उसे प्यार से कुक्कू कहकर बुलाते थे।


बचपन तक तो ठीक था पर किशोरवस्था तक आते आते करीना कपूर की फ़िल्में देखना, उसके स्टाइल को फॉलो करना और उसके चुनिंदा डायलॉग तो जैसे उसकी बातचीत का एक हिस्सा बन चुके थे।

अपने दोस्तों और सहेलियों से उसने साफ साफ कह रखा था कि उसे उसके नाम "करीना चौहान" से ना पुकारकर 'पु' या सिर्फ "करीना" बुलाएं। पर उसके कुछ दोस्त इतने ढीठ थे कि अक्सर उसे उसके घर के नाम कुक्कू से बुलाते या कभी कभी उसे चिढ़ाने के लिए उसका पूरा नाम "करीना चौहान" कहकर पुकारते और कुक्कू उनसे बुरी तरह चिढ़ जाती।


सुबह जब उठती तो बिल्कुल पु के अंदाज़ में मम्मी के पास जाकर उनके गले लिपटती और बड़ी इतराकर चलती। कॉलेज में भी उसके करीबी दोस्त उसे करीना नहीं बल्कि पु कहकर बुलाते।

उसके मम्मी पापा उसे बड़ा लाड़ लगाते। पर जैसे जैसे करीना बड़ी हो रही थी उसे अब पसंद नहीं आ रहा था कि कोई उसे करीना या पु छोड़कर किसी और नाम से पुकारे।

जब कभी दोस्तों में जान पहचान वालों में बात होती अपने फेवरिट हीरो हीरोइन की तो कुक्कू उर्फ़ करीना बड़ी शान से कहती,

"मैं खुद अपनी फेवरिट हूँ "


फाइनल इयर तक आते आते कुक्कू ने अपने बाल भी करीना कपूर के स्टाइल में कटवा लिए यहाँ तक कि उसके लुक को पूरा कॉपी करने के लिए वह जब मेकअप करती तो हल्का सा ब्लशर अपने नाक पर भी लगा लेती ताकि ओरिजनल और उसमें ज़्यादा फर्क ना दिखे। कभी कभी तो अपनी आँखों पर करीना कपूर की आँखों की पुतलियों के रंग से मैच करता हुआ लेंस भी लगा लेती थी।


वैसे कुक्कू पढ़ाई में भी बहुत अच्छी थी पर उसके बाद का पूरा समय उसका सजने संवरने में ही गुजरता। करीना कपूर की कोई नई फ़िल्म आती तो वह उसमें उसके द्वारा पहने हुए ड्रेस की कॉपी बाजार में ढूंढती और कभी कभी तो उस चक़्कर में अपने मम्मी पापा का बहुत खर्चा भी करा देती थी। अपनी इकलौती संतान की माँग माता पिता कभी कभी पूरी करते कभी नहीं। पर कुक्कू ज़्यादा ज़िद करके उनको परेशान नहीं करती।


कुल मिलाकर हँसमुख स्वभाव की कुक्कू किसी बात को लेकर किसीको ज़्यादा परेशान नहीं करती थी। उसकी अपनी दुनिया, जिसमें वह थी और थी उसकी फेवरेट पु ही उसे खुश रखने को काफ़ी थे।

कुछ फ़िल्में जैसे कभी ख़ुशी कभी गम, मैं प्रेम की दीवानी हूँ, जब वी मेट वगैरह इतनी बार देख चुकी थी कि उसकी गिनती खुद कुक्कू को भी याद नहीं थी।


कॉलेज में लगभग सब उसे पसंद करते पर उसी के क्लास में कुछ सो कॉल्ड पढ़ाकू स्टूडेंट का एक ग्रुप था जो पु को बिल्कुल भाव नहीं देता था। कुक्कू को इग्नोर करने में ऋषभ सबसे आगे रहता था। कुक्कू को कभी कभी बुरा तो लगता कि इन्हें मैं पसंद नहीं पर फिर सर झटक देती।


