Rubita Arora

Others

3  

Rubita Arora

Others

मां की परछाई

मां की परछाई

4 mins
196


नीति की छोटी बहन सुरभि का अभी थोड़े दिन पहले ही रिश्ता तय हुआ था और कुछ ही दिनों बाद शादी का शुभ महूर्त था। सुबह ही नीति सोच रही थी काश आज मां हमारे बीच होती, पापा अकेले कैसे सब करेंगे, क्यों न मैं कुछ दिन की छुट्टी लेकर मायके चली जाऊं, आज मेरे घर को मेरी जरूरत है।

तभी पिता जी का फोन भी आ गया, बेटा!! तुम तो जानती हो शादी का दिन करीब आ रहा है, तुम्हारी माँ आज होती तो बात और थी लेकिन मुझे तो समझ नहीं आ रहा इतनी जल्दी तैयारियां कैसे होगी, जितनी जल्दी हो सके तुम और दामाद जी यहां पहुँचकर सब काम देखो। 


नीति: पिता जी!!आप बिलकुल भी चिंता मत करो। ठीक पन्द्रह दिन पहले हम पहुँच जायेंगे और सब काम अच्छे से देख लेंगे, आप निश्चिंत रहिये।


अपने कहे अनुसार नीति छुट्टी लेकर पति संग मायके पहुँच गई और बड़े मन से तैयारियां करने लगी। पति भी वहीं से सुबह दफ्तर चले जाते और शाम को आकर ससुर जी की मदद करते। नीति के आए दिन बाजार के चक्कर लगते। कभी सुरभि के कपड़े, गहने तो कभी घर की अन्य चीजें इकट्ठा करते कब सुबह से शाम हो जाती, कुछ पता न चलता। थक कर चूर जब सोने के लिए आंखें बंद करती तो लगता मां अपना स्नेहमयी हाथ सिर पर फेरकर शाबाशी देते हुए कहती, थकना नहीं मेरी बच्ची!! अभी तुम्हें बड़ी बहन के साथ-साथ मां के भी बहुत से फर्ज निभाने है। दिन बीतते गए। शादी के ठीक दो दिन पहले जब सुरभि ने पूछा, दीदी!! आप शादी में क्या पहन रही हो तो नीति को ध्यान आया उसने शादी में पहनने के लिए जो साड़ी ली थी उसे तो तैयार करवाना ही भूल गई। अब उसे समझ नहीं आ रहा था इतनी जल्दी कैसे होगा?? तभी माँ की अलमारी खोली तो उसकी नजर सामने पड़ी मां की नीली साड़ी पर पड़ी।कितनी प्यारी साड़ी है!! माँ इसे पहनकर बिल्कुल परी जैसी लगती थी। मन में सोचा मैं भी ऐसे ही परेशान हो रही हूँ। शादी में माँ की यही साड़ी पहनूंगी।


दो दिन बाद शादी वाले दिन नीति माँ की नीली साड़ी पहन तैयार हुई तो यूं महसूस हुआ मानो माँ हर कदम पर उसके साथ है। सीढ़ियां उतरकर नीचे आई तो सामने पापा की उसे निहारते हुए आँखें भर आई। वहीं रंगरूप, कदकाठी, चेहरे पर सदाबहार मुसकान लिए मां की साड़ी में बिल्कुल मां जैसी लग रही थी। सुरभि ने देखा तो वह भी भावुक होकर बोली, दीदी!! आज मुझे आप में माँ की परछाईं नजर आ रही है। नीति ने प्यार से सुरभि को गले लगा लिया। मां और बेटी का रिश्ता तो नींद और ख्वाब जैसा होता है, दोनों एक दूसरे के बिना अधूरी। पूरा घर मेहमानों से भरा था फिर भी दोनों बहनों को मां की कमी महसूस हो रही थी। नीति खुद को संभालते हुए सुरभि को साथ लेकर समारोह में बड़ी जिम्मेदारी से अपने फर्ज निभाने लगी परंतु इस दौरान उसे जो भी रिश्तेदार मिलता, उसकी तारीफ किए बिना न रह पाता और साथ में सबके मुंह पर एक ही बात थी, बिल्कुल मां की परछाई लग रही हो।


नीति मन ही मन सोचने लगी आज तक एक बेटी, बहन, बहू, पत्नी का किरदार निभाते हुए न जाने कितने काम्प्लीमेंट मिले लेकिन एक बेटी के लिए सबसे अच्छा काम्प्लीमेंट भला और क्या हो सकता है। मन एक नई उमंग से खिल उठता है जब कोई आकर कह दे तुम बिल्कुल अपनी मां की परछाई हो। बचपन से ही हर बेटी अपनी मां के आँचल तले बड़ी होती हैं, सब कुछ मां से सीखते हुए न जाने कब मां की एक प्यारी सी छवि मन मंदिर में बिठा लेती है।देवी की तरह पूजती हुई हर कदम पर मां जैसा बनने की तमन्ना रखती हैं। सारी किताबें भी शायद इतनी समझ नहीं भर सकती जितनी समझ एक मां अपनी बेटी के अंदर बातों-बातों में भर देती हैं। यह मां के दिए आदर्श ही तो हैं जिनका पालन करते हुए नीति मायके और ससुराल में सबकी प्रिय हैं। मां की बातें याद कर नीति की आँखें भर आई।

तभी पापा ने आकर कहा, क्या सोच रही हो बिटिया!! फेरों का वक्त हो रहा है और तुम्हें ही दामाद जी के साथ मां-बाप की जगह बैठना हैं। नीति आंखों से आंसू पोंछते हुए पिताजी के पीछे चल दी।



Rate this content
Log in