मां की चटाई
मां की चटाई
"रोहन! तुम मांजी को समझाते क्यों नहीं? पलंग पर सोया करे ठंडियां बढ़ गई हैं। और उन्हें तो सांस लेने में भी दिक्कत होती है। यू उन्हें नीचे चटाई पर सोते हुए देखना अच्छा नहीं लगता। आखिर किस बात की कमी है हमारे घर में, मैंने उन्हें कहा पलंग पर सोने के लिए तो उन्होंने कहा
"बहू मेरी आदत है ऐसे सोने की।"गद्दे पर चादर लगाती सौम्या अपने पति से बता रही थी
लेपटॉप पर काम करते रोहन ने कहा,"यार तुम मां को बेकार के सवाल से परेशान मत किया करो। तुमको आए अभी महज एक साल हुए हैं । लेकिन मैने जब से होश संभाला है। बचपन से आजतक उनको चटाई पर ही सोते देखा है।"
"लेकिन रोहन तुम समझ नहीं रहे हो बात को,एक तो ठंडियां बढ़ गई है। ऊपर से उनकी तबीयत भी ठीक नहीं रहती आज कल। उनकी अस्थमा की परेशानी भी बढ़ गई है।" सौम्या ने कहा
बाबूजी भी कुछ नहीं बोलते । मुझे तो माँ बाबूजी का रिश्ता ही समझ नहीं आता। मांजी आगे से चलाकर कभी एक शब्द भी नहीं बोलती उनसे । अगर बाबूजी कुछ कहते भी हैं तो बिना किसी बातचीत उनका काम करके हट जाती है । जब मांजी कुछ बोलती नहीं बाबूजी से तो उनके साथ कमरे में कैसे रहती हैं । मेरी समझ से तो बाहर है ये बात।" सौम्या बोले जा रही थी कि तभी उसके फोन पर नोटिफिकेशन आया। उसने देखा कि उसकी ननद रुचि का व्हाट्सएप मैसेज हैं।उसने मोबाइल उठाकर मैसेज पढ़ा तो खुशी से उछल पड़ी। रोहन कल रुचि दी और रश्मि दी आ रही हैं।
"क्या सच? फिर तो कल बहुत मजा आएगा।" रोहन ने कहा
सौम्या की ससुराल में उसकी दो शादी शुदा ननदे और सास ससुर थे। ननदो के साथ भी सौम्या की अच्छी बनती थी। सौम्या को अपना ससुराल अपने मायके से ज्यादा पसंद था क्योंकि यहाँ उसके पर किसी तरह की कोई पाबंदी नहीं थी। सब उसको बहुत प्यार करते थे। क्योंकि रोहन सबका लाडला था खासकर सौम्या की सास सरलाजी की तो उसमें जान बसती थी। व्यवहार कुशल सरलाजी ने सबको प्यार के एक सूत्र में बांध रखा था क्या बहू क्या बेटियां सब को बराबर प्यार और अपनापन उनसे मिलता था। बिन मां की बेटी सौम्या जब अपने ससुराल आयी तो सरलाजी के रूप में उसे मां मिल गयी।
लेकिन सौम्या को कुछ परेशान करता तो वो था सरलाजी का हमेशा जमीन पर चटाई बिछाकर सोना ।
अगले दिन सुबह सुबह सौम्या की ननदे घर आ गयी।रुचि रश्मि अपने माँ पापा से मिली। सरलाजी को देखकर रुचि ने कहा,"मां ये कैसी हालत बना रखी है आपने?आप अपनी दवाइयां तो ले रही है ना"
तभी रोहन ने आकर कहा,"मुझे तो कोई पूछ ही नहीं रहा।"
तब रश्मि ने कहा,"क्यों रे रोहन तू मेरी माँ का अच्छे से ख्याल नही रखता।"
"मेरी मां तुम्हारी माँ कब से हो गयी। मां सिर्फ मेरी है।" कहते हुए रोहन ने सरलाजी के गोद में अपना सिर रखते हुए कहा," माँ!आप सिर्फ मेरी हो ना बता दो रश्मि दी को,देखो मुझे क्या कह रही है?"