एक बार कॉलेज की तरफ से चेन्नई ट्रिप का प्रोग्राम बना। चूंकि कुक्कू वनस्पति विज्ञान की छात्रा थी तो उसके आगे पीछे घूमने वाले कुछ दोस्त जो दूसरे विषय के थे वह साथ नहीं जा रहे थे। इसलिए कुक्कू थोड़ी उदास थी,पर जाना ज़रूरी था क्यूँकि इसके मार्क्स प्रैक्टिकल में जुड़ने वाले थे।


एक शालिनी ही थी जो उसके ग्रुप की थी। शुरू में तो शालिनी पूरे समय उसके साथ रही पर फिर जब सर या मैम कुछ समझा रहे होते तो ग्रुप में सबसे आगे की पंक्तियों वाले स्टूडेंट के साथ जाकर खड़ी हो जाती थी। कुक्कू को बहुत बुरा लगता और अकेलापन भी लगता।


एक बार ऋषभ के ग्रुप के साथ जब उसे भी प्रोजेक्ट बनाने दिया गया तो ऋषभ को नजदीक से जानने का मौका मिला। कुक्कू अपनी आदत के मुताबिक जब तब करीना की नकल करते हुए उसके डायलॉग बोलती तो अब ऋषभ के ग्रुपवालों को भी बड़ा मज़ा आता।


ऋषभ उसकी बचकानी बातों और हरकतों पर हँस नहीं पाता था। उसे लगता था कुक्कू में बहुत सम्भावनाएं हैं। वह आगे जाकर बहुत अच्छा कर सकती है। साथ प्रोजेक्ट करते हुए वह जैसे किसी और ही कुक्कू से मिल रहा था, जो फनी तो थी पर पढ़ाई को बहुत सीरियसली लेती थी। जो भी काम उसे दिया जाता वह उसे बहुत ज़िम्मेदारी और लगन के साथ करती थी।


उस दिन रात के लगभग साढ़े दस बजे थे। गर्ल्स अपने रूम में टी. वी. देख रहे थीं और कुछ बॉयस होटल के टेरस पर गप्पें लड़ा रहे थे तो कुछ अपने रूम में थे। चेन्नई का ये होटल समंदर के बहुत पास था और अक्सर कॉलेज के स्टूडेंट्स जो स्टडी टूर पर आते थे उन्हें इसी ज़गह ठहराया जाता था।


अपने टीम की टीम लीडर थी कुक्कू और कल उसे पूरे ट्रिप के ज़रूरी जानकारी के साथ एक रफ प्रोजेक्ट फ़ाइल बनाकर सर को सबमिट करना था।कुक्कू को प्रोजेक्ट के साथ बोटनिकल नाम ढूंढने में थोड़ी परेशानी आ रही थी इसलिए वह बाहर आ गई।


इधर बाहर ऋषभ अपने मम्मी पापा से बात कर रहा था। जैसे ही उसकी बात खत्म हुई वह कुक्कू को देखकर मुस्कुराया बदले में कुक्कू ने बड़ी बेचारगी का भाव दिखाते हुए मासूम सा मुँह बनाया जिसे देखकर ऋषभ को हँसी आ गई।

ऋषभ कुक्कू के पास आते हुए बोला,

"क्या हुआ बोटनिकल नाम अगर नहीं मिल रहा हो तो मैं कुछ मदद करूँ? चलो तुम दिखाओ कितना ढूंढ़ पाई हो अब तक, मैं भी ढूंढता हूँ!"


कुक्कू बहुत खुश हो गई। अगले पंद्रह मिनट में वह सारे नाम खोज चुकी थी। अब ऋषभ ने कहा,

"वाह, तुमने तो बहुत जल्दी खोज लिया? ग्रेट.... तुम तो बहुत इंटेलिजेंट हो!"

"हाँ! वो तो है... मैं अपनी फेवरेट हूँ!"

कुक्कू ने इतराकर कहा।


"नहीं, तुम अपनी फेवरेट नहीं हो "

ऋषभ ने आवाज़ को थोड़ा ज़ोर देते हुए कहा तो कुक्कू ने चौंककर उसकी तरफ देखते हुए प्रश्नवाचक मुद्रा में हाथ हिलाया तो ऋषभ सामने के बेंच पर इत्मीनान से बैठते हुए बोला,

"अगर तुम अपनी फेवरेट होती तो हमेशा करीना कपूर की नकल क्यों करती? "

ऋषभ की बात में दम था......कुक्कू एकदम सोच में पड़ गई। सही तो कह रहा था ऋषभ।

ऋषभ ने जब देखा कि कुक्कू उसकी बात को समझने की कोशिश कर रही है तो उसने आगे कहा....


