लचकारी चाची
लचकारी चाची


आज चुनमुन को बड़ी खुनमुन हो रही थी कि आखिर वे मिठाई खाती है तो भी डांट खाती है और नहीं खाती तो भी डांट खाती है। मां को कैसे समझाए उसे सिर्फ गुलाबजामुन ही पसंद है। और वो भी तभी ज्यादा खाती है जब मां भैया को उससे ज्यादा दे देती है। पर उसे ताज्जुब भी हो रहा था कि आखिर तीन बार से मिठाई खा कौन रहा है? अभी चुनमुन का दिमाग खुनमुन कर ही रहा था कि उसकी दोस्त रूनझुन आ गई! अरे चुनमुन आज मेरे संग टुनटुन के घर नहीं चलेगी क्या? लेकिन खुनमुन करती चुनमुन पर रूनझुन की बात का कोई असर नहीं पड़ा और उसने रूनझुन को भी अपनी समस्या बता कर रोक लिया। इतनी देर में टुन-टुन अपने पैरों से छुनमुन-छुनमुन करती वहां आ पहुंची। अरे! तुम दोनों यहां बैठी हो देखो मैं तुम्हें अपनी नई पायल दिखाने आई हूं। लेकिन ये क्या जब टुन-टुन को चुनमुन की खुनमुन की खबर रूनझुन से पता चली तो वो भी छुनमुन-छुनमुन की खुशी भूल गई और बताने लगी कि आजकल उसकी मां भी जाने क्यों जब देखो तब उसे डांट देती हैं चाहे वो शैतानी करे न करे और वो तो सबके लिए छोटी बच्ची है इसलिए उसे फुन-फुन भुनभुन करके चुप रह जाना पड़ता है।
लेकिन चोरी का इलजाम हम बच्चों पर? कितनी खुनखुन वाली बात है। और जब चुनमुन, रूनझुन और टुनटुन के दिमाग ने खुनमुन की तो चोर पकड़ा ही जाना था।
चुनमुन ने घर जाकर शोर मचा दिया कि आज तो वो रसगुल्ले खाकर ही रहेगी और मजबूरी में उसके भाई को रसगुल्ले लाने ही पड़े लेकिन रसगुल्ले आने
के बाद चुनमुन फुनफुन करके बिदक गई कि वो अपनी अलमारी में रसगुल्ले रखेगी और उन्हें कल खायेगी। मां ने सोचा बच्ची है अभी थोड़ी देर में मान जायेगी और खा लेगी चलो रख लेने देते हैं। और वो रसगुल्ले रखकर अपना काम करने रसोई में चली गईं। इधर रूनझुन और टुनटुन लचकारी चाची के घर जाकर घुनघुन-भुनभुन करने लगीं। हूं जाने चुनमुन अपने आपको क्या समझती है अब कभी उससे रसगुल्ले नहीं मांगेंगे। भले अलमारी में रख दे तो क्या? बात भी नहीं करेंगे, चलो हम दोनों आज उसके बिना ही गुनगुन करेंगे।
अभी एक घंटा आधा घंटा भी नहीं बीता था कि चुनमुन के घर से चिल्लाने की आवाजें आने लगीं आइचिक आइचिक आइचिक-भाइचिक भाइचिक भाइचिकए आइइइइइइइइइइइइ.......माइइइइइइइइ.... और चुनमुन रूनझुन और टुनटुन की हँसी अब खिलखिल ढिलढिल करती फूटी पड़ रही थी। वास्तव में उन्होंने भाई से मंगाये रसगुल्लों में चींटियों के साथ मिर्च का रस और बबूल का गोंद जो मिला दिया था। और लचकारी चाची ने मिठाई के लालच में चोरी से उसे बिना देखे खा लिया था। इसकी वजह से न तो उनका मुंह पूरा खुल पा रहा था और नहीं चीटियां उन्हें छोड़ रही थीं। मां को समझ नहीं आ रहा था कि वो इन बच्चों को डांटें या क्या करें और अंत में उनकी खिलखिल हँसी फूट ही पड़ी और उन्होंने तीनों नन्हीं सहेलियों को गले से लगा लिया। और लचकारी चाची को कभी चोरी नहीं करने के लिए समझाया। लचकारी चाची ? अब वो बच्चों के लिए ललचाई चाची बन गई थीं ।