तब सरलाजी ने रोहन के सिर को प्यार से सहलाते हुए कहा,"कहने दे इनको जो भी कहना है। किसी के कहने से कुछ नही होने वाला तू सिर्फ और सिर्फ मेरा बेटा है और मैं तेरी मां। और अब तुम दोनों बहने मेरे बेटे को परेशान करना बंद करो।"
"बड़ा आया माँ का बेटा, रोंदू"(रश्मि प्यार से रोहन को बुलाती थी।) तभी अपनी मां का ख्याल नही रखता रश्मि ने कहा
रोहन ने फिर कहा,"देखो मां फिर मुझे रोंदू कहा"
रश्मि ने फिर रोहन को चिढ़ाते हुए कहा," एक बार नही एक हजार बार कहूंगी तुझे रोंदू क्योंकि तू है ही रोंदू हर वक़्त मां के पास हमारी शिकायत लेकर जाता है और रोता रहता है। अब तो बड़ा हो जा।"
तब रुचि ने कहा,"अरे अब बस करो तुम दोनों जब देखो तब लड़ते रहते हो। वो देखो बच्चे और सौम्या भी हँस रहे है।"
भाई बहनों की मीठी नोकझोंक के बाद सब ने साथ मिलकर चाय पानी नाश्ता किया।दोपहर में रुचि रश्मि सौम्या एक साथ बैठकर बात कर रही थी। तभी सौम्या ने वापिस वही बात कही ।
"दीदी मैं चाहती हूं कि इस बार आप लोग माँ को समझाइये की वो अब चटाई पर ना सोया करें। कमरे में पलंग पर बाबूजी सोते है। लेकिन मैंने बहुत बार नोटिस किया है माँजी बाबुजी के कहने पर भी पलँग पर नही सोती। मैंने तो ये तक बोला कि दूसरा सिंगल बेड डाल देती हूं लेकिन वो तैयार ही नही हुई। सिर्फ एक समय खाना खाती है। उनकी तबियत भी अभी ठीक नहीं रहती। आप लोग ही देखो कैसी हालत हो गयी है उनकी। कौन कहेगा कि उनकी उम्र सिर्फ अभी पचास साल की है?"
रुचि ने कहा,"सौम्या ये बात मैने जब से होश सम्भाला तब से समझा रही हूं। लेकिन वो किसी की बात नही मानती। रोहन तो कितनी बार जिद करके उनके साथ ही सो जाता था की अगर आप नीचे सोएंगी तो मै भी यही सोऊंगा, लेकिन उन्होने रोहन को अपनी कसम दी की आज के बाद वो कभी जिद ना करे। वरना मां घर छोड़कर चली जायेंगी। उसके बाद रोहन ने इस बात के डर से कुछ बोलना ही छोड़ दिया"
तभी रोहन ने कहा,"अरे वाह तीनों देवियां एक साथ पार्टी हो रही है तो ये रहे गरमा गरम समोसे जलेबियाँ"
तभी सौम्या के ससुर जी के जोर से चिल्लाने की आवाज आयी । रोहन रुचि ये जल्दी यहाँ आओ देखो तुम्हारी माँ को क्या हो रहा है।रोहन के हाथ से समोसे और जलेबियाँ जमीन पर गिर गए वो भागता हुआ मां के कमरे की तरफ तेजी से दौड़कर भागा देखा तो उसकी मां जमीन पर तड़प रही हैं लेकिन उसके बाबुजी को उन्हें छूने से मना कर रही है। उसने देखा उनकी दवाई भी खत्म हो गयी है।
गोद में अपनी मां का सिर लिए रोहन गुस्से में चिल्लाया,"सौम्या माँ की दवाइयां कहाँ है?,जल्दी लाओ।"
सौम्या ने देखा तो दवाइयां उसे घर मे कही नही मिल रही थी। सारी शीशी खाली।रोहन ने अपनी मां को गोद मे उठाया और कार में बैठाकर अस्पताल लेकर गया। उसने उन्हें अस्पताल में भर्ती कराने के लिए कार से निकालकर अपनी गोद मे उठाया ही थाकि सरलाजी ने कहा," बेटा मुझसे एक वादा कर "
"एक नही मां मैं आपसे हजार वादे करूँगा भी निभाउंगा भी बस आप एक बार ठीक हो जाओ।"कहते हुए उसने अपनी मां को स्ट्रेचर पर सुलाया तो सरलाजी ने रोहन का हाथ कसकर पकड़ लिया और कहा," बेटा मैं चाहती हूं तेरे पापा मेरे पार्थिव शरीर को हाथ ना लगाएं। ना ही मुझे मुखाग्नि दे मेरी चटाई के"
सरलाजी की बात सुनते वहाँ मौजूद रुचि, रश्मि,रोहन सब के सब अपने पापा की तरफ आश्चर्य से देखने लगे। तो उन्होंने अपनी नजरें झुका ली।
अपनी बात आधी कहते सरलाजी कि हाथों की पकड़ ढीली हो गयी। थोड़ी देर बाद डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया। और सरलाजी की बात अधूरी ही रह गई।रोहन का रो रो कर बुरा हाल था उसे समझ नही आ रहा था कि आखिर उसकी मां ने उससे ये बात क्यों कही?