"हर इंसान की अपनी अलग खासियत होती है और वही उसकी पहचान भी बन जाती है। हम किसी इंसान से प्रेरणा ले सकते हैं और उनके अनुभव से अपना जीवन बेहतर बना सकते हैं... पर अगर अपने आदर्श इंसान की पूरी नकल करने लगे तो हमारा व्यक्तित्व और हमारी सोच अलग से उभरकर सामने नहीं आ पाएंगी!"


ये क्या कह रहा था ऋषभ .....?

कितने प्यार से कुक्कू को समझा रहा था और कुक्कू को उसकी कही हुई एक-एक बात समझ में भी आ रही थी। ऋषभ ना तो उसका मज़ाक़ उड़ा रहा था ना उसकी कमियाँ गिना रहा था बल्कि सारे प्लांट्स के बोटनिकल नाम ढूंढने और याद करने में उसकी मदद कर रहा था। और कुक्कू को आजतक लगता था कि ऋषभ और उसके ग्रुप के बाकी स्टूडेंट्स उसे पसंद नहीं करते और उसके पीठ पीछे उसका मज़ाक उड़ाते रहते हैं।


"अब इतना मत सोचो कुक्कू! जाओ जाकर सो जाओ। कल सुबह सर को अपना प्रेजेंटेशन ओरल में सुना देना और फिर प्रोजेक्ट फ़ाइल भी जमा कर देना। देखना सर को तुम्हारा काम ज़रूर पसंद आएगा!"

"तुम इतने विश्वास के साथ कैसे कह सकते हो ऋषभ? तुम मुझे और मेरी प्रतिभा को ऐसे कैसे समझते हो। जबकि हमने तो कभी एक दूसरे से ज़्यादा बात तक नहीं की!"

कुक्कू ने आश्चर्य से पुछा तो ऋषभ ने जवाब दिया,

"क्योंकि मैं तुम्हारे वास्तविक स्वरुप को जानता हूँ जो बहुत मेहनती और पढ़ाई के प्रति समर्पित लड़की है। और तुमने उस सच्ची कुक्कू को पु के नकली कैरेक्टर को कॉपी करने के चक़्कर में छुपाकर फनी बना दिया है!"


ऋषभ ने बड़े ही संयत शब्दों में अपनी बात रखी ताकि कुक्कू को बात समझ भी आ जाए और उसे बुरा भी ना लगे। वह कुक्कू को पसंद करता था पर उसपर जाहिर नहीं होने देना चाहता था।


ऋषभ की बात सुनकर कुक्कू ज़रा भी नाराज़ नहीं हुई और और दोनों एक दूसरे को गुडनाइट कहकर सोने चले गए।

अगला दिन सबके लिए काफ़ी उत्साह भरा था। सुबह प्रोजेक्ट की रफ कॉपी दिखाने के बाद सबको घूमने और शॉपिंग करने की इज़ाज़त थी वो भी सर और मैम के साथ। यह उनके ट्रिप का आखिरी दिन था।


दोपहर के खाने के बाद जब सब तैयार होकर शॉपिंग को निकले तो आज कुक्कू एकदम अलग ही अंदाज़ में थी। उसने आज आँखों में ब्लू लेंस नहीं लगाया था ना ही करीना कपूर की तरह मेकअप किया था। बालों को स्वाभाविक रुप से खुला छोड़ रखा था और चाल भी सामान्य थी।


सब इस बदली हुई कुक्कू को देखकर चौंक रहे थे। और ऋषभ ने उसे देखा तो देखता ही रह गया था। उसे नहीं पता था कि उसकी बातों का कुक्कू पर इतना असर पड़ेगा।

ऋषभ ने कुक्कू को हाथों से इशारा करते हुए बताया कि बहुत अच्छी लग रही हो। उसकी आँखों में अपने लिए प्रशंसा का भाव पढ़कर ना जाने क्यों कुक्कू शरमा गई।


शॉपिंग के बाद सब एक रेस्टोरेंट में कुछ हल्का फुल्का खाने बैठे तो ऋषभ जानबूझकर कुक्कू और शालिनी के पास आकर बैठ गया। उसने कुक्कू की आँखों में देखते हुए धीरे से कहा,


"अच्छी लग रही हो और ओरिजनल भी!"

