कल्पनाशीलता और मिथक
कल्पनाशीलता और मिथक
आज कक्षा में चर्चा की शुरुआत जिज्ञासा ने अपनी एक जिज्ञासा के साथ की-"महाभारत की कथा में एक प्रसंग का वर्णन मिलता है कि पांडव बारह वर्ष के वनवास और एक वर्ष के अज्ञातवास की अवधि पूरी करने के लिए जंगल में रहने लगे थे। जंगल में उनसे मिलने बहुत सारे अतिथिगण आया करते थे। इन बहुत सारे अतिथियों के भोजन की व्यवस्था करना द्रोपदी के लिए एक बहुत ही कठिन समस्या थी।
इसके समाधान के लिए युधिष्ठिर ने सूर्य देव की उपासना की थी। सूर्य देव ने प्रसन्न होकर उन्हें एक अक्षय पात्र दिया था।इस अक्षय पात्र की विशेषता यह थी कि इसमें बना हुआ भोजन सूर्य देव की कृपा से तब तक समाप्त नहीं होता था जब तक कि भोजन बनाने वाली द्रोपदी सबको भोजन करवाने के पश्चात स्वयं भोजन न कर लें।हम सबको विदित है कि हमारी भारतीय संस्कृति में यह परंपरा रही है कि सबसे पहले अतिथियों को भोजन कराया जाता है और भोजन बनाने वाली महिला सबको भोजन करवाने के बाद ही भोजन करती है।हम सबको महाभारत का वह प्रसंग भी याद होगा जिसमें दुर्योधन की सेवा से प्रसन्न होकर दुर्वासा ऋषि ने दुर्योधन से कोई वर मांगने को कहा था तो दुर्योधन ने पांडवों के प्रति दुर्भावना रखते हुए दुर्वासा ऋषि से पांडवों को दर्शन देने का आग्रह किया ।साथ ही उनसे यह भी आग्रह किया कि वे अपनी शिष्य मंडली के साथ पांडवों से तब मिलने पहुंचें जब अतिथियों और पांडवों के सहित द्रौपदी भी भोजन कर चुकी हो। दुर्वासा ऋषि अपने चालीस हजार शिष्यों के साथ पांडवों की कुटिया पर पहुंचे और युधिष्ठिर से कहा कि अभी वे नदी पर स्नान करने जा रहे हैं और सभी वापस आकर भोजन करेंगे। द्रोपदी के द्वारा भोजन कर लेने के बाद अक्षय पात्र रिक्त हो चुका था तो अब अक्षय पात्र से तो भोजन प्राप्त होने की कोई भी आशा न थी। सब चिंता में पड़ गए कि अब एक साथ इतने अतिथियों के भोजन की व्यवस्था कैसे होगी ? द्रोपदी ने भगवान श्री कृष्ण का ध्यान किया। प्रभु श्री कृष्ण प्रकट हुए और बोले कि सबसे पहले मुझे भोजन कराओ उसके बाद बात करना । द्रोपदी ने श्री कृष्ण से कहा केशव! जिस समस्या के समाधान हेतु मैंने आपका स्मरण किया वही समस्या लेकर आप स्वयं आए हैं।
मुझे अभी दुर्वासा ऋषि और उनके चालीस हजार को भोजन कराना है। श्री कृष्ण ने द्रौपदी से अक्षय पात्र लाने को कहा उस पात्र में चावल का एक दाना लगा था। भगवान श्री कृष्ण ने चावल के उस एक दाने को खाते हुए कहा यह मेरा भोजन समस्त शिष्यों सहित दुर्वासा का भोजन हो। उनके द्वारा उस चावल के उस एक दाने को ग्रहण करते ही दुर्वासा ऋषि और उनके चालीस हजार शिष्यों के पेट पूरी तरह भर गए। उनके पेट फूलने लगे। दुर्वासा ऋषि ने पांडवों की कुटिया पर आकर उनसे क्षमा मांगते हुए कहा कि अब वे लोग अब भोजन नहीं कर सकेंगे।"
प्रकाश ने जिज्ञासा से कहा-"जिज्ञासा बहन!तुम्हारी बातों से ऐसा लगा करता है कि मिथकीय साहित्य में तुम्हारा रुझान कम ही होता है। आज आपने महाभारत की कथा सुनानी शुरु की है इसे हम आपका रुचि परिवर्तन समझें या इसे किसी चर्चा की भूमिका समझें।"
जिज्ञासा बोली-"सच कहूं,प्रकाश भैया।मेरे मन में जादू के खेल में वाटर ऑफ इंडिया के बारे में जानने की इच्छा है। जादूगर उस बर्तन को बिल्कुल उल्टा करके सारा पानी गिरा देता है और इस खाली बर्तन से दुबारा कुछ देर के बाद उसी बर्तन से पानी गिराता है। ये सब कैसे होता है ? क्या जादूगर ये बर्तन सूर्य भगवान से लेकर आते हैं ? इसके कारण का बोध हमारे साथियों में से से कौन कराएगा ?