सोचते-सोचते वो उनके कमरे में आकर उनकी चटाई पर बैठ गया। उसने चटाई उठायी और सीने से लगाकर रोते हुए कहा,"मां आ जाओ माँ प्लीज एक बार अपने बेटे के लिए मेरे लिए मां"
तभी उसका हाथ छोटी छोटी डायरियों पर गया जो काफी पुरानी लग रही थी। उसने उसे उठाकर पढ़ना शुरू किया। तो उसके होश उड़ गए। उन डायरियो के बीच उसे एक चिट्ठी मिली ।उसे ढूंढते हुए रश्मि रुचि और सौम्या कमरे में आयी तो देखा रोहन बुत बना बैठा है।
रश्मि ने कहा,"उठ रोहन तुझे अभी मजबूत होना है। चल बाहर सब बुला रहे हैं।"
रोहन ने अपने आंसू पोछे और बाहर गया देखा तो उसके पापा उसकी मां के पार्थिव शरीर के पास बैठे हुए हैं।
उसने तुरंत सबके बीच अपने पापा का हाथ पकड़ा और उनको कमरे में लेकर आया। आज उसकी आँखों मे उनके लिए सिर्फ और सिर्फ नफरत था। उसने अपने पापा से कहा
"चुपचाप इस कमरे में बैठिएगा और मेरी मां को छूने की कोशिश भी मत कीजियेगा। वरना आपका सच आज मैं पूरे समाज के सामने सबको बता दूंगा। लेकिन ये सब करके मैं अपनी मां के आख़िरी सफर में कोई तमाशा नहीं चाहता।मुझे समझ आ गया मां मुझसे क्या और क्यों कहना चाहती थी इसलिए अब आपकी भलाई इसी में है कि आप यही रहिए।"
रोहन के पापा ने कहा,"और बाहर सब मेरे बारे में पूछेंगे तब क्या कहेगा।"
रोहन ने गुस्से में उनको घूरते हुए कहा "-उसकी चिंता आप मत कीजिए वो मै देख लूंगा।"
सरलाजी को जब मुखाग्नि देने की बारी आई तो रोहन ने कहा,"रुचि दीदी मां को आप मुखाग्नि दोगी। चलिए और माँ की इच्छा को पूरा कीजिये।"
तो रुचि, रोहन की तरफ आश्चर्चकित हो ध्यान से देखने लगी ।
उसने कहा,"क्या कह रहा है तू? ये अधिकार तो तेरा है। मैं कैसे कर सकती हूं ये अधिकार तो बेटों का होता है।"
तब रोहन रुचि को सबके बीच से एक किनारे लेकर आया और उस ने डायरी के बीच मिली चिट्ठी रुचि को देते हुए कहा,"लो दीदी पढ़ो, मां की चटाई का राज जो हम सब बचपन से जानना चाहते थे।"
पत्र में लिखा था
मेरे प्रिय बेटे रोहन
तुझे आज मैं जो बताने जा रही हूं वो एक ऐसा सच है जिसे हम दोनो कितना भी चाहे झुठला नहीं सकते। रोहन बेटा तेरी एक नही दो मां है। एक जिसने तुझे जन्म दिया और दूसरी मैं जिसने तुझे पाल पोस कर बड़ा किया। लेकिन दुनिया चाहे कुछ भी कहे तू हमेशा मेरा ही बेटा रहेगा वो भी सबसे प्यारा। तुझे जब मैने पहली बार गोद में उठाया तब तू सिर्फ तीन माह का था। रुचि ढाई साल की और रश्मि सिर्फ एक साल की थी। तब मैंने तुझे अपने सीने से लगाया। तुझे अपना दूध पिलाया। मुझे किसी से कोई शिकायत नहीं । लेकिन तेरे पिता से है। क्योंकि उन्होंने ना ही एक अच्छे पिता होने का फर्ज निभाया ना पति होने का। उन्हें एक बेटा चाहिए था जो उनकी संपत्ति का मालिक हो, बुढ़ापे में उनका सहारा बने। उनकी नजर में जो काम बेटे कर सकते है वो बेटियां कभी नही कर सकती।
