Jyoti Naresh Bhavnani

Others

4.6  

Jyoti Naresh Bhavnani

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मां की कमी

मां की कमी

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रात के दो बज रहे थे परंतु शालिनी की आंखों में नींद नहीं थी। वह किसी गहरी सोच में डूबी हुई थी। उसका मन कल से ही बेहद उदास था। उसकी मां की आज चौथी पुण्यतिथि थी। इन चार वर्षों में ऐसा कोई दिन ऐसा नहीं गया होगा, जिसमें उसको मां की याद न आई हो। उसके पापा को गुज़रे हुए भी बीस वर्ष बीत चुके थे। उसके पापा के गुज़रने के बाद उसकी मां और बड़े भाई ने ही पूरे परिवार को संभाला था।


आज उसको चालीस वर्ष पूर्व का वो एक एक दिन तथा वो सारे पल याद आने लगे जो उसने मां के साथ गुज़ारे थे। बचपन से लेकर उसके इस दुनिया से जाने तक, उसने हमेशा ही अपनी मां को काम करते हुए देखा था। हर सुख दुख में और हर बीमारी में भी उसने हमेशा मां को चलते देखा था। बचपन से ही वह उसके त्यागोंं को देखती आ रही थी। कभी उसने मां को घर से बाहर निकलते नहीं देखा था। वह घर की चारदीवारी में ही अपने घर परिवार और बच्चों की सेवा में ही मसरूफ रहा करती थी। उसने कभी अपनी मां को अपने लिए जीते नहीं देखा था। सुबह से लेकर रात तक नाश्ता बनाना, घर की साफ सफाई करना तथा बर्तन कपड़े धोना, शालिनी और उसके अन्य तीन भाई बहनों को तैयार करके स्कूल भेजना, उनके कपड़े, यूनिफॉर्म, किताब, नोटबुक इत्यादि हमेशा सलीके से तैयार रखना, उसके पापा के लिए टिफिन तैयार करना, खाना पकाना, शाम को सभी के लिए नाश्ता तैयार करना और फिर रात का खाना बनाना यही सबकुछ तो शामिल था उसकी मां की दिनचर्या में। उसको फुर्सत ही कहां मिलती थी घर से बाहर निकलने की। हां, ये बात कुछ और थी कि वह शालिनी और उसके भाई बहनों को कभी कभी थियेटर में पिक्चर दिखाने ज़रूर लेके जाया करती थी। वह उन्हें अकेले कभी कहीं जाने नहीं देती थी।


शालिनी को वे दिन याद आने लगे जब नवरात्रि के दिनों में एक तरफ मां के गरबे खेले जाते थे तो दूसरी तरफ रामलीला दिखाई जाती थी। शालिनी और उसके दोनों भाइयों को रामलीला देखने में बहुत मज़ा आता था जब कि उसकी बड़ी बहन को गरबे खेलने का बहुत ही शौक़ हुआ करता था। तब मां शालिनी को उसके दोनों भाइयों समेत किसी पहचान वाले के साथ रामलीला में बिठाकर शालिनी की बहन को गरबे के लिए ले जाती थी और फिर लौटते उन सब को अपने साथ घर लेकर जाती थी।


शालिनी को वे दिन भी याद आने लगे जब वह और उसका छोटा भाई बचपन में अक्सर बीमार रहा करते थे। उन दोनों को गला ख़राब होने की तथा आए दिन बुखार होने की तकलीफ रहा करती थी। उन दिनों में शहर में इतने डॉक्टर भी नहीं हुआ करते थे और छोटी छोटी बीमारियों में तो घर के इलाज ही किए जाते थे। घर में तब गैस भी नहीं हुआ करते थे। स्टोव पर ही काम किए जाते थे। तब मां रात रात भर जागकर गले पर विक्स की मालिश करके, नमक को स्टोव पर गर्म कर के कपड़े की पोटली बांधकर गले पर सेक किया करती थी और बुखार को कम करने के लिए ठंडे पानी की पट्टियां सिर पर रखती थी।