कुक्कू ज़्यादा देर तक ऋषभ की निगाहों का सामना ना कर सकी और सर झुकाकर मुस्कुराने लगी।


तभी ऋषभ ने उसे छेड़ते हुए कहा...

"करीना कपूर ऐसे नहीं मुस्कुराती है!"

तो जवाब में कुक्कू इतराकर बोली...


"ऐसे तो कुक्कू मुस्कुराती है। ये मेरा स्टाइल है। ये मैं हूँ करीना चौहान!"


"ये हुई ना बात"

कहते हुए शालिनी और ऋषभ हाई फाइव में हाथ हिलाते हुए हँसने लगे तो कुक्कू ने भी उनकी हँसी में साथ दिया।


वापसी में सब आपस में दोस्त बन चुके थे। कुक्कू को सबके साथ घुलमिलकर बात करना बहुत अच्छा लग रहा था। ये सात दिनों का एजुकेशनल ट्रिप उसके लिए बहुत यादगार और महत्वपूर्ण रहा था क्योंकि इसमें उसने खुद को पाया था। अपने आपको सच में अपने गुण अवगुणों के साथ अपनाकर प्यार करना सीखा था। और... और... पाया था ऋषभ जैसा समझदार और सच्चा दोस्त।


जब सब वापस अहमदाबाद पहुँचे और एक दूसरे को बाय करके अपने अपने घर की तरफ जाने वाले थे तब ऋषभ कुक्कू को विदा करते हुए बोला,

"कल कोलेज़ में मिलते हैँ। उम्मीद है कि कल भी तुम ऐसे ही रहोगी.....ओरिजनल और अपनी फेवरेट!"

"पक्का ऐसे ही मिलूँगी, वो क्या है ना.....

"जो कुछ भी हम एक्चुअल में चाहते हैं, एकदम रियल में, वो हमें मिलकर रहता है!"


कुक्कू ने हँसते हुए फ़िल्मी डायलॉग मारा तो ऋषभ और शालिनी को ज़ोर से हँसी आ गई।

"ये नहीं सुधरेगी ऋषभ "


शालिनी ने हँसते हुए कहा तो कुक्कू ने फिर एक डायलॉग बोला,

"मैं अब ऐसे ही रहूँगी क्योंकि अब मैं अपनी फेवरेट जो हूँ। चाहे डायलॉग किसीका हो मैं अपना वास्तविक रूप ही प्रस्तुत करूँगी और उसी को स्वीकार करके खुद को प्यार करूँगी और ऐसा प्रशंसनीय कार्य करुँगी कि लोग मुझे मेरे नाम और काम से पहचाने.....

"करीना चौहान ही है अब मेरी पहचान"


बोलते हुए कुक्कू शालिनी के साथ घर जाने के लिए गाड़ी में बैठ गई। और ऋषभ वापस टैक्सी स्टैंड की ओर बढ़ते हुए सोच रहा था कि कितना अच्छा हुआ कि अब कुक्कू पढ़ाई के साथ अपना एक अलग व्यक्तित्व और पहचान बनाए रखने में कामयाब होगी और गर्व से कह सकेगी कि...

"मैं अपनी फेवरेट हूँ!"


(समाप्त )


प्रिय दोस्तों! बताइये कैसी लगी आपको मेरी यह कहानी? कई बार हम अपने पसंदीदा फ़िल्म कलाकार, हीरो हीरोइन की नकल करते हुए अपनी बहुत हास्यापस्द स्थिति बना लेते हैं जो हमारी वास्तविक छवि धूमिल कर देता है। अपने आपको पूर्ण रूप से स्वीकार करके ही असल खुशियों का अनुभव किया जा सकता है।

धन्यवाद


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