बेटे बेटी के इसी भेदभाव को मिटाने के लिए मैं ये चाहती हूं की मुझे मुखाग्नि रुचि दे।बेटा जरूरी नहीं हर पति-पत्नी के बीच तलाक होने पर ही रिश्ते टूटे। मैने अपने तन-मन से तेरे पिता का त्याग बहुत पहले ही कर दिया था । लेकिन बच्चों की खातिर सामाजिक रिश्ता निभा रही थी।
बेटा इन बातों का मतलब ये नही कि तेरे लिए मेरे दिल में जगह नहीं। तू तो कल भी मेरा बेटा था और हमेशा रहेगा।
तेरी यशोदा मां
रोहन ने रोते हुए कहा,"दीदी मां चाहती थी कि उनको मुखाग्नि आप दो,ताकि समाज में एक मिसाल कायम हो और लोग बेटियों की माँ को कमजोर ना समझे ना पुत्र की चाह में उनके साथ कोई धोखा ना हो।"
रोहन के दबाव डालने पर रुचि ने अपनी मां को मुखाग्नि दी। तेरवी के दिन रोहन अपनी मां के तस्वीर के सामने खड़ा हुआ और उसने कहा,"मां मैंने आपकी इच्छा पूरी की लेकिन अब आप की बारी है हर जन्म में आप ही मेरी मां रहना हर रूप में" और कहकर फफककर रो पड़ा
तभी सौम्या ने उसे सम्भाला और पूछा रोहन क्या बात है? जो तुम को इतना परेशान कर रही है।तुम क्या छिपा रहे हो। और तुम बाबूजी से क्यों नही बात कर रहे?.
तब रोहन ने सौम्या के आगे वो डायरी बढ़ा दी। जिसमे लिखा था।
दो बेटियों का पिता होने के बाद राजेश(सौम्या के ससुर) का व्यवहार सरलाजी के प्रति एकदम क्रूर हो गया। बेटे की चाह में उन्होंने अपनी प्रेमिका से नाजायज संबंध रखे। और जब बेटे का जन्म हो गया तो सरलाजी के सामने शर्त रखी कि या तो वो उनकी प्रेमिका से शादी और बेटे को स्वीकार करें। या नहीं तो उनका घर छोड़कर चली जाए। अनाथ सरलाजी के पास मायके में भी कोई नही था जो वो कहि जा सके। बेटियों के अच्छे भविष्य के लिए उन्होंने अपनी सौतन के साथ रहना स्वीकार कर लिया। लेकिन उस दिन उन्होंने रमेश जी से कहा,"बेटियों के भविष्य के लिए मेरा आपके साथ रहना मजबूरी है। लेकिन आज के बाद हमारे बीच पति पत्नी के सारे सम्बन्ध खत्म। उसदिन से सरलाजी ने चटाई पर सोना शुरू कर दिया। औऱ रमेश जी जा त्याग कर दिया।
लेकिन शायद भगवान को कुछ और ही मंजूर था शादी के मण्डप में आने से पहले ही उन दोनो का भयंकर रोड एक्सीडेंट हुआ। और रमेश जी की प्रेमिका का देहांत हो गया।
तीन महीने के रोहन को जब सरलाजी ने देखा तो देखती ही रह गयी। रमेश जी का सिर्फ पैर फैक्चर हुआ था रमेश जी को लगा शायद अब इसके बाद सरलाजी का व्यवहार बदल जाए। लेकिन सरलाजी जैसे के तैसे अपने वादे पर कायम रही।लेकिन रोहन के लिए उनके दिल में अपार ममता थी उन्होंने तीनों बच्चो में कभी कोई फर्क नही किया। बल्कि रोहन को अपनी बेटियों से ज्यादा ही प्यार दिया।
