'मायका'

'मायका'

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गाँव जाने का बहुत मन हो रहा है सुबोध कहो तो चार दिनों के लिए हो आऊँ? क्या गाँव-गाँव लगा रखा है, शादी के चालिस साल बाद भी तुम्हें वहाँ जाने की ललक है।अरे देश-विदेश सारी दुनिया तो घूम चुकी हो , फिर भी उस सडे़ से गाँव में जाना चाहती हो।रह पाओगी,इतने सुख -सुविधा के बाद?एक दिन ए-सी.नहीं चलता तो हंगामा‌ कर देती हो फिर उस बिन बिजली -पानी बाले जगह पर जाना।दो दिन तो रह नहीं पाओगी और जाना है जाना है।अरे वहाँ कोई अपने परिवार का हो तो सोचा भी जा सकता है।कहकर सुबोध बाहर निकल गया।

सुधा रुआंसी हो गई। वह जाना चाहती थी उस जगह पर जहाँ उसका बचपन बिता था। जवानी के कुछ मधुर साल भी। वहीं बिताये थे उसने। वह एक ग़रीब ब्राह्मण की बेटी थी जमीन-जायदाद कुछ था नहीं बस यजमनिका थी जिससे घर का गुज़ारा होता था। उसपर से माँ हमेशा से रोगी थी। चार बच्चों में सुधा ही सबसे बड़ी लड़की थी उसके बाद दो भाई थे और सबसे छोटी बहन थी।वैसे उसके पिता ने अक्षर ज्ञान तो सभी भाई-बहनों को कराया था पर पढ़ाई तो मामूली ही थी। एक बार बुआ की बेटी की शादी में वो गई थी बुआ ने अपनी मदद के लिए उसे बुलाया था। गाँव की लड़की थी तो मेहनती भी थी। बुआ अच्छे घर में ब्याही गई थी और भाई भतीजे - भतिजियों को गाहे-बगाहे मदद भी कर देती थीं इसलिए घर बालों ने उसे पंद्रह दिन पहले बुआ के यहाँ भेज दिया था।वह भी मन लगाकर सारे काम करती थी।बुआ को काफी राहत मिल गई थी।

 शादी में मेहमानों का आना शुरू हो गया था।सबके रहने-खाने,का इंतज़ाम सुधा के जिम्मे था वह सभी काम कुशलता से करती। शादी के लिए बुआ ने दो -चार अच्छे कपड़े बनवा दिये थे जिसे पहनकर वह बहुत ही खूबसूरत दिखती थी। उस दिन हल्दी की रस्म में उसने गुलाबी शरारा-कुरता पहना था। हल्दी के रस्म में भाभीयाँ एक दूसरे को हल्दी लगाकर खूब मस्ती कर रही थीं, तभी बुआ की बड़ी जिठानी की बहू ने उसे भी हल्दी लगाने के लिए दौड़ा दिया इस भाग-दौड़ में कोई छिपकर उसे एकटक देखे जा रहा है यह उसने तब जाना जब वह अपने हाथों से मुँह पर लगी हल्दी छुड़ा रही थी ।तभी उसपर सुधा की नजर पड़ गयी, नारी नफ़रत और प्रेम बहुत शीघ्र पहचान लेती है।सुधा ने उस नज़र को देखा और शर्माकर भाग आई।

शादी समाप्त। होते ही लोगों में जाने की होड़ सी लग गयी दो दिन में घर खाली हो गया जाने के पहले उस लड़के ने सबके साथ-साथ उसे भी एक मोतीयों की माला दी और एक गहरी निगाह डालकर चला गया।वह भी पाँच-छः दिन के बाद घर चली आयी।

जब घर के काम-काज से छुटकारा पाती तो निरंतर उस लड़के के बारे में सोचा करती। लेकिन उसे मालूम था कि वह ग़रीब हैं और यह सब सम्भव नहीं है।

अचानक गर्मी के दोपहर में एक दिन वो लड़का अपनी माँ और सुधा की बुआ के साथ घर आ गया। बुआ ने अंदर जाने के बहाने भाई को पैसे दिए की वह खाने-पीने का सब सामान लेकर आये। पीछे के दरवाज़े से सारा सामान आ गया। सब लोगों के लिए शरबत और जलपान की व्यवस्था की गई। फिर उसकी बुआ ने कहा कि,' सुधा के लिए ये लोग रिश्ता लेकर आये हैं। तुम लोग को पसंद हो तो पक्का कर लो'।तत्काल विचार-विमर्श के बाद दादा ने दोनों की कुंडली मिलायी और संयोग वह दोनों की कुंडली बहुत अच्छी तरह मिल गयी।

अब दादा और बाबूजी ने सहर्ष शादी की अनुमति दे दी। शादी के लिए लड़के बालों ने अपने ही शहर भोपाल बुलाया था। गिने-चुने रिश्तेदार ही शामिल हुए थे। सारा खर्च लड़के बालों ने किया था। घर से सुधा को बस एक साड़ी और एक पायल मिली थी। शादी के बाद हनीमून के लिए सुबोध सुधा को सीधे स्वीटजरलैंड ले गया। सुधा का साथ सुबोध को बहुत पसंद था व्यापार में लगातार तरक्की हो रही थी, वह विजनेस के सिलसिले में देश -विदेश जहाँ भी जाता सुधा को लेता जाता।समय के बहाव में काफी समय बीत गया वह दो बच्चों की माँ भी बनी। बच्चों ने पढ़ाई-लिखाई कर कम्पनी ज्वाईन किया अब उनकी शादी भी अच्छे जगह में हो गई। सुबोध ने अपने बलबूते पर उसके भाई को अच्छी नौकरी लगवा दी थी, बहन की शादी भी अच्छे घर में करवाया था। सुबोध के एहसान तले वह दब सी गई थी।अब भाई भी बंगलोर में रहता था। वह माँ -बाबूजी से कभी-कभी मिल आती थी पर समुची दुनिया घूमने के बाद भी उसका‌ मन अपने उस विकासहीन गाँव में ही लगा हुआ था। वह बस एकबार वहाँ जाना चाहती थी बस एकबार।

