क्वेरेन्टाइन का नौंवाँ दिन
क्वेरेन्टाइन का नौंवाँ दिन
प्रिय डायरी,
मेरा नाम रघुवीर है। माली का काम करता हूँ। उम्र 79 वर्ष।
जब तक मेरे हाथ पाँव चलते थे, मैं राममंदिर के सामने फूलों की दुकान लगाया करता था। गुलाब, गेंदा, मोगरा, रजनीगंदा सब तरह की फूलों की माला, बेलपत्ते, तुलसी का पत्ता, नारियल, गंगाजल सबकुछ रखता था अपनी दुकान में।
त्यौहारों के दिन लंबी कतारों में लोग रात-रात तक अपनी दुकान के आगे खड़े रहते थे। भोर भोर जाकर मैं बजार के पीछे फूल मंडी से फूल लेकर आता था। फिर दिन और रात एक करके मैं और जानकी बैठकर माला बनाया करते थे।
अच्छी खासी आमदनी हो जाती थी, मेरी इस दूकान से। इन्हीं पैसों से बेटों को पाला पोसा, बड़ा किया बेटियों की शादी करवाई, जानकी को सोने की बालियाँ और कंठा खरीदकर दिया। सबकुछ किया। सब राम जी की दया से।
परंतु अब, बूढ़ा हो गया हूँ इसलिए ज्यादा काम नहीं कर पाता हूँ। जानकी के मरने के बाद फूलों की वह दुकान भी बंद हो गई । जानकी सचमुच मेरी लछमी थी। जब तक वह थी, मुझे कभी खाने की कमीं नहीं हुई।
बेटों ने अपनी जोरू के कहने पर आकर मुझे अपने साथ रखने से मना कर दिया। अब कौन बूढ़े बाप का झमेला मोले ?
पिछले एक महीने से टिया दीदी के यहाँ माली का काम कर रहा हूँ। उसके दादाजी आए हैं न ? दादा और पोती मिलकर अपनी खुली छत पर बागवानी करते हैं, आजकल। दादाजी को पौधों की बड़ी अच्छी जानकारी हैं।
टिया दीदी भी बहुत सुंदर है। उसकी हँसी बिलकुल मेरी पोती जैसी है।
मालकिन भी बड़ी अच्छी है। जब भी मैं उनके घर जाता हूँ, कुछ न कुछ खाने को देती हैं, मुझे।
घर आते समय भी थोड़ा और खाना बांध देती है मेरे साथ। जानती तो हैं कि मैं घर आकर भूखा ही सो जाऊंगा।
लगता है, यह सब जानकी का ही किया धरा है। वह ऊपर से मेरे लिए सारा बंदोबस्त किए जा रही हैं। मेरा दुःख उससे कभी न देखा जाता था!!इसलिए!
सबकुछ अच्छा ही तो चल रहा था कि अचानक यह सब क्या हो गया ? लाॅकडौन ? ?
अब फिर भूखे रहने का समय फिर से शुरु हो गया!
नहीं, नहीं, मुझे लिखना पढ़ना नहीं आता। समय ही कहाँ मिला कि पढ़ना सीखूँ ? पाँच बरस की उमर से ही तो बापू के साथ दुकान पर बैठा करता था।
टिया दीदी मुझसे मेरी कहानी सुना करती थी। उसी ने यह सब कुछ लिख दिया। समझी मेरी डायरी ?