डायरी में अपनी सौंतन को अपने सामने देखने का दर्द ,पति की बेवफाई, और उनके ऊपर किये एक एक जुल्म कि दासता लिखी थी। कि कैसे रमेश जी ने अपनी बात मनवाने के लिए उन्होंने उनके साथ साथ उनकी बेटियों को भी दो दिन घर मे कैद रखा खाना तक खाने के लिए नही दिए।
एक साल की रश्मि को सरलाजी अपना दूध भी नही पिला पा रही थी। भूख से बेटियां रो रही थी। जिसे देखकर भी रमेश जी का दिल नही पसीजता था। आखिर में हारकर सरलाजी ने बात मान ली।डायरी पढ़ते पढ़ते सौम्या की आंखों से आंसू रुकने का नाम नहीं ले रहे थे।दरवाजे पर खड़ी रुचि और रश्मि को भी अब सच लता चल चुका था।
रोहन ने कहा," सौम्या मैं कितना अभागा हूँ। जो मैंने मेरी मां के कोख से जन्म नहीं लिया।"
मेरी वजह से मेरी मां और बहनों को इतनी तकलीफ झेलनी पड़ी। अब मुझे समझ आया क्यों पैसा होते हुए भी मुझे प्राइवेट इंग्लिश स्कूल और दोनो दीदी को पापा सरकारी स्कूल भेजते थे।ये सच जानकर की मैं उनका भाई नही हूं। मेरी वजह से ही उन लोगो की और माँ की जिंदगी खराब हुई उनको मुझसे नफरत होने लगेगी। किस मुँह से मैं उनका सामना करूँगा।
तब दरवाजे पर खड़ी रुचि ने कहा,"जैसे बचपन से करता आ रहा है। "
तब रश्मि ने कहा,"रोंदू तू अभी भी बुधू ही है। हम कल जैसे थे एक दूसरे के साथ वैसे ही आने वाले कल में भी रहेंगे। इसमें तेरा कोई दोष नहीं तो हम तुझे सजा क्यों देंदे या नफ़रत क्यों करेंगे। और मां ने भी तो डायरी में लिखा है ना की तुम तीनों हमेशा एक दूसरे के साथ हर मुश्किल में खड़े रहना"
हम जैसे पहले थे वैसे ही रहेंगे तू अपने दिल से किसी भी तरह का बोझ निकाल दे।
"सच दीदी"
हमने अपनी मां खो दी है अब अपना भाई नहीं खोना चाहते। और तीनों भाई बहन एक दूसरे से गले लगकर आज खूब रोये ।
तभी रमेश जी आये और उन्होंने कहा,"देखा तू बेकार में चिता कर रहा था। ये लोग तुझे छोड़ने की सोच ही नहीं सकते। क्योंकि हर लड़की को अपना मायका जो प्यारा है। कोई लड़की अपना मायका नही छोड़ सकती। वरना समाज और ससुराल उनको ही ताने देगा।"
तब रुचि ने कहा,"ऐसा कुछ नहीं है पापा हम मायका छोड़ सकते है लेकिन अपना भाई नहीं। इसलिए हम दोनों भी आज से ही आपको छोड़ रहे है।"
तब रोहन ने कहा,"दीदी दोनो नहीं तीनों मुझे इनकी प्रॉपर्टी और पैसा कुछ भी नही चाहिए।"
मैं आज ही इनका घर छोड़कर जाऊंगा।
क्योंकि मैं उस शख्स के साथ एक छत के नीचे एक पल भी नही रह सकता जिसने मेरी माँ को इतना तकलीफ दी।और सभी बच्चे उनको छोड़कर चले गए रमेश जी दूर खड़े बच्चों को जाते देखते रह गए आज उनके पास उनका घर और पैसा उनके साथ रह गया जिसका उनको पूरी उम्र घमंड था उनके पास आज पश्चाताप के अलावा और कुछ भी नहीं बचा था
आज सौम्या को अपनी सास के दर्द का एहसास भली भांति हो रहा था उनके दर्द सोच सोच कर उसके आँखों से आंसू निकल आते।