यही नहीं पढ़ाई में भी अक्सर वह अपने चारों बच्चों का हौंसला बढ़ाती रहती थी और उन्हें पढ़ने के लिए प्रेरित करती रहती थी। शालिनी के पापा की दिल का दौरा पड़ने के कारण अचानक मौत होने के कारण वह खुद अपने आप को संभाल नहीं पा रही थी पर ऐसे वक्त से जल्दी ही उभर कर, अपने आप पर काबू पाकर न सिर्फ उसने अपने चारों बच्चों को अकेले संभाला पर साथ में उन चारों बच्चों को अच्छी अच्छी नौकरियां भी दिलाईं। शालिनी को वह दिन आज भी अच्छे से याद है जब सब्जी मंडी से लौटते उसने शालिनी का नियुक्ति पत्र खुशी खुशी उसे थमाया था जो उसे सब्जी मंडी में किसी पहचान वाले ने दिया था। जिंदगी के हर मोड़ पर उसकी मां ने अपने चारों बच्चों को ख़ूब अच्छे से संभाला था। 

चारों बच्चों की शादियां होने के बाद उनके बच्चों को भी उस की मां ने ही संभाला था। उसकी मां उसकी बड़ी बहन के संग रहती थी। उसे वो दिन अच्छे से याद है जब छुट्टी के दिन उसकी मां उसका बेसब्री से इंतजार करती थी और उसको देखकर बहुत ही खुश हो जाया करती थी। कई बार वह छुट्टी के दिन मां को घुमाने ले जाया करती थी। कभी मंदिर में, कभी पार्क में, तो कभी होटल में वह मां को लेके जाया करती थी, जहां पर अपने पहचान वालों से मिलकर उसकी मां बहुत ही खुश हो जाया करती थी। नब्बे साल की उम्र की थी उसकी मां, पर अभी भी वह घर के कितने काम कर लिया करती थी। वह जब भी कभी बीमार होती थी तब शालिनी ही अस्पताल में उसकी देखभाल किया करती थी, क्योंकि उसके भाई दूसरे शहरों में नौकरी करते थे और उसकी मां को अपना शहर छोड़ने की बिलकुल ही इच्छा नहीं थी। उसकी मां को शालिनी के साथ वक्त गुज़ारना बहुत ही अच्छा लगता था और उसे शालिनी पर विश्वास भी बहुत ज्यादा था। वह अक्सर शालिनी को मन की बातें बताया करती थी और उसके पापा के संग गुज़ारे लम्हों और अपने अतीत के बारे में उससे बातें किया करती थी।


एक दिन उसके बड़े बेटे ने अपनी मां को अपने पास बुलाया। उसकी मां खुशी खुशी तैयार हो गई अपने बेटे के पास जाने के लिए। शालिनी उसको अपने भाई के वहां छोड़कर आई। उसकी मां वहां बहुत ही खुश थी। उसका भाई और भाभी उसकी मां की ख़ूब अच्छे से सेवा करते थे और अच्छे अच्छे व्यंजन बनाकर उसको खिलाते थे। उसके भाई के बच्चे और उसके भाई भाभी उसकी मां के साथ तरह तरह के खेल भी खेला करते थे। वह अपने बच्चों के साथ वहां पर बहुत ही खुश थी। पर अचानक ये खुशियां दुख में परिवर्तित हो गईं, जब अचानक से मां को दिल का दौरा पड़ा। किसी को कुछ समझने का मौका ही नहीं मिला और मां अचानक से सब को छोड़कर इस दुनिया से चल बसीं। मां का दिल अपने शहर में ही बसता था इसलिए उनका अंतिम क्रियाक्रम अपने शहर में ही किया गया जहां उसने अपनी ज़िंदगी गुज़ारी थी। शालिनी और उसके चारों भाई बहन अनाथ हो गए थे। पापा के जाने के बाद जो मां उनका सहारा थी, वह भी उनको अकेला छोड़कर जा चुकी थी। शालिनी तो मां के बहुत ही करीब थी, इसलिए उससे तो यह दुख बर्दाश्त ही नहीं हो पा रहा था। वह अब अपने आप को बिलकुल अकेला महसूस करने लगी थी। पूरा परिवार ही इस अचानक के झटके से हिल चुका था। वह सब की चहेती थी। उसने कभी किसी में फर्क नहीं रखा था। वह सबसे प्यार से चलती थी और सबको हमेशा मान सम्मान देती थी, चाहे कोई गरीब ही फिर क्यों न हो। इसलिए उस के जाने के बाद आज भी उसे हरकोई याद करता था।


आज शालिनी की आंखों में नींद नहीं थी। अपनी मां को याद करते करते उसकी आंखो से झर झर आंसू सैलाब बनकर बहने लगे। आज उसे फिर अपनी मां की कमी महसूस होने लगी। आज उसके पास सबकुछ था, धन दौलत, मान सम्मान, अपना परिवार पर अगर कुछ साथ नहीं था तो वो थी मां, मां का प्यार और उसकी निस्वार्थ सेवा।



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