बहुत आरज़ू मिन्नत के बाद उसे दस दिन की मोहलत मिल ही गयी क्योंकि, सुबोध अपनी बीबी को उदास नहीं देख सकते थे। सुधा की खुशी का कोई ठिकाना नहीं था।

दूसरे दिन सुबोध ने प्लेन की टिकट पटना तक ले ली। हज़ारों हिदायत देने के बाद सुबोध उसे एयरपोर्ट तक छोड़ आये। आगे वह कार भाड़े पर लेकर चली जायेगी। जब वह पटना उतरी तो अपना सामान लेकर बाहर आने पर एक टैक्सी उसके इंतजार में खड़ी थी, सुबोध ने सारा इंतज़ाम कर रखा था। उस दिन रात पटना के होटल में काटनी पड़ी। दूसरे दिन सुबह वह तैयार होकर बाहर निकली। बाहर गाड़ी खड़ी थी,वह गाड़ी से चार-पांच घंटे का सफर कर अपने गाँव पहुंच गयी। गाड़ी जब रुकी तो उत्सुकता बस बहुत से बच्चे आ गये। उसने उन सबसे अपने बाबूजी का नाम पूछा पर, कोई नहीं बता पाया। अंत में एक बुजुर्ग से दिखने वाले व्यक्ति से उसने अपने भाई का नाम पूछा उसने हर्षित होकर कहा आप सुधा दीदी हो क्या? अरे मैं अरविन्द सुधांशु का दोस्त पहचाना नहीं। कैसे पहचानोगी शादी करके जो गई आज लौटी हो करीब चालिस साल बाद। फिर अरविंद ने उसका सामान ‌उठाया और घर की ओर दौड़ पड़ा सुधा अचंभित सी उसके पीछे-पीछे थी। फिर दरवाज़े पर रुकने को कहकर अंदर चला गया । थोड़ी देर बाद एक महिला लोटे में पानी और सिंदूर लेकर आयी।उसके अगल-बगल पानी गिराकर उसे सिंदूर लगाया और अंदर ले आयी।वहाँ एक काफी उम्रदराज महिला से मिलवाया। अचानक उसे सब याद आ गया यह तो पीरो वाली चाची हैं जो घर के सामने रहती थीं और अम्मा से इनका बहनापा था। सुधा चाची कहकर उनसे लिपटकर रोने लगी। चाची को भी सुधा याद आ गई वह उसे चिपका कर रोने लगीं।कितना सुख था उनके अंकवार ‌ में जैसे अम्मा की गोद।

रात के खाने में उसकी फरमाईश थी खिचड़ी और आलू का भरता। खा पीकर वह पीरो वाली चाची के पास ही सो गई । थोड़ी देर में अरविंद की दुल्हन तेल की कटोरी लेकर आयी और उसके पैरों में मालिश करने लगी लाख न- न करते हुए भी उसने पूरे। बदन में मालिश करके उसके तन-मन दोनों की थकान मिटा दी। इसी अपनेपन के लिए तो उसकी आत्मा तरस उठी थी। रात में खूब अच्छी नींद आयी। सुबह उठकर वह अपने टूटे-फूटे घर में आयी बीते हुए सारे पल सिनेमा की रील की तरह आँखों के सामने आने लगे। वह वहीं बैठकर फूट-फूट कर रोने लगी। दादाजी, बाबूजी,अम्मा दोनों भाई छोटी बहन सबकी याद एक साथ आ गई। उसकी रुलाई सुनकर सभी गाँव वाले जमा हो गये और यह सुधा है पंडित जी की बिटिया तो सब ममता से भर गये।

अब उसके जाने का दिन नज़दीक आने लगा न जाने कितनी जल्दी बीत गये ये सुनहरे पल। वह सभी गाँव बालों की मेहमान बनीं सबने उसका मनपसंद खाना बनाया।

जिस दिन जाना था उस दिन सभी के घर से उसके लिए कुछ न कुछ आ गया। उसके विदाई के समय पीरो वाली चाची ने एक नयी लाल रंग की साड़ी उसे पहनने को दी अरविंद की बीबी ने उसके पैर में आलता लगाया और मांग में सिंदूर लगा दिया। फिर पीरो वाली चाची ने हल्दी से रंगा चावल, दूब, गुड़ की डली और इक्यावन रुपए उसके आंचल में डालकर उसे अपने से चिपका लिया और रोने लगीं। फिर आना बिटिया कहकर अपने से अलग किया और अरविंद को कहा,'रुमाल से दीदी का पैर पोछकर रुमाल पूजा की जगह पर रख दो,और अरविंद की दुल्हन तुम दीदी के खोइंछा से पांच बार चावल निकाल कर भगवान के पास रख दो '। आते रहना बिटिया और हमसे यह दूब -धान का खोइंछा लेते ‌रहना यह हमारी इच्छा है।

और सुधा बुक्का फाड़ कर रो पड़ी। अब न जाने कब आउंगी चाची। दस दिन के छूट्टी पर आयी थी। मायका छूट जाता है माँ-बाप सब छूट जाते हैं, पर मायके की माटी नहीं छूटती।

मायके से रिश्ता नहीं छूटता। इतना कहकर वह गाड़ी में बैठ गयी।



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