सुबोध ने मुस्कुराते हुए कहा-" सुबोध के होते हुए चिंता की क्या बात है ?वास्तव में यह विज्ञान के कमाल पर आधारित है। इसमें सदैव धातु का बर्तन प्रयोग होता है जिसके कारण बर्तन के अंदर जो होता है दर्शक उसे देख नहीं पाते। इस बर्तन में बर्फ जमी होती है। एक बार बरतन का सारा पानी गिरा देने के बाद जादूगर कुछ देर तक कोई दूसरे करतब दिखाता रहता है । दर्शकों को अपनी बातों में उलझाए रखता है। इतनी देर में वातावरण की गर्मी से बर्फ पिघलती रहती है और बीच-बीच में जादूगर बर्तन से पानी गिरा- गिरा कर दर्शकों को आश्चर्य में डालता रहता है यही है ' वाटर ऑफ इंडिया'।"
सुबोध के द्वारा ' वाटर ऑफ इंडिया ' समझाने कक्षा के सभी विद्यार्थियों ने 'तितली ताली'से प्रशंसा करते हुए सुबोध का उत्साहवर्धन किया ।कक्षा में उत्साहवर्धन के लिए ताली बजाने की परंपरा अब पुरानी हो चुकी है क्योंकि कक्षा में हर्ष व्यक्त करने के लिए यदि ताली बजाई जाती है तो उसके शोर से आसपास की कक्षाओं की शांति भंग होती है। तितली ताली में दोनों हाथों को उठाकर सांकेतिक रूप से तितलियां उड़ा कर हर्ष व्यक्त कर दिया जाता है जिससे हर्ष भी व्यक्त हो जाता है और शोर भी नहीं होता।
जिज्ञासा ने रामायण के एक प्रसंग का वर्णन करते हुए इसकी कार्यप्रणाली जानने की इच्छा व्यक्त की। उसने कहा-" देवताओं के राजा इंद्र के पुत्र जयंत ने प्रभु श्री राम के बल की थाह लेने के उद्देश्य से कौवे का रूप धारण किया। माता सीता के चरणों को अपनी चोंच के प्रहार से घायल कर दिया जिससे उनके चरणों से रक्त बहने लगा। यह देख कर प्रभु श्री राम ने धनुष पर बिना फल वाले बाण का संधान किया और उसे जयंत की और भेज दिया। उस बात के प्रहार से बचने के लिए जयंत तीनों लोकों में शरण मांगता फिरा लेकिन प्रभु श्रीराम के अपराधी शरण देने की बात जानकर उसे किसी भी देवी- देवता ने शरण नहीं दी। जब वह नारद मुनि के पास गया तो नारद मुनि ने उसे प्रभु उसकी रक्षा के लिए स्वयं प्रभु श्रीराम की ही शरण में जाने का सुझाव दिया। अंत में जयंत प्रभु श्री राम की शरण में गया और जाकर उसने क्षमा मांगी। प्रभु श्री राम ने उसे प्राण दान तो दे दिया लेकिन दंड स्वरूप उसकी एक आंख फोड़ दी। इस प्रसंग में प्रभु श्रीराम के वाण द्वारा जयंत का पीछा किए जाने में प्रयुक्त तकनीक पर कौन प्रकाश डालेगा ?"
"ऐसे प्रसंगों पर प्रकाश डालना प्रकाश का काम है।"- प्रकाश प्रफुल्लित होते हुए बोला-" आज हमारे देश के पास 'नाग एंटी टैंक मिसाइल' विकसित की जा चुकी है। इसका विकास 'रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन' द्वारा संचालित 'एकीकृत निर्देशित मिसाइल विकास कार्यक्रम' का हिस्सा है इसे 'भारत डायनामिक्स लिमिटेड' ने बनाया है। हमारे मिसाइल मैन भूतपूर्व राष्ट्रपति महामहिम श्री ए पी जे अब्दुल कलाम की देखरेख में 1988 में इसका विकास प्रारम्भ हुआ था।इसकी वही विशेषता है जिसकी चर्चा जिज्ञासा बहन ने अपने रामायण के प्रसंग में की है।इस मिसाइल में लक्ष्य निर्धारित कर दिया जाता है उसके पश्चात यह लक्ष्य का पीछा करते हुए उसे निशाना बनाती है। लक्ष्य के स्थान परिवर्तन होने पर इसमें उसका पीछा करने की वही विशेषता है जो रामायण में वर्णित प्रभु श्रीराम के वाण की है।
जिज्ञासा ने एक और जिज्ञासा प्रकट की-"हमारे देश के कुछ तथाकथित बुद्धिजीवियों को हमारे देश के प्रकरणों की खिल्ली उड़ाने में अत्यंत हर्षानुभूति होती है।क्या दूसरी संस्कृतियों के लोगों मिथकीय अवधारणा से मुक्त हैं ?"
सुबोध ने बताया-"हर काल खण्ड में हर क्षेत्र, हर सांस्कृतिक समुदाय में ऐसे मिथकीय किस्से-कहानी प्रचलित होते जो लोगों का मनोरंजन और ज्ञानवर्धन करते हुए अपनी संस्कृति के प्रति आस्थावान बनाए रखने हेतु प्रेरित करते हैं। अरेबियन नाइट्स में अलादीन का जादुई चिराग जैसी कहानियों का समृद्ध साहित्य है।आज की कल्पना कल के आविष्कार का मार्ग प्रशस्त करती है। इसे हम अपनी कल्पनाशीलता को नयी ऊंचाइयों पर पहुंचाएं।