कन्फ़्यूज़न

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कहानी छोटी सी है. लेकिन किरदार ज्यादा हैं।


राजू थर्ड जैनरेशन से है.


राजू के बाबा श्री मुरली जी के सन १९३२ से १९४८ के बीच ८ बच्चे हुए, २ लड़कियां व् ६ लड़के।

नाम रखे गए, सविता, गजेन्द्र, सरिता, सतेन्द्र, विजेंद्र, धर्मेन्द्र, जितेन्द्र।


लड़कों के क्रमशः घर के नाम भी पड़ गए, गज्जू, सत्तू, विज्जू, धरमू, जीतू।


उस समय ना गूगल देवता थे और नाही नाम रखने की किताबें आती थी.


आठवें बच्चे के लिए, नाम इन्दर नाम से ख़त्म हो, का कोई विकल्प समझ नहीं आया, तो नाम रखा गया परिवर्तन। घर का नाम पड़ा पररू।



श्री मुरली जी के बड़े भाई (यानिकि राजू के बड़े बाबा जी) थे श्री बन्शी जी।


उनके बराबर हिसाब से ६ बच्चे हुए, ३ लड़कियां व् ३ लड़के।

डुगगू, रानी, राजा (घर का नाम लल्ली), पूरन, मीता, रीता।


राजू जब १४ साल का हो गया (सन १९७३) तो एक दिन उसे अपने पिता जी श्री गजेन्द्र जी से पता चला की बड़े बाबा जी श्री बन्शी जी ने अपने छोटे भाई श्री मुरली जी के दो बच्चे सविता व् सतेन्द्र को गोद ले लिया था।


उसने अपने पिता से कारण पूछा तो उन्होंने बताया कि बड़े बाबा जी की पहली पत्नी से कोई बच्चा नहीं था, इसलिए गोद ले लिया था. पहली पत्नी की मृत्यु के बाद उनके दूसरी पत्नी से उपरोक्त ६ बच्चे हुए।


उसी समय से ही राजू को कन्फ़यूज़न (दुविधा हुई) हुआ कि कौन से बाबा के कितने बच्चे हैं ? यानिकि बाबाओं श्री मुरली जी और श्री बन्शी जी के ८ बच्चे या ६ बच्चे ? 


समय गुजरता गया। राजू के परिवार के सदस्य दूर होते चले गए, कुछ दिल से, तो कुछ शहरों से। जैसे पहले फिल्मों में कुम्भ के मेले में बच्चे व् परिवार बिछड़ जाते थे, वैसे ही।


आखरी बार, अब से ८ वर्ष पूर्व सन २०११ में, दिल्ली में, राजू की छोटी बुआ की लड़की के लड़के की शादी में परिवार के बिछड़े हुए सदस्य महज़ औपचारिकता वश कुछ देर के लिए मिले।


सोचते तो शायद सब हों कि आ अब लौट चलें, लेकिन लौटना तो दूर, कोई मुड़ कर भी नही देखता।


राजू को आशा है कि एक दिन कोई न कोई परिवार का सदस्य शुरुआत करेगा और हर साल एक बार सब को एक जगह मिलवाने की व्यवस्था का कार्य सबको बांटेगा।

   

फिलहाल तो भला हो आर्टिफीशियल इंटलिजेंस, कंप्यूटर, जीमेल, गूगल, सोशल मीडिया, फेसबुक व् व्हाटसएैप का, कि बिछड़े हुए लोगो को मिला दिया।


राजू के भी फेसबुक पर बहुत से फ्रैन्ड्स हैं, लेकिन स्त्रियों में पत्नी, एक लड़की, एक बहन, दो कजिन, व् तीन चाचियाँ, मात्र. बाकी वर्जित हैं।


जैसे लिव इन रिलेशन शिप होता है, वैसे ही फेसबुक पर फ्रैन्ड्स के इलावा एक और कैटेगिरी होनी चाहिए – रिलेशन इन कौन्टैक्ट यानिकि रिश्तेदार सम्पर्क में।


अब (सन २०१९ में) श्री मुरली जी के कुल ३ बच्चे हैं, यानिकि राजू के ३ चाचा, बाकी ५ बच्चे प्यारे हो गए, लोग कहते हैं कि भगवान् को प्यारे हो गए.


राजू का उन ३ चाचाओं से भी कोई सम्पर्क नही.


हां, चाचाओं के कुछ बच्चे (कजीन) फेसबुक फ्रैन्ड् हैं।कभी कभी लाइक हो जाता है। 


राजू ने अपना कन्फ़्यूज़न् बहुत पीछे झोड़ दिया है. बस कुल १४ (८ + ६ = ६ + ८). अपने तो अपनों होते हैं।

  

अब राजू सारे सन्सार को अपना परिवार समझता है. काश सब ऐसा ही समझें.


इतनी उम्र में यानि कि ६१ साल की उम्र में राजू से पूरी कहानी में गिनती में एक-आध बच्चे की भूल भटक हो गयी हो तो क्षमा करिएगा।


श्री मुरली जी के २ छोटे भाई भी थे, शिव व् देव.


उनके क्रमशः ४ बच्चे व् १ बच्चा.


यह सब भी अपने हैं. इनमे से तीन कजिन चाचा राजू के सम्पर्क में है. इन चाचाओं और चाचियों का राजू को आशीर्वाद प्राप्त होता रहता है.


हां, राजू के पापा श्री गजेन्द्र जी को राजू के चारों बाबाओं के सभी बच्चे सम रूप से अति प्रिय रहे.


सभी को